कजलियां पर्व रक्षाबंधन पर्व के दूसरे दिन मनाया जाता है. इसे कई स्थानों पर भुजरियां/भुजलिया नाम से भी जाना जाता है. बुंदेलखंड के इस खास पर्व को वैसे तो पूर्वोत्तर के सभी जगह मनाया जाता है. इस बार रक्षाबंधन की दो तिथियां के कारण कुछ जगहों पर गुरुवार और कुछ जगह पर शुक्रवार को भुजलिया का विसर्जन किया गया है. अच्छी बारिश, फसल एवं सुख-समृद्धि की कामना के लिए यह पर्व मनाया जाता है.

रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरियां पर्व मनाया जाता है. इस दिन जल स्रोतों में गेहूं के पौधों का विसर्जन किया जाता है. छोटी-छोटी बांस की टोकरियों में मिट्टी की तरह बिछाकर गेहूं या जौं के दाने बोए जाते हैं. इसके बाद इन्हें रोजाना पानी दिया जाता है. सावन के महीने में इन भुजरियों को झूला देने का रिवाज भी है. तकरीबन एक सप्ताह में ये अन्न उग आता है, जिन्हें ‘भुजरियां’ कहा जाता है. Read More – सरकारी नौकरी छोड़ मॉडल बनी ये महिला : लाखों की कमाई के लिए छोड़ा अपना जॉब, करने लगी ये काम …

इन भुजरियों की पूजा अर्चना की जाती है एवं कामना की जाती है, कि इस साल बारिश बेहतर हो, जिससे अच्छी फसल मिल सकें. श्रावण मास की पूर्णिमा तक ये भुजरियां चार से छह इंच की हो जाती हैं. Read More – Kitchen Hack- किचन का कपड़ा बहुत जल्दी हो जाता है गंदा और चिपचिपा, इस तरह से करें सफाई …

रक्षाबंधन के दूसरे दिन इन्हें एक-दूसरे को देकर शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद देते हैं. बुजुर्गों के मुताबिक ये भुजरियां नई फसल का प्रतीक है. रक्षाबंधन के दूसरे दिन महिलाएं इन टोकरियों को सिर पर रखकर जल स्रोतों में विसर्जन के लिए ले जाती हैं. इस बीच ढोलक की थाप पर परंपरागत गीतों को गाया जाता है और एक गोल घेरे में लहंगी खेलते बढ़ते जाते है. शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए नदी पर पहुंचकर पूजा-अर्चना के बाद कुछ भुजरियों को रखकर शेष भुजरियों का विसर्जन कर दिया. बच्चे टोली बनाकर बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं.