शशि देवागंन, राजनांदगांव. आज तक आप लोगों ने मिट्टी के मटके, मूर्तियों और अन्य चीजों पर कलाकरी करते देखा होगा. लेकिन अब आपको एक ऐसे कलाकारी के बारे में बताने जा रहे है. जिसे पढ़कर आपकों भरोसा ही नहीं होगा, कि कभी ऐसा भी हो सकता है. दरअसल जिले के कन्हारपुरी गांव में गोपाल पटेल नाम का युवक नुकीले औजार से बल्ब पर कलाकारी करते हुए उस पर नाम उकेरता है. साथ ही लकड़ी ,पत्थर,सीमेंट और मिट्टी से मूर्ति भी बनाता है. इसकी कारीगरी ऐसी की तोड़े बिना बल्ब पर नुकीले औजार से नाम लिखती है.

गोपाल बल्ब में नुकीले औजार से लोगों का नाम और कलाकृति बना रहे है. गोपाल के पिता स्व मगनलाल पटेल भी कारीगरी का काम करते थे. कांच के टुकड़े में देवी देवताओं की मूर्ति बनाते थे. गोपाल के दादा भी कारीगरी का काम करते थे और कारीगरी उनको विरासत में मिली है. गोपाल ने अपने पिता को कारीगिरी करते हुए देखते थे और पिता से ही कारीगरी और शिल्पकारी करना सीखा है. बचपन से ही अपने दादा-पिता को कांच के दुकड़ों और पत्थरों में मूर्ति बनाते और नाम लिखते देखा करता था. जिसके बाद मन में कारीगरी करने की ठानी और आज बिना बल्ब तोड़े बल्ब में नाम और कलाकृतिया बनाते है. इसके आलावा  लकड़ी, पत्थर, सीमेंट और मिटटी से मूर्ती बनाते है.

वहीं गोपाल का कहना है की ये कला उनको विरासत में मिली है और अपनी पीढ़ियों की कला को आगे ले जाने की बात कह रहे है. गोपाल ने बताया कि वे नुकीले औजार से किसी का भी नाम लिखते है और बल्ब में आकृतियां बनाते है. नुकीले औजार के बाद भी बल्ब फ्यूज नहीं होता और रौशनी में नाम की परछाई स्पष्ट नजर आती है. गोपाल ने ये भी बताया कि आठ साल की उम्र में अपने पिता से कला की बारीकियां शिखा करते थे और उस समय से बल्ब में नाम और आकृतिया लिखते आ रहे है. गोपाल 12 कक्षा की पढाई करने और पिता के निधन के बाद अपनी खुद की दुकान खोलकर कारीगरी कर रहे है. वे दादा और पिता की कला को आगे बढा रहे है और इस कला को जन -जन तक पहुंचा रहे है.

गोपाल खैरागढ़ संगीत महाविद्याल में पढ़ना चाहते थे, लेकिन घर की माली हालत ठीक नहीं होने की वजह से नहीं पढ़ सके. अब वे  अपने बच्चे को आगे कला के क्षेत्र में पढ़ना चाहते है. गोपाल ने जिला प्रशासन और सरकार से कलाकारों की ओर ध्यान नहीं देने की बात भी कही. गोपाल ने कहा कि स्वरोजगार और रोजगार के बेहतर साधन नहीं होने के कारण गांव में रहने वाले कलाकर हुनरमंद होने के बाद भी उभर नहीं पाते एसे में उन्होंने सरकार से मदद करने की बात कही है.

छोटे से गांव में अपनी कला का जौहर दिखा रहे गोपाल बल्ब के आलावा मूर्ति भी बनाते है और इनकी मुर्तिया बाहर जाती है. इनके द्वारा विशेष तरह के पत्थरों  में मूर्ति की आकृति उकेरी जाती है. गोपाल देवी तुलसी की प्रतिमा पत्थर से बना रहे है. वहीं पिता के निधन के बाद गोपल और उसका परिवार साथ मिलकर मुर्तिया बना रहा है. परिजनों  का कहना है की वो गोपाल के साथ काम में हाथ बटा रहे है और काम भी सिख रहे है, ताकि आगे चलकर गोपाल जैसे कलाकार बन सके.