रायपुर। हिंदोस्तान की आज़ादी को 70 साल हो गए. लेकिन इस आज़ादी में आधी आबादी यानी लड़कियों का हिस्सा कहां है. क्या अगर लड़कियां रात को निकल नहीं सकती. सड़कों पर चल नहीं सकती. क्या उन्होंने अगर ऐसा किया तो ये गुनाह माना जाएगा. उनके साथ कोई भी जबर्दस्ती हो जाए वो सही माना जाए.

ये सवाल इसलिए उठ रहा है कि मध्ययुगीन सोच वाले हरियाणा बीजेपी के उपाध्यक्ष रामवीर भट्टी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष के बेटे विकास बराला को सही ठहराने के लिए आईएएस की बेटी वर्णिका के रात में सड़क पर निकलने पर सवाल उठा दिए थे.

इस पुरातन सोच के खिलाफ देश के सभी बड़े और छोटे शहरों की लड़कियां आज रात सड़कों पर उतरेंगी. छत्तीसगढ़ में भी कई शहरों में लड़कियां रात को निकलेंगी. सड़कों पर नाचते-गाते मार्च करेंगी और पूरे देश की लड़कियों के साथ संदेश देंगी कि सड़क विकास बराला के बाप की नहीं है. उन्हें भी अपनी मर्जी से रात को घुमने की आज़ादी है. आज़ादी का ये हक़ किसी सरकार ने नहीं बल्कि संविधान ने दिया है.

तो, की रात देश की लड़कियों के नाम है.  11 बजे से 2 बजे पर सड़कों पर लड़कियों का राज रहेगा. वे पूरी आाज़ादी के साथ अपने अंदाज़ में मस्त रहेंगी और अपनी आज़ादी पर सवाल उठाने वालों को मुंहतोड़ जवाब देंगी.

ये मुहिम सोशल मीडिया से शुरु हुई. पूरे देश में आग की तरफ फैल गई. मुहिम को नाम दिया ‘सहेलियों हाथ मिलाओ सड़कों पर आओ’. खास बात है कि ये मुहिम किसी राजनीतिक या सामाजिक संस्था द्वारा समर्थित नहीं है लेकिन उसके बाद भी स्वमेव महिलाएं निकल रही हैं.

लल्लूराम डॉट कॉम पूरी तरह से इस मुहिम का समर्थन करता है. इस बात का पूरी शिद्दत से मानता है ये लड़कियों की आज़ादी है कि वो क्या खाएं, क्या पीए. कब घुमे. कैसे घुमे. इसे तय करने का हक़ सिर्फ उनका है. वो रात को घुमे इसलिए उनके साथ हुआ कोई अपराध जायज़ नहीं हो सकता.

पढ़िये लल्लूराम डॉट कॉम से जुड़ी महिला पत्रकारों का क्या कहना है

रजनी ठाकुर

मुझे इस जमाने से कोई शिकायत नहीं क्यूंकि बगावत कुबूल करना यूँ भी इसकी आदत नहीं- रजनी ठाकुर

ये बगावत होगी आज. आज की रात 11 बजे से. जब हम लडकियां सड़कों पर निकलेंगी. ये बताने के लिए जब ज़िन्दगी मेरी है. रात मेरी है तो सड़क भी मेरी है किसी विकास या भट्टी के बाप की नहीं. और रात को बाहर निकलने के लिए मुझे किसी के इज़ाज़त की जरुरत नहीं.

ये बताने के लिए हादसे रात को लड़कियों के सडक पर निकलने से नहीं बल्कि गन्दी नीयत वालों के सड़क पर निकलने से होते हैं और सबसे जरुरी बात. रात को घर से निकलना उनका बंद कराओ जो ऐसी हरकतें करते हैं. ना की उनको जो इसका शिकार होती हैं. तो भई! हम तो निकलेंगे. रोक सको तो रोक लो !

 

ये सवाल लड़कियों की आज़ादी का है- शोनाली

शोनाली जेठानी

 

तीन दिन बाद हम आज़ादी का पर्व मनाएंगे. इससे पहले ही महिलाओं और लड़कियों की आज़ादी को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. विकास या भट्टी व्यक्ति नहीं सोच है. वो सोच जिसने 70 साल बाद भी हमें अपनी आज़ादी का हक़ नहीं देना चाहती. सोचिए ज़रा क्या हम आज़ाद हैं. जो लड़की घर से निकलती हैं और उन्हें देर हो जाती है क्या वो बिना डरें घर आती हैं? हम न बाहर आज़ाद हैं न घर पर न गलियों में न सड़क पर. हिंदोस्तान भी आज़ाद हो गया लेकिन हमें कब मिलेगी आज़ादी. कब होगी एक औरत, एक मां, एक बेटी, एक बहन की आज़ादी.  

समानता की बात कहना सबसे बड़ा धोखा- एम. मिधाश्री

एम. मिधाश्री

ये सिर्फ एक घटना का विरोध नहीं एक प्रतीक है. हमें बराबर समझे जाने की मांग का. आज़ादी के 71 साल बाद भी कोख में बेटियां जहां क़त्ल की जा रही हों. घर वालों को अपनी बच्चियों को कहीं भेजने में डर लगता है कि उसके साथ कुछ हो न जाए तो ऐसे हालात में अगर कहीं बराबरी होने का दावा किया जाता है तो वो झूठ बोलता है. बराबरी लाने के लिए स्त्रियों को ही पहल करनी पड़ेगी और आज का मार्च उसकी दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है.