फीचर : छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार की एक महत्वकांक्षी योजना चल रही है. इस योजना ने गांवों की तस्वीर बदल दी है. सरकारी योजनाओं के बीच इसे एक क्रांतिकारी योजना के तौर पर पहचान मिली है. इसके पीछे की वजह है योजना से गांवों में आर्थिक सशक्तिकरण. ग्रामीण अर्थवस्था को मिलती मजबूती से आज कई गांव मॉडल गांव बनकर उभरे हैं. इन्हीं मॉडल गांवों के बीच एक नाम है जेवरतला का. इस रिपोर्ट में कहानी है जेवरतला में सुराजी से आए सुराज की.

सत्ता में आने से पहले कांग्रेस पार्टी ने एक नारा दिया था- नरवा-गरवा, घुरवा-बारी, छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, येला बचाना हे संगवारी. इस नारे को सत्ता आने के बाद सरकार योजना में तब्दील किया और फिर राज्य के चार चिन्हारियों को बचाने के साथ ही गांव-गांव में सुराज लाने का काम शुरू हुआ. मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश बघेल ने सुराजी योजना की शुरुआत की. योजना के अंतर्गत नरवा-गरवा, घुरवा-बारी पर काम शुरू हुआ. बीते पौने चार साल में योजना का धरातल पर सफल क्रियान्वयन हुआ है. योजना की सफलता के साथ सरकार की नीति और नियत को जेवरतला गांव में देख सकते हैं.

जी हां…जेवरतला. यह गांव आज छत्तीसगढ़ के उन गिने-चुने गांवों में से एक जिन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम दिया है. जेवरतला के ग्रामीणों के पास न सिर्फ स्वरोजगार है, बल्कि वह रोजगार देने वाला भी गांव है.

सुराजी से सुराज को देखने के लिए राजधानी रायपुर से 100 किलोमीटर से अधिक दूरी तय करके बालोद जिला जाना होगा. बालोद जिले में वनांचल डौंडीलोहारा विकासखंड में. डौंडीलोहारा से राजनांदगांव मुख्य मार्ग पर स्थित है जेवरतला गांव. और गांव में निर्मित हो चुका आदर्श गौठान. गौठान जिसे रोजगार का खान अब कहा जाने लगा है.

जेवरतला का आदर्श गौठान करीब 7 एकड़ विशाल क्षेत्र में फैला है. गौठान में साढ़े एकड़ को चारागाह बनाया गया है. इसी चारागाह में एक एकड़ में नेपियर घास चारा के लिए लगाया गया है. गौठान में कई तरह की रोजगारमूलक गतिविधियों को संचालित किया जा रहा है. यहां कई महिला स्व-सहायता समूहों को काम भी मिला हुआ है.

गौठान समिति के अध्यक्ष पुरूषोत्तम दास साहू के मुताबिक गांव के कुल 764 मवेशियों में से लगभग 750 मवेशियों को पशुपालक प्रतिदिन इस गौठान में लाते हैं. गौठान में प्रतिदिन 07 से 12 क्विंटल गोबर की खरीदी की जा रही है. गोबर से वर्मी कम्पोस्ट निर्माण करने की जिम्मेदारी गांव की शारदा महिला स्वसहायता समूह को दी गई है.

गांव में कई समूहों में से एक एक समूह का नाम है आदिम जाति सेवा सहकारी समिति. इस समिति के द्वारा गोबर खाद का विक्रय किया जा रहा है. आंकड़ों के मुताबिक अब तक 624 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री की गई है. गौठान में वर्मी कम्पोस्ट का बड़े पैमाने पर निर्माण तो चल ही रहा है अब गोमूत्र से जीवामृत और ब्रमास्त्र का निर्माण भी किया जा रहा है.

गौठान समिति के अध्यक्ष से मिली जानकारी के ही अनुसार गोमूत्र की खरीदी भी लगातार जारी है. प्रतिदिन 50 लीटर के हिसाब से अब तक 1597 गोमूत्र की खरीदी की गई है. इससे करीब 415 लीटर जैविक कीटनाशक दवाई का निर्माण किया गया है.

गौठान में एक और महिला समूह कार्यरत हैं. नाम है- शक्ति महिला स्व-सहायता समूह. शक्ति महिला स्व-सहायता समूह को ही जैविक कीटनाशक दवाई निर्माण काम किया गया है. समूह की महिलाओं को दवाई निर्माण से संबंधित प्रशिक्षण दिया गया है.

शक्ति समूह की अध्यक्ष भगवती साहू का कहना है कि गौठान में गोमूत्र की खरीदी का कार्य शुरू होने के साथ ही पशुपालक किसान गोमूत्र बेचने के लिए बड़ी संख्या में पहुँच रहे हैं. रोजाना गोठान में 50 लीटर गोमूत्र का संग्रहण हो रहा है. गोमूत्र को जैविक कीटनाशक बदलने का काम भी इसी तेजी के साथ चल रहा है. क्योंकि जैविक खाद के साथ जैविक दवाइयों की मांग भी लगातार बढ़ती जा रही है. ग्रामीणों को रुझान जैविक खेती की ओर बढ़ने लगा है. हमारे समूह के द्वारा किसानों की मांग को देखते हुए ब्रमास्त्र और जीवामृत का निर्माण किया जा रहा है. समूह को इसके विक्रय से अच्छा फायदा हो रहा है.

भगवती साहू यह भी बताती है कि हमारे ही समूह की ओर दुग्ध उत्पादन का भी कार्य किया जा रहा है. गौठान परिसर में इसके लिए हमें जगह दी गई है. परिसर में पशु शेड का निर्माण भी किया गया है. समूह की ललिता कौर कहती है कि 27 रुपए लीटर की दर से अब तक 5 हजार 113 लीटर दूध का विक्रय किया जा चुका है. इससे करीब 1 लाख 38 हजार की आमदनी हुई है.

वहीं नारी शक्ति स्व-सहायता समूह की ओर से बकरीपालन का काम किया जा रहा है. इसके लिए समूह को अलग से जगह दी गई है. बकरीपालन के लिए गौठान में अलग शेड निर्माण किया गया है. समूह की ओर से अभी 39 बकरा-बकरियां पाली जा रही है. बकरीपालन समूह के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है. क्योंकि 2 बकरों की बिक्री से ही 23 हजार रुपये की आमदनी हो गई है.

इसी तरह से जेवरतला गांव में पर्यावरण सुरक्षा पर भी जोर देकर काम किया है. गांव में वृक्षारोपण बड़े पैमाने पर किया गया है. सौंदर्यीकरण के लिए विशेष प्रयास गांव में हुआ है. गांव में फलदार पौधे लगाए गए हैं. इससे भी आय का एक साधन जुटाया गया है. वहीं जल संरक्षण पर गांव में विशेष काम हुआ है. गांव में कुओं का निर्माण भी हुआ है.

जेवरतला गांव को औद्योगिक ग्रामीण विकास वाले गांव के रूप में विकसित किया जा रहा है. गांव में तैयार उत्पादों से ग्रामीणों को रोजागार भी मिल रहा और गांववाले आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रहे हैं. आज यह है गांव प्रदेश में गिने-चुने आदर्श गांवों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है. और यह संभव हो सका सरकार की सुराजी योजना से. जेवरतला में सुराजी से सुराज को देखा जा सकता है.