खैरागढ़। खैरागढ़ का इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय एशिया के उन कुछ चुनिंदा संस्थानों में से है, जो संगीत और कला को पूरी तरह समर्पित है. यह एशिया का पहला ऐसा संस्थान है, जो कला और संगीत में उच्च शिक्षा देने हेतु स्थापित किया गया है. इन्दिरा कला सं.वि.वि की स्थापना खैरागढ़ रियासत के 24वें राजा विरेन्द्र बहादुर सिंह तथा रानी पद्मावती देवी द्वारा अपनी राजकुमारी “इन्दिरा” के नाम पर उनके जन्म दिवस 14 अक्टूबर 1956 को की गई थी. इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय का आज 63 वां स्थापना दिवस है.
इतिहास
कहा जाता है कि राजकुमारी को संगीत का शौक था,राजकुमारी की बाल्याकाल में ही असमय मृत्यु के बाद राजा साहब और रानी साहिबा ने स्वर्गवासी राजकुमारी के शौक को शिक्षा का रूप देकर अमर कर दिया.
प्रारंभ में इन्दिरा संगीत महाविद्यालय के नाम से इस संस्था का प्रारंभ महज़ दो कमरों के एक भवन में किया गया जिसमें 4-6 विद्यार्थी एवं तीन गुरु हुआ करते थे इस संस्था के बढ़ते प्रभाव और लगातार छात्रों की वृद्धि से रानी साहिबा ने इसे अकादमी में बदलने का निर्णय लिया और फिर यह संस्था इन्दिरा संगीत अकादमी के नाम से जानी जाने लगी साथ ही एक बड़े भवन की भी व्यवस्था की गई जिसमें कमरों की संख्या ज्यादा थी समय के साथ धीरे धीरे संगीत के इस मंदिर का प्रभाव और बढ़ता गया।
इसी बीच राजा साहब व रानी साहिबा मध्य प्रदेश राज्य के मंत्री बनाये गये तब उन्होंने इसे विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किये जाने का प्रस्ताव तत्कालीन मुख्यमंत्री पं.रवि शंकर शुक्ल के समक्ष रखा जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया और समस्त औपचारिकताओं के पश्चात् राजकुमारी इन्दिरा के जन्म दिवस 14 अक्टूबर 1956 को इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की विधिवत् स्थापना कर दी गई.इसका उद्घाटन प्रियदर्शिनी इन्दिरा गांधी जी द्वारा स्वयं खैरागढ़ आकर किया गया और विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति के रूप में कृष्णक नारायण रातन्ज नकर नियुक्त किये गये.
ललित कला के क्षेत्र में यह एक अनोखा प्रयास था इस विश्वविद्यालय हेतु राजा साहब व रानी साहिबा ने अपना महल “कमल विलास पैलेस” दान कर दिया.यह विश्वविद्यालय आज भी इसी भवन से संचालित हो रहा है यहां ललित कलाओं के अंतर्गत गायन,वादन,नृत्य,नाट्य तथा दृश्य कलाओं की विधिवत् शिक्षा दी जाती है.इनके अतिरिक्त हिन्दी साहित्य,अंग्रेजी साहित्य आैर संस्कृत साहित्य विषय भी अध्ययन हेतु उपलब्ध हैं प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्क़ति एवं पुरातत्व विभाग भी इस विश्वविद्यालय का एक महत्वपूर्ण विभाग है साथ ही साथ एक संग्रहालय जिसमें विभिन्न कालों की मूर्तियां तथा सिक्कों का संग्रहण कर प्रदर्शनार्थ रखा गया है.
यहाँ आने वाले छात्रों में भारत के विभिन्न प्रदेशों के अतिरिक्त अन्य देशों जैसे श्रीलंका, थाईलैण्ड,अफगानिस्तान आदि से भी छात्र बड़ी संख्या में संगीत की शिक्षा ग्रहण करने प्रतिवर्ष आते हैं.साथ ही समय-समय पर विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार,वर्क शॉप,सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का आयोजन संस्क़ति मंत्रालय के सहयोग से किये जाते रहे हैं जिसमें देश व विदेश के ख्यातिलब्ध कलाकार,विद्वान, विषय विशेषज्ञ व संगीताचार्य अपने वक्तव्य एवं संगीत से संबंधित ज्ञान विश्वविद्यालयीन विद्यार्थियों के साथ साझा करते हैं.
शिक्षा संकाय
यहां संगीत संकाय (हिन्दुस्तानी गायन व वादन तथा कर्नाटक गायन व वादन), नृत्य संकाय (कत्थक, भरतनाट्यम्, आेडिसी), लोक संगीत संकाय,दृश्यकला संकाय (चित्रकला, मूर्तिकला व छापाकला),हिन्दी विभाग,संस्कृत विभाग,अंग्रेजी विभाग, म्यूजिकोलॉजी,प्राचीन भारतीय इतिहास आदि विभाग हैं.इन विभागों में डिप्लोमा स्तर की शिक्षा से लेकर पी.एच.डी व डी.लिट् तक शिक्षा की पूर्ण सुविधाजनक व्यवस्था है.अध्ययन हेतु विशाल ग्रन्थालय है जिसमें हजारों की संख्या में पुस्तकें,ऑडियो,विडियों का संग्रह उपलब्ध है.