रायपुर. ओरेंगुटान की लुप्त होती प्रजाति को बचाने के लिए वर्ल्ड ओरेंगुटान डे मनाया जाता है. 1992 से 2018 तक इनकी संख्या में एक बड़ा अंतर देखा गया है जो पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है. ओरेंगोटेन को बचाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 19 अगस्त को वर्ल्ड ओरेंगुटान डे के रूप में मनाया जाता है.
मानव जाति के बाद स्तनपाई जीवों में ओरेंगुटान सबसे बुध्दिमान जीव है. माना जाता है कि इनकी औसत उम्र चिड़ियाघर में 60 साल और जंगलों में 35 साल होती है.फिलहाल ओरेंगोटेन इंडोनीशिया और मलेशिया के जंगलों में पाए जाते हैं. यहां इनकी 2 उपजातियां पाई जाति हैं-
- बोर्नियाई ओरेंगोटेन ( वैज्ञानिक नाम- पोंगो पिग्मेयस )
- सुमात्राई ओरेंगोटेन ( पोंगो ऐबेलाए )
इनमें से सुमात्राई ओरेंगुटान अब बहुत कम बचे हैं इनकी नस्ल पर लुप्तिकरण का बड़ा खतरा मंडरा रहा है. भारत की शिवालिक पहाड़ियों में भी ओरेंगुटान की शिवापिथेकस जाति हुआ करती थी जो अब पूरी तरह से लुप्त है.
क्यों खत्म हो रहे ओरेंगुटान-
ओरेंगुटान घने जंगलों में रहना पसंद करते है इन्हे इंसानी बस्ती के पास रहना पसंद नहीं और इंसानों की पहुंच जंगलों में इतनी हो गई है कि इनके रहने की जगह अब बहुत कम बची है.
दूसरा कारण यह भी है कि जंगलो में पेड़ों का साफाया इस कदर बढ़ गया है कि जो जंगल पहले ओरेंगोटेन के लिए उपयुक्त हुआ करते थे जहां ओरेंगोटेन की बड़ी आबादी हुआ करती थी वो एकाएक लुप्त होने लगी. जांच में इसका कारण बताया गया पेड़ों की अंधाधुंध कटाई.
शिकार इनकी विलुप्ति का सबसे बड़ा कारण है. खाल के लिए लोगों ने बड़ी संख्या में ओरेगोटेन का शिकार किया . 1980 के दशक से इनका इतना शिकार किया गया कि अब ये गिनतियों में बचे हैं. 1992 में बढ़ती तस्करी से दुनिया का ध्यान ओरेंगोटेन पर आया और इन्हे बचाने का प्रयास किया गया.
जंगलों में फैलता इंसानी जहर इनकी नस्ल को बीमार बना रहा है जिससे कम उम्र में ही इनकी मौत हो रही है. ओरेंगोटेन को बचाने के लिए कई संगठन लोगों को जागरूक करने में जुटे हैं कि किस तरह इन्हे बचाया जा सकता है. अगर आप ओरेंगोटेन के आबादी वाले क्षेत्र में जाते हैं तो किसी भी तरह का खाने की चीजें और प्लास्टिक का सामान वहाँ ना छोड़ें.