युवावस्था में कॅरियर, रिश्ते, व्यक्तिगत समस्याएं जैसे लव अफेयर, असफल विवाह,पढ़ाई उसके उपरांत बेरोजगारी और भविष्य के प्रति अनिश्चितता जिससे डिप्रेशन, एंग्जाइटी,सायकोसिस, पर्सनालिटी डिसऑर्डर की स्थिति बन जाती है। इन सब परिस्थितियों से वह जैसे तैसे निकलता है तो परिवार की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाओं के बोझ तले दब जाता है। फिर अर्थहीन प्रतिस्पर्धा और सामाजिक स्थिति को बनाये रखना, परिवार का टूटना, अकेलापन धीर धीरे तनाव देता जाता है।
जब कोई लगातार परेशान दिखे या कई बार डिप्रेशन से भरी बाते करें या व्यवहार करें या ऐसा व्यक्ति बहुत ज्यादा दुखी रहने लगे तथा अनिद्रा का शिकार हो जाए तो ये अवस्थाएं बेहद तनाव के खतरों को दर्शाती हैं। कोई व्यक्ति गंभीर मानसिक स्थिति तक पहुंच गया हो ऐसी मानसिकता को आम तौर पर आसानी से नहीं जाना जा सकता किंतु उस व्यक्ति की कुंडली का विश्लेषण कर उसकी मानसिकता और तनाव को समझा जा सकता है।जैसे कि किसी व्यक्ति की कुंडली में अगर उसका तृतीयेश छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो या ये ग्रह राहु जैसे ग्रहों से पापाक्रांत हो तो ऐसे ग्रहों की स्थिति बेहद निराशा पैदा कर सकती है साथ ही अगर मारकेश मारक हो जाए और ऐसे ग्रहों की दशाओं में व्यक्ति तनाव के कारण डिप्रेशन में जा सकता है।
अतः इन दशाओं में अगर किसी व्यक्ति को डिप्रेशन दिखाई दे तो उनके ग्रह दशाओं की जानकारी प्राप्त कर ग्रह शांति कराना, अकेलापन दूर करने के प्रयास करना तथा मनःस्थिति को समझते हुए उस व्यक्ति की प्रतिकूल परिस्थिति का मूल्यांकन करते हुए उसे आवश्यक सहयोग प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा सप्तमेश जो कि कालपुरूष की कुंडली में द्वितीय एवं सप्तम भाव का कारक होता है और किसी की कुंडली में अगर शुक्र तीसरे, एकादश या द्ववादश भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को शुक्र की दशा में अकेलेपन का तनाव होता है। इसके लिए शुक्र की शांति करना, दुर्गा कवच का पाठ करना, सफेद वस्तुओं का दान करना चाहिए।…