लखनऊ. दीवाली पर तंत्र-मंत्र या पूजन के लिए उल्लू का शिकार जेल या जुर्माना करा सकता है. दोनों सजाएं भी हो सकती हैं. उल्लू को लक्ष्मी का वाहन माना गया है. तांत्रिक क्रियाओं में भी इसका इस्तेमाल होता है. इसी के मद्देनजर दीवाली के पूर्व प्रदेश के मुख्य वन्य संरक्षक ने उल्लू के शिकार पर कड़ाई से रोक के निर्देश दिए हैं. गौरतलब है कि दीवाली के पहले उल्लुओं की जान पर बन आई है. लोग इनके शिकार पर लग गए हैं.
प्रधान मुख्य वन्य संरक्षक ने हाल ही में जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक सहित वन अधिकारियों को जारी पत्र में कहा कि दिवाली के अवसर पर प्रदेश में उल्लू का शिकार या व्यापार किया जाता है. पहले भी इसके लिए अलर्ट जारी किए जाते रहे हैं, लेकिन प्रभावी रोकथाम नहीं हो पा रही. मुख्य वन्य संरक्षक ने कहा है कि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने उल्लू को लुप्तप्राय प्रजाति में शामिल किया है. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में भी उल्लू संरक्षित वन्य जीव के रूप में दर्ज है.
प्रमुख वन्य संरक्षक ने अधिकारियों से कहा है कि दीपावली के मौके पर उल्लू के शिकार/व्यापार पर कड़ा अंकुश लगाएं. संबंधित अधिकारियों, कर्मचारियों को इसका निर्देश दें. यह महत्वपूर्ण है. गौरतलब है कि उल्लू की 27 प्रजातियां हैं. इनकी संख्या में तेजी से कमी आई है. अनुसूची-1 में शामिल उल्लू के शिकार पर 3 साल की जेल और 5000 से 25,000 रुपये तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
उल्लुओं के समूह को ‘पार्लियामेंट’ कहते हैं। विश्व में उल्लू की 200 प्रजातियां हैं। एक उल्लू साल भर में औसतन एक हजार चूहे खा जाता है। यह अपनी गर्दन चारों घुमाकर देख सकता है। उल्लुओं में सबसे छोटा 5 इंच और 31 ग्राम और सबसे बड़ा 5 फिट लंबा तथा ढाई किलो वजन का होता है। यह इंसानों से 10 गुना धीमी आवाज सुन सकता है और मनुष्यों से सौ गुना अधिक रात में देख सकता है। उल्लू के दांत नहीं होते। भोजन निगलता है। अधिकतम आयु 30 वर्ष होती है।
ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि उल्लू देवी लक्ष्मी की सवारी है. दीवाली में तांत्रिक तंत्र-मंत्र में इसका इस्तेमाल करते हैं. इसके शरीर के कई अंग दवाओं के काम आते हैं. सम्मोहन के लिए दीवाली की रात उल्लू के नाखून से काजल बनाया जाता है. सिर के ऊपर की खाल काला जादू में इस्तेमाल होती है. जमीन में गड़ा धन निकालने के लिए भी तांत्रिक इसकी बलि देते हैं.