विप्लव गुप्ता, पेन्ड्रा। नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली कहावत मरवाही जल संसाधन विभाग चरितार्थ कर रहा है. यहां साल 2005 में लोअर सोन डाइवर्सन से निकली नहर वर्ष 2020 के आधा बीत जानने के बाद भी 15 सालों में किसानों को पानी नहीं पहुंचा सकी.  करोड़ों की इस नहर परियोजना से दर्जनों गावो के किसान को फायदा होना था, प्रशासनिक लेटलतीफी और उदासीनता ने किसानों को न सिर्फ हताश किया है बल्कि किसान अपने आप को ठगा महसूस कर रहे है. मामले पर जल संसाधन विभाग लेटलतीफी का ठीकरा फॉरेस्टक्लीयरेंस पर फोड़ रहा है.

वर्ष 2005 में ग्राम सुराज अभियान के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने मरवाही विकासखंड में सिंचाई का रकबा बढ़ाने के उद्देश्य से लोअर सोन डायवर्सन से ग्राम पंचायत बंशिताल तक नहर निर्माण की स्वीकृति दी थी. स्वीकृति के बाद से ही किसानों की बांछें खिल गई थी कि अब उन्हें जल्द ही नहर से पानी मिलेगा पर घोषणा किए 15 वर्ष बीत चुके हैं और आज तक किसानों को नहर से एक बूंद भी पानी नहीं मिल सका जबकि घोषणा के तुरंत बाद ही भूमि अधिग्रहण कर लिया गया था. काम में तेजी ऐसी की 5 किलोमीटर नहर बनाने में 15 साल लग गए और अब जो काम हो रहा है वह भी गुणवत्ताहीन. मौके पर साइड इंचार्ज ही नहीं है वहीं विभाग के टाइम कीपर ने बताया कि मटेरियल रद्दी किस्म का उपयोग किया जा रहा है जिसके लिए बार-बार ठेकेदार को मना किया गया पर गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हो रहा है.

सिंचाई के राष्ट्रीय औसत से काफी कम मात्रा में सिंचित मरवाही के लिए यह नहर अति आवश्यक है इस योजना से सिर्फ बंसीताल गांव के ही 200 से अधिक किसान लाभान्वित होंगे इसलिए घोषणा के बाद से ही किसान अति उत्साहित थे पर विभागों की लापरवाही और उदासीनता ऐसी की सिर्फ 5 किलोमीटर की नहर 15 सालों में किसानों के खेत तक पानी नहीं पहुंचा सकी. इन 15 सालों में केवल कच्ची नहर का ही निर्माण हो पाया. अब इस नहर के सीमेंटीकरण का कार्य शुरु किया गया है.

मामले पर जब जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से बात की गई तो एग्जीक्यूटिव इंजीनियर ने मामले पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया वहीं एसडीओ ने देरी की वजह भारत सरकार से मिलने वाले फॉरेस्टक्लीयरेंस में हुई देरी को बताते हुए इसका ठीकरा वन विभाग के मत्थे मढ़ दिया.

अधिकारियों ने 3 हेक्टेयर से अधिक भूमि का वन विभाग से अधिग्रहण मांगा था जिसकी स्वीकृति मिलने में वर्षों लग गए वहीं पुनरीक्षित रकबा 1 हेक्टेयर से भी कम हुआ और तुरंत ही स्वीकृति मिल गई 3 हेक्टेयर से 1 हेक्टेयर कैसे हुआ इसका जवाब विभाग के पास नहीं है पर जिम्मेदार जरूर दूसरे विभाग को बताया जा रहा है.