Tibet Earthquake:  चीन (China Earthquake) के स्वायत्त वाले तिब्बत (Tibet) के शिजांग (xizang) में मंगलवार (7 जनवरी) को आए 7.1 तीव्रता वाले शक्तिशाली भूकंप ने साल के शुरुआत में ही लोगों को डरा दिया है। भूकंप ने तिब्बत में जमकर तबाही मचाई। भूकंप में मरने वालों की संख्या बढ़कर 126 हो गई है, जबकि कम से कम कम 200 लोग घायल हुए हैं। 9 घंटे में 100 से अधिक झटके से हजारों मकान जमींदोज हो गए। शिगात्से शहर (Shigatse) पूरी तरह मलबे में तब्दील हो गय़ा है। मंजर ऐसा कि हर तरफ मलबा ही मलबा दिखाई दे रहा है। भूकंप का प्रभाव 500 किमी दूर नेपाल, भारत के बिहार, बंगाल, पूर्वोत्तर के राज्यों और भूटान में भी महसूस हुआ।

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चीन भूकंप नेटवर्क केंद्र ने भूकंप का केंद्र टिंगरी काउंटी में 10 किमी (6.2 मील) की गहराई पर बताया है। इसे एवरेस्ट के इलाके का उत्तरी प्रवेश द्वार कहा जाता है। चीन भूकंप नेटवर्क केंद्र के मुताबिक भूकंप के दौरान तेज झटके महसूस किए गए। इसके बाद बाद 4.4 तीव्रता तक के 150 से अधिक Aftershocks महसूस हुए।

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न्यूज एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, भूकंप के केंद्र से 20 किलोमीटर (12 मील) के भीतर तीन कस्बे और 27 गांव हैं। इनकी कुल आबादी लगभग 6,900 है और 1,000 से ज्यादा घर तबाह हो गए है।

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नेपाल-तिब्बत-भारत ट्राई-जंक्शन के नजदीक है शिगास्ते शहर

शिगाजे पूर्वोत्तर नेपाल में खुम्बू हिमालय पर्वतमाला में लोबुत्से से 90 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है, और यह तिब्बत का अंतिम सीमावर्ती शहर है, जो नेपाल-तिब्बत-भारत ट्राई-जंक्शन से अधिक दूर नहीं है। यह इलाका सिक्किम से मिलता है। शिगाजे को शिगास्ते के नाम से भी जाना जाता है जो भारत की सीमा के करीब है। शिगास्ते को तिब्बत के सबसे पवित्र शहरों में से एक माना जाता है। यह पंचेन लामा की पारंपरिक पीठ है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के एक प्रमुख व्यक्ति हैं। तिब्बत में पंचेन लामा, आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के बाद दूसरे नंबर की हैसियत रखते हैं।

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 कुदरती कहर या ‘ड्रैगन’ की करतूत

हिमालय सब कॉन्टिनेंट में पिछले कुछ सालों में भूकंप आने की संख्या काफी बढ़ गई है। अक्सर भारतीय और यूरेशियाई टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव के कारण भूकंप से प्रभावित होते हैं। ये सही है कि भू-संरचना के मुताबिक हिमालय क्षेत्र में भूकंप आना कुदरती तौर पर स्वभाविक है। लेकिन पिछले कुछ सालों में इसकी रफ्तार काफी बढ़ी है। ऐेसे में भू-वैज्ञानिक के मन में यह सवाल उठने लगा है कि इसके पीछे  कुदरती कहर या ‘ड्रैगन’ की करतूत की है।

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वहीं चीन हिमालय के इन संवेदनशील इलाकों में लगातार कई बड़ी परि.योजनाएं बना चुका है। इन क्षेत्रों में प्राकृतिक के साथ जमकर खिलवाड़ ड्रैगन कर रहा है। पहाड़ों को अंदर से खोखला किया जा रहा है।

मंगलवार का भूकंप का केंद्र माउंट एवरेस्ट से लगभग 80 किलोमीटर (50 मील) उत्तर में था, जो दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत है। 1950 से अब तक ल्हासा ब्लॉक में 6 या उससे अधिक तीव्रता के 21 भूकंप आ चुके हैं, जिनमें से सबसे बड़ा भूकंप 2017 में मेनलिंग में आया 6.9 तीव्रता का भूकंप था। 2015 में नेपाल की राजधानी काठमांडू के पास 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें देश के अब तक के सबसे भयानक भूकंप में लगभग 9,000 लोग मारे गए थे और हज़ारों लोग घायल हुए थे। मृतकों में माउंट एवरेस्ट बेस कैंप में हिमस्खलन की चपेट में आने से कम से कम 18 लोग मारे गए थे।

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मेनलिंग तिब्बत की यारलुंग जांगबो नदी के निचले इलाकों में स्थित है, जहां चीन दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत बांध बनाने की योजना बना रहा है। इस प्रोजेक्ट को लेकर भारत ने भी अपनी चिंताएं जाहिर की हैं> हालांकि, बीजिंग अपनी योजना के साथ आगे बढ़ रहा है। चीन ने 6 जनवरी को कहा कि ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाले बांध से भारत और बांग्लादेश पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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हिमालय कैसे बना टाइम बम

बता दें कि इस पृथ्वी पर भारत की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला हिमालय भारतीय तथा यूरेषियन प्लेट के टकराव के कारण बनी है। भारतीय विवर्तनीय परत (इंडियन प्लेट) का चीन की तरफ उत्तरी दिशा में विचलन चट्टानों पर लगातार दबाव डाल रहा है। जिससे वे अंदर से दोनों प्लेटें एक दूसरे के ऊपर चढ़ रही है। इसी कारण भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव से बने हिमालय क्षेत्र में ऐसी भूकंपीय गतिविधि आम है। इसकी जद में पूरा उत्तर और पूर्वी भारत, नेपाल, भुटान, तिब्बत और दक्षिणी चीन का क्षेत्र आता है।

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नेपाल दुनिया के सबसे सक्रिय भूकंपीय क्षेत्रों में से एक पर स्थित है, जहां भारतीय टेक्टोनिक प्लेट प्रति वर्ष लगभग 5 सेमी की दर से उत्तर की ओर यूरेशियन प्लेट को धकेलती है। यह हलचल न केवल हिमालय के पहाड़ों को ऊपर उठाती है, बल्कि पृथ्वी की सतह के नीचे अत्यधिक तनाव भी पैदा करती है। जब संचित तनाव चट्टानों की ताकत से अधिक हो जाता है, तो यह भूकंप के रूप में निकलता है। यही कारण है कि नेपाल और उसके आस-पास के हिमालयी क्षेत्र में अक्सर भूकंपीय गतिविधि होती रहती है। नेपाल की जमीन की ऊपरी परत अस्थिर चट्टानों से बनी है, जो भूकंप के प्रभावों को बढ़ाती है, जिससे यह और भी कमज़ोर हो जाती है। काठमांडू जैसे शहरी क्षेत्रों में उच्च जनसंख्या घनत्व, साथ ही अनियमित निर्माण प्रथाओं के कारण हताहतों और क्षति का जोखिम और भी बढ़ जाता है।

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