नई दिल्ली. आज सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अवैध बताने वाली आईपीसी की धारा 377 की वैधता पर अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि समलैंगिकता संबंध अपराध नहीं है. सुनील मेहरा, नवतेज सिंह जौहर, अमन नाथ, रितू डालमिया और आयशा कपूर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की थी. जिसके बाद फिर विचार किया गया और फैसले को बदला गया. इनके अलावा एक प्रिंस ऐसे भी थे. जिन्होंने धारा 377 से जंग लड़ी थी.
दरअसल 10 साल पहले समलैंगिक कबूल करने वाले देश के पहले राजसी परिवार से जुड़े व्यक्ति के रूप में ख्याति पा चुके मानवेंद्र सिंह गोहिल ने खुद की चैरिटी शुरू की थी. जिसके तहत वे पेड़ों पर कॉन्डोम लटकाया करते थे और उसके बाद से एड्स के फैलाव को रोकने के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर चुके हैं.
गुजरात के राजपीपला के सिंहासन के उत्तराधिकारी और शाही योद्धा वंश के सदस्य मानवेंद्र सिंह गोहिल ने अपनी शोहरत और रुतबे का इस्तेमाल ऐसे देश में गे समुदाय को सुरक्षित सेक्स तथा उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है. जहां समलैंगिकता कानूनन अपराध है. एक इंटरव्यू में देशभर में फैले प्राचीन मंदिरों में मौजूद समलैंगिक मूर्तियों और कामसूत्र का हवाला देते हुए मानवेंद्र ने कहा था, “लोग कहते हैं कि समलैंगिकता पश्चिमी सभ्यता की देन है. यह पूरी तरह गलत है.”
मानवेंद्र सिंह गोहिल उस अभियान का हिस्सा भी रहे, जो उस कानून के खिलाफ था, जिसके तहत देश में समलैंगिकता को प्रतिबंधित किया गया है. उनकी संस्था लक्ष्य फाउंडेशन समलैंगिक पुरुषों तथा ट्रांसजेंडरों के साथ काम करती है, और सुरक्षित सेक्स का प्रचार करती है, हालांकि उन्हें पुलिस की ओर से लगातार बाधाओं का सामना करना पड़ता है.
उनका कहना है कि “बस इसीलिए लोग डरते-डरते सेक्स संबंध बना रहे हैं और असुरक्षित सेक्स जारी है. जब हमने पुरुषों से सेक्स संबंध बनाने वाले पुरुषों के साथ काम करना शुरू किया, तो हमें पुलिस ने परेशान किया और धमकाया. उन्होंने कहा कि “हम सार्वजनिक शौचालयों में तथा सार्वजनिक पार्कों में पेड़ों पर कॉन्डोम रख दिया करते थे, क्योंकि हम उन्हें सेक्स संबंध स्थापित करने से रोकना नहीं चाहते, बल्कि चाहते हैं कि वे सुरक्षित सेक्स करें.”