हृदयेंद्र सिंह/ सुनील पासवान.बलरामपुर. बलरामपुर जिले के कलेक्टर अवनीश शरण अपने कार्यों को लेकर लोगों की तारीफें बटोरते रहते हैं. उनके कामों को न सिर्फ लोग सराहते हैं बल्कि उनकी चर्चा भी होती है. अब अवनीश शरण के साथ-साथ उनके पिता के कामों की भी लोग चर्चा करने के साथ सराहना कर रहे हैं.
बलरामपुर जिले के कलेक्टर अवनीश शरण उन गिने चुने आईएएस अधिकारियों में हैं जो लीक से हटकर काम करने में यकीन रखते हैं. कभी अपनी बेटी का सरकारी स्कूल में बिना किसी तामझाम के खामोशी से एडमिशन कराना हो, कभी बेटी के साथ सरकारी स्कूल में मध्यान्ह भोजन करना हो या फिर गुणवत्ता विहीन काम की पोल खोलना हो. उनके ज्यादातर काम आम आदमी का भरोसा नौकरशाही में बरकरार रखने के साथ आम लोगों की तारीफ भी बटोरते हैं.
इन दिनों अवनीश शरण के पिता डा. लोकेश शरण भी बेहद खामोशी से ऐसा कुछ करने में जुटे हैं जिसकी हर कोई तारीफ कर रहा है. दरअसल डा. लोकेश शरण की पोती और बलरामपुर के कलेक्टर अवनीश शरण की बेटी वेदिका शासकीय प्राथमिक स्कूल में पढ़ती है. अपनी पोती को स्कूल छोड़ने और स्कूल से घर लाने के क्रम में डा. लोकेश शरण को ये एहसास हुआ कि स्कूल में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ने लिखने में दिक्कतें आ रही हैं. बस, डा. शरण ने बीड़ा उठाया कि वे स्कूल के बच्चों की अंग्रेजी दुरुस्त करके मानेंगे. अब डा. शरण स्कूल के बच्चों को नियत समय पर न सिर्फ अंग्रेजी की क्लास के जरिए उनकी इस भाषा से जुड़ी दिक्कतें दूर करते हैं बल्कि उनके प्रयासों से स्कूल के बच्चे तेजी से अंग्रेजी लिखना-पढ़ना सीख रहे हैं.
एक बेहद अनुशासित टीचर की तरह डा. शरण बच्चों की बकायदा क्लास लेते हैं, उनको होमवर्क देते हैं, बच्चों की कांपियां चेक करते हैं. वे बच्चों की फटी-पुरानी कापियों और किताबों को अपने साथ ले जाकर उनकी बांइंडिंग और उन्हें ठीक कराकर बच्चों को फिर से वापस कर देते हैं.
सरकारी स्कूल के बच्चे जिनकी नियति के साथ संवेदनशील शिक्षा जैसी चीज जुड़ी ही नहीं होती है. उनके लिए डा. लोकेश शरण किसी भगवान से कम नहीं हैं. वे न सिर्फ अपनी पोती वेदिका के दादा की भूमिका में नजर आते हैं बल्कि स्कूल के ज्यादातर बच्चों के दादा जी की भूमिका में नजर आते हैं. भले ही बलरामपुर के कलेक्टर अवनीश शरण अपने कामों के जरिए आम जन में लोकप्रिय हों लेकिन उनके पिता डा. लोकेश शरण अपनी संवेदनशीलता और अभिनव विचारों के चलते जिला मुख्यालय में लोगों के बीच खासे लोकप्रिय हैं. डा. शरण के ये खामोश प्रयास भले ही कोई बड़ी क्रांति न कर पाएं लेकिन देश के बेहद गुमनाम से हिस्से के मुट्ठीभर लोगों की जिंदगी में उम्मीद की रौशनी जरूर पैदा करने में कामयाब होंगे.