विजयवाड़ा। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने धर्म परिवर्तन करने वालों से अनुसूचित जाति (एससी) का दर्ज छिन लेने का बड़ा फैसला दिया है. एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दायर एक मामले को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि जो लोग धर्म परिवर्तन करते हैं, वे धर्म परिवर्तन के क्षण से अधिनियम के तहत प्रदत्त सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते.

गुंटूर जिले के कोथापलेम के पादरी चिंतादा आनंद द्वारा उनके और पांच अन्य के खिलाफ दर्ज मामले को चुनौती देने के लिए अक्कला रामी रेड्डी नामक व्यक्ति ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. आनंद ने आरोप लगाया कि रेड्डी और अन्य ने जातिसूचक गाली का इस्तेमाल करते हुए उनके साथ दुर्व्यवहार किया. पुलिस ने एससी/एसटी मामलों के लिए एक विशेष न्यायालय के समक्ष आरोपपत्र दायर किया. रेड्डी ने उच्च न्यायालय से इसे खारिज करने और विशेष न्यायालय के समक्ष सभी कार्यवाही पर रोक लगाने का अनुरोध किया.

याचिकाकर्ता ने कहा कि शिकायतकर्ता ने दावा किया है कि वह 10 वर्षों से पादरी के रूप में काम कर रहा था, और उसने स्वेच्छा से अपना धर्म बदला है. याचिकाकर्ता के वकील फणी दत्त ने तर्क दिया कि ईसाई धर्म जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं देता है. उन्होंने कहा कि संविधान में अन्य धर्मों में जाति व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं है. साथ ही, जो लोग हिंदू धर्म से दूसरे धर्मों में धर्मांतरण करते हैं, उन्हें अनुसूचित जाति नहीं माना जा सकता.

न्यायमूर्ति एन हरिनाथ ने कहा कि जब याचिकाकर्ता ने कहा था कि वह पिछले 10 वर्षों से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है, तो पुलिस को उसके खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम नहीं लगाना चाहिए था. अदालत ने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम का उद्देश्य उन समूहों से संबंधित व्यक्तियों की रक्षा करना है, न कि उन लोगों की जो दूसरे धर्मों में धर्मांतरित हो गए हैं.

न्यायमूर्ति हरिनाथ ने कहा कि केवल इस आधार पर एससी/एसटी अधिनियम लागू करना कि उसका जाति प्रमाण पत्र रद्द नहीं किया गया, वैध आधार नहीं हो सकता. यह देखते हुए कि शिकायतकर्ता ने एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग किया है, अदालत ने रेड्डी और अन्य के खिलाफ मामला रद्द कर दिया.