अंबिकापुर. सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक में स्थित राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरवीयूएनएल) को आवंटित परसा ईस्ट कांता बासन (पीईकेबी) कोयला खदान में उत्पादन 23 सितंबर से ही बंद हो गया. जैसा कि डर था कि इससे क्षेत्र के हजारों लोग प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष तरीके से बेरोजगार हो गए. साथ ही राजस्थान की जनता को भी अब सस्ती बिजली भी नहीं मिल पाएगी. हालांकि कंपनी द्वारा खदान में कार्यरत अलग-अलग कौशल के 200 से अधिक कर्मचारियों को स्थानांतरित कर अपने अन्य प्रोजेक्ट्स में भेज कर उनकी रोजी बचाने का प्रयास किया है.
बता दें कि, स्थिति इतनी गंभीर बनी हुई है कि खदान प्रबंधन को अपने नोटिस में उत्पादन बंद होने की दिए गए तारीख से एक हफ्ते पहले ही बंद करने को मजबूर होना पड़ा है. जबकि उत्पादित कोल का परिवहन भी 1 अक्टूबर 2023 से बंद होने की पूरी संभावना है. वहीं अब शेष सैकड़ों और हजारों अकुशल श्रमिकों और स्थानीय ग्रामीणों को अपने रोजी-रोटी के लिए एक बार फिर से गांव छोड़कर दूसरे शहरों में पलायन करना पड़ेगा. तिनका-तिनका जोड़कर बड़ी मेहनत से बसाए अपने घरौंदे को छोड़ने के डर और चिंता में इन ग्रामीणों ने आक्रोशित होकर जिला प्रशासन सहित शासन के विरुद्ध जमकर नारेबाजी की. ग्राम पंचायत परसा, साल्ही, जनार्दनपुर, फतेहपुर, तारा, शिवनगर, सुस्कम और घाटबार्रा ग्रामों के 300 से अधिक महिला एवं पुरुष ग्रामीणों का एक समूह अंबिकापुर से बिलासपुर मार्ग के साल्ही मोड़ पर पिछले 135 दिनों से धरना प्रदर्शन पर बैठा हुआ है.
दरअसल, कुछ महीनों पहले ही पीईकेबी खदान के ठेकेदारों ने श्रमिक, ड्राइवर और अन्य कर्मचारीयों को नौकरी से निकालना शुरू कर दिया गया था. पीईकेबी खदान की ठेका कंपनी ने खदान बंद होने के नोटिस गत 18 सितंबर को चस्पा कर खदान का संचालन सितंबर के बाद जारी रखने में अपनी असमर्थता व्यक्त की थी. प्रबंधन द्वारा सूचना नोटिस में “खनन भूमि की अनुपलब्धता के परिणाम स्वरूप शेष भूमि पर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा ट्री फॉलिंग कर भूमि को आरआरवीयूएनएल को सौंपने तक की अवधि में कार्यरत अपने श्रमिक बंधुओं को निरंतर नियोजित रखने के संदर्भ में आगामी दिनों में निर्णय लिया जा सकता है.“ इस तरह खदान में कार्यरत स्थानीय लोगों द्वारा बिना किसी गलती के अपनी आजीविका खो दिया गया है.
नेताओं ने नहीं सुनी इनकी करुण पुकार
इन ग्रामीणों का समूह पिछले 135 दिनों से साल्ही मोड़ में अपना प्रदर्शन तो कर ही रहा है, वहीं 300 किमी दूर रायपुर में भी प्रदेश के शीर्ष नेताओं को ज्ञापन सौंपकर खदान को बंद होने से बचाने के लिए अनुरोध के लिए इनका चौथा दौरा था. इन्हीं ग्रामीणों में से 30 महिला व पुरुष ग्रामीणों का एक समूह गत 18 सितंबर को रायपुर पहुंचकर पीईकेबी खदान के नियमित संचालन का ज्ञापन सौंपकर मुख्यमंत्री सहित राज्यपाल से भी गुहार लगाई थी. यहां तक की कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी तक को भी चिट्ठी लिखकर अपनी परेशानी से अवगत करा चुके हैं. बेरोजगारी का मुंह ताकत ये लोग कई दिनों से प्रयासरत थे कि, उनकी नौकरी बचाने की इस गुहार को कोई तो सुनेगा जो इनके एकमात्र आजीविका के साधन पर ताला लगने से बचाएगा. लेकिन ऐसा न हो सका. खदान बंद होने से बेचैन ग्रामीण इस सोच में पड़ गए हैं कि, वे अब कहां जाएं, कौन उनकी सुध लेगा?
विधानसभा चुनाव 2023 का बहिष्कार करने की बना रहे मंशा
साल्ही गांव से आंदोलन में बैठे कई ग्रामीणों सहित केश्वर सिंह, मोहर पोंर्ते, कृष्णाश्याम और मोहर लाल कुसरो ने बताया कि विदेशी चंदा पाने वाले अभियानकारी क्या अब उन्हें सरकारी नौकरी दिलवाएंगे ? क्या अब उनकी इस स्थिति की सुध खदान विरोधी आंदोलनकारी और एनजीओ के ठेकेदार लेंगे ? क्या ये लोग इतनी बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए लोगों के घर का चूल्हा जलवाएंगे ? और क्या ये लोग क्षेत्र में चलाए जा रहे उच्च गुणवत्ता की शिक्षा और विकासकार्यों बंद होने से बचा पाएंगे ? अब जब श्रमिकों का रोजगार छीन लिया गया है तब रायपुर से चले आने वाले आंदोलनकारी अब गायब हैं. जबकि, खर्चीले अभियान चलाने वाले आंदोलनकारियों के द्वारा हाई कोर्ट में पांचों केस हारने के बाद भी जिला प्रशासन द्वारा अभी तक चल रही पीईकेबी खदान पर दूसरे चरण का काम शुरू नहीं करा पाया.
अब चूंकि इसमें ताला लगने जा रहा है. तब हम अपनी व्यथा किसे सुनाएं, क्योंकि हमारी गुहार ना तो क्षेत्र के विधायक, ना सरकार और ना ही प्रदेश के राज्यपाल ने सुनी है. इसलिए हम सभी क्षेत्रवासी इस विधानसभा चुनाव 2023 का बहिष्कार करने की सोच रहे हैं.
खदान विरोधी एनजीओ और आंदोलनकारियों की दोहरी भूमिका
खदान विरोधी एनजीओ और आंदोलनकारियों के कार्यकर्ताओं ने खनन परियोजना के बारे में दोहरी भूमिका निभाते हुए सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से कई तरह की गलत चीजें फैलाई हैं. कुछ लोगों को बर्गलाने में सफल भी रहे. इन्होंने आरोप लगाया कि खनन की वजह से हसदेव अरण्य को उजाड़ने की योजना है, जबकि हकीकत ये है की हसदेव अरण्य का वन क्षेत्र तकरीबन 1,80,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें से कुल 4000 हेक्टेयर क्षेत्र हसदेव अरण्य के कुल क्षेत्रफल का 2.2% के अंदर परसा ईस्ट और परसा खदान आवंटित की गई हैं.
ताज्जुब की बात ये है कि खुद को आदिवासियों के खैरख्वाह कहने वाले कुछ स्वयं नियुक्त पर्यावरणविद आज कल रहस्मयी तरीके से गायब हैं. इन लोगों के फर्ज़ी हसदेव बचाओ अभियान का परिणाम आज ये निकला है कि राजस्थान की बिजली उत्पादक कंपनी राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के पास अब खनन बंद करने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा.
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