अमित पांडेय, खैरागढ़। छुईखदान के संडी क्षेत्र में चूना पत्थर खनन और श्री सीमेंट फैक्ट्री लगाने की योजना ने पूरे इलाके में बेचैनी और आक्रोश पैदा कर दिया है। गांवों का कहना है कि जिस परियोजना को विकास बताया जा रहा है, वही उनके लिए विनाश का कारण बन सकती है। इसी डर और अनुभव ने किसानों को एकजुट कर दिया है और अब यह विरोध एक बड़े जनआंदोलन का रूप ले चुका है। किसानों का साफ कहना है कि उनकी खेती पूरी तरह जमीन के पानी, तालाबों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। खनन शुरू होते ही सबसे पहला असर पानी पर पड़ेगा। भू-जल नीचे जाएगा, कुएं और हैंडपंप सूखेंगे और धीरे-धीरे खेत बंजर हो जाएंगे।

किसानों का तर्क है कि आसपास के कई इलाकों में खनन के बाद यही हालात बने हैं, जहां खेती खत्म होने के साथ लोगों को गांव छोड़ने तक की मजबूरी आई। पिछले कुछ महीनों में जब कंपनी के लोग और अधिकारी गांवों में सर्वे के लिए पहुंचे, तब लोगों की चिंता और बढ़ गई।

ग्रामीणों का आरोप है कि उनसे साफ और खुली सहमति नहीं ली गई। कहीं मुआवजे और नौकरी का सपना दिखाया गया, तो कहीं दबाव की बात सामने आई। इसी दौरान किसानों को लगा कि अगर अभी आवाज नहीं उठाई गई तो उनकी जमीन चुपचाप चली जाएगी। इसी के बाद गांव-गांव बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ और यह चर्चा जल्द ही पूरे क्षेत्र की सामूहिक आवाज बन गई। पंडरिया-बिचारपुर भाठा में हुई किसान महापंचायत में 55 गांवों से हजारों किसान जुटे। बड़ी संख्या में महिलाओं की मौजूदगी ने यह साफ कर दिया कि यह लड़ाई केवल कुछ लोगों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है।

महापंचायत में आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए किसान अधिकार संघर्ष समिति का गठन किया गया। किसानों ने साफ शब्दों में कहा कि यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक खनन परियोजना पूरी तरह रद्द नहीं हो जाती। इसी पंचायत में एक सख्त फैसला भी लिया गया कि खनन कंपनी के कर्मचारी, परियोजना समर्थक अधिकारी और नेता गांवों में प्रवेश नहीं करेंगे। किसानों का कहना है कि ऐसे लोग गांवों में भ्रम फैलाकर आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। पंडरिया भाठा को आंदोलन का स्थायी केंद्र बनाया गया है।

तय किया गया है कि परियोजना रद्द होने तक हर महीने किसान पंचायत होगी। आंदोलन को सामाजिक और सांस्कृतिक ताकत देने के लिए दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर निर्माण का भी निर्णय लिया गया, ताकि गांवों की एकता और मजबूत हो। इस महापंचायत में किसानों ने यह भी दिखाया कि उनका आंदोलन सिर्फ विरोध तक सीमित नहीं है। रक्तदान शिविर लगाकर जरूरतमंद मरीजों के लिए रक्तदान किया गया।

किसानों का कहना है कि जमीन बचाने की लड़ाई के साथ समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाना भी उतना ही जरूरी है। कुल मिलाकर संडी क्षेत्र में खनन के खिलाफ खड़ा हुआ यह आंदोलन अचानक नहीं है। यह लंबे समय से उपेक्षा, डर और अनुभवों से उपजा है। किसानों के लिए यह लड़ाई अब विकास के नाम पर जमीन और पानी गंवाने की नहीं, बल्कि अपने गांव, खेती और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य बचाने की लड़ाई बन चुकी है। यही वजह है कि गांव-गांव से एक ही आवाज उठ रही है अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं।