रायपुर. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी कहते हैं। केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कर्इ अन्य देशों में में भी जन्माष्टमी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। साथ ही उत्तर भारत में मथुरा आैर वृंदावन में इस दिन विशेष उत्सव आैर पूजा होती है। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की मध्य रात्र में रोहिणी नक्षत्र में वृष राशि के चंद्रमा पर हुआ था। इस वर्ष जन्माष्टमी का पर्व 2 सितंबर, रविवार के दिन मनाया जा रहा है। विशेष बात ये है कि सालों बाद एेसा अवसर आया है जब सूर्यवार में चंद्रवार की मध्य रात्र को अष्टमी तिथि आैर रोहणी नक्षत्र का योग वृष लग्न में हो हो रहा है। अर्थात इस जन्माष्टमी को रोहिणी प्रशस्त जन्माष्टमी कहा जायेगा।
पूजा करने की विधि
बेशक जन्माष्टमी का पूजन मध्य रात्रि को होता है परंतु इसकी तैयारी प्रात:काल से ही प्रारंभ हो जाती है। इसके लिए सुबह स्नान आदि से निवृत हो कर भगवान को प्रणाम करके व्रत का संकल्प लें। इसके बाद केले के खंभे, आम और अशोक की पत्तियों से मंडप तैयार करके उसमें पालना सजायें। घर के मुख्यद्वार पर मंगल कलश एवं मूसल स्थापित करें। इसके बाद मध्य रात्र होते ही शंख आैर घंटे की ध्वनि के बीच गर्भ के प्रतीक नार वाले खीरे से भगवान का जन्म कराएं। तत्पश्चात पंचोपचार पूजन करें। इसके लिए सर्वप्रथम बाल कृष्ण जिन्हें बाल मुकुंद भी कहते हैं, की मूर्ति को एक पात्र में रख कर दुग्ध, दही, शहद, पंचमेवा आैर सुंगध युक्त शुद्घ जल आैर गंगा जल से स्नान करायें, फिर उन्हें पालने में स्थापित करें, आैर वस्त्र धारण करायें। इस अवसर पर भगवान को पीले वस्त्र पहनाना अति उत्तम माना जाता है। इसके बाद भगवान की विधि विधान से आरती करें। अंत में उन्हें नैवैद्य अर्पित करें। नैवैद्य में फल आैर मिष्ठान के साथ अपनी परंपरा के अनुसार धनिया, आटे, चावल या पंच मेवा की पंजीरी भोग लगाने के लिए शामिल करें। भगवान को इत्र अवश्य लगायें।
जन्माष्टमी की पूजा के दौरान कुछ खास बातों का ध्यान रखें, जैसे सबसे पहले भगवान के निकट एक बांसुरी रखना ना भूलें क्योंकि उसके बिना श्री कृष्ण का श्रंगार पूरा नहीं होता। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम की तो विधि पूर्वक पूजा करें ही, इसके साथ ही जहां भी पूजा का मंडप सजायें वहां बाल कृष्ण को दुग्धपान कराती देवकी, विष्णु जी आैर लक्ष्मी जी की युगल मूर्ति, नंदजी, बलदेव आैर यशोदा जी की मूर्ति भी स्थापित करें। जन्माष्टमी की पूजा के उपरांत इन सभी के चरण स्पर्श करें। भगवान पर जल अर्पित करते समय यदि दक्षिणमुखी शंख का प्रयोग किया जाये तो अति उत्तम रहता है।