रायपुर. यू तो इस विधानसभा चुनाव में कई नामी हस्तियां मुख्यमंत्री, मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, पीसीसी चीफ, नेता प्रतिपक्ष समेत अन्य चुनाव लड़ रहे है. वहीं कुछ सीटें ऐसी भी है जहां कांग्रेस ने अब तक उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस ने कसडोल विधानसभा सीट से एक टेंट हाउस संचालक की बेटी शकुंतला साहू को टिकट देकर सबकौ चौंका दिया है. वे विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के सामने चुनाव लड़ रही है. इस सीट से अंतिम दौर तक कांग्रेस की ओर से पूर्व विधायक रहे महंत रामसुंदर दास का नाम चल रहा था,लेकिन अंतिम समय में महंत रामसुंदर दास का नाम काटकर कांग्रेस ने शकुंतला साहू पर अपना दांव लगा दिया है.
लल्लूराम.कॉम से बातचीत में शकुंतला साहू ने बताया कि वे बीजेपी प्रत्याशी को हराने की रणनीति पर काम करना टिकट मिलने के बाद से ही शुरु कर दी है. उन्होंने बताया कि उनके पिता का एक छोटा सा टेंट हाउंस है, हालांकि उनके पिता ग्राम रसौटा के वर्तमान सरपंच है और इसके पहले भी वे 2 बार सरपंच रह चुके है. इसके अलावा शकुंतला वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य भी है. इस खास बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि जब से टिकट की घोषणा हुई है देर रात से उन्हें इतने ज्यादा फोन कॉल्स अा रहे है जिससे वे काफी उत्साहित हो गई है.
काफी समय बाद मिला स्थानीय को मौका
कसडोल सीट के इतिहास की बात की जाये तो 1998 के बाद कांग्रेस ने स्थानीय चेहरे को मैदान में उतारा है. क्योकि इससे पहले इस सीट से कांग्रेस ने स्थानीय चेहरा कन्हैया लाल शर्मा को मैदान में उतारा था उसके बाद कभी स्थानीय प्रत्याशी को टिकट नहीं दी गयी थी.इसके साथ ही पहली बार कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग से किसी प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाया है. 2003 से 2013 लगातार राजकमल सिंघानिया यहाँ से चुनाव लड़ते आये है और वो सामान्य वर्ग से आते है. इस बार कसडोल विधानसभा के कांग्रेस कार्यकर्ता स्थानीय प्रत्याशी की मांग भी लगातार कर रहे थे, जिस पर कांग्रेस आलाकमान ने मुहर लगाईं है.
कसडोल सीट का सियासी समीकरण
शुरू से ही कसडोल विधानसभा कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. 1998 और 2013 को छोड़ दिया जाए तो लगातार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है. पिछली बार की बात करे तो भाजपा के गौरीशंकर अग्रवाल ने कांग्रेस प्रत्याशी राजकमल सिंघानिया को करीब तीस हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया था. जबकि इससे पहले राजकमल सिंघानिया दो बार के विधायक थे. इस बार कांग्रेस ने ओबीसी कार्ड खेलकर पिछड़े वर्ग के बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश की है.