माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं। इस दिन व्रत करने से सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भीष्म द्वादशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद संध्यावंदन करें और षोडशोपचार विधि से लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा करें। भगवान की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुंकुम, दूर्वा का उपयोग करें। पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार कर प्रसाद बनाएं व इसका भोग भगवान को लगाएं। इसके बाद भीष्म द्वादशी की कथा सुनें और भगवान का पूजन करें।
देवी लक्ष्मी समेत अन्य देवों की स्तुति भी करें तथा पूजा समाप्त होने पर चरणामृत एवं प्रसाद का वितरण करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं व दक्षिणा दें। इस दिन स्नान-दान करने से सुख-सौभाग्य, धन-संतान की प्राप्ति होती है। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें और सम्पूर्ण घर-परिवार सहित अपने कल्याण धर्म, अर्थ, मोक्ष की कामना करें।
महत्व
माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के ठीक दूसरे दिन भीष्म द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को भगवान कृष्ण ने भीष्म को बताया था और उन्होंने इस व्रत का पालन किया जिससे इसका नाम भीष्म द्वादशी पड़ा। यह व्रत सब प्रकार से सुख और वैभव देने वाला है। इस दिन उपवास करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस व्रत में ब्राह्मण को दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ, आदि करने से अमोघ फल प्राप्त होता है।
पूजा विधि
भीष्म द्वादशी के दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान के पश्चात भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। पूजा में मौली, रोली, कुमकुम, केले के पत्ते, फल, पंचामृत, तिल, सुपारी, पान और दुर्वा आदि रखना चाहिए। पूजन से पहले भीष्म द्वादशी की कथा सुनें। इसके बाद देवी लक्ष्मी और अन्य देवों की स्तुति करें। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दक्षिणा दें और उसके बाद ही खुद भोजन करें। इस दिन अपने पूर्वजों का तर्पण करने का भी विधान है।