नई दिल्ली। तिब्बत की निर्वासित सरकार ने चीन पर गंभीर आरोप लगाया है. तिब्बती राष्ट्रपति पेंपा त्सेरिंग ने कहा है कि तिब्बती लोग चीन के दमन के कारण ‘धीमी मौत मर रहे हैं. उन्होंने लोकतांत्रिक देशों को चीनी हठधर्मिता के खिलाफ खड़े होने की अपील भी की है.
तिब्बती राष्ट्रपति पेंपा त्सेरिंग ने कहा कि दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों को तिब्बतियों, उइगर नेताओं और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं जैसी ‘आंतरिक ताकतों’ पर गौर करना चाहिए, जिससे बीजिंग पर उसके आक्रामक दृष्टिकोण को बदलने और देश के भीतर ‘सकारात्मक बदलाव’ लाने के लिए दबाव डाला जा सके. उन्होंने कहा कि चीन के रणनीतिक उद्देश्यों और योजनाओं की हद को लेकर दुनिया में ज्यादा समझ नहीं है, और बीजिंग की साजिशें क्या हैं, इस बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है.
पंचेन लामा पर एक जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान निर्वासित केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग या राजनीतिक नेता ने चीन पर तिब्बत के अस्तित्व के ऐतिहासिक आधार को नष्ट करने का आरोप लगाया. पेंपा त्सेरिंग ने कहा कि मैं दुनिया को बता रहा हूं कि हम धीमी मौत मर रहे हैं, ड्रैगन (चीन) द्वारा हमारी सांसें निचोड़े जाने से हम त्रस्त हो रहे हैं. चीन विरोधी विद्रोह के 1959 में असफल होने के बाद 14वें दलाई लामा तिब्बत से भागकर भारत आ गए और यहां उन्होंने निर्वासित सरकार की स्थापना की.
तिब्बत मांग रहा आजादी
चीन सरकार के अधिकारी और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधि 2010 के बाद से औपचारिक वार्ता के लिए नहीं मिले हैं. बीजिंग दलाई लामा पर ‘अलगाववादी’ गतिविधियों में शामिल होने और तिब्बत को विभाजित करने की कोशिश करने का आरोप लगाता रहा है, और उन्हें एक विभाजनकारी व्यक्ति मानता है. हालांकि, तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने जोर देकर कहा है कि वह स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि ‘मध्य-मार्ग दृष्टिकोण’ के तहत ‘तिब्बत के तीन पारंपरिक प्रांतों में रहने वाले सभी तिब्बतियों के लिए वास्तविक स्वायत्तता’ की मांग कर रहे हैं.