ग्वालियर के अफसरों में भगदड़ का माहौल
सियासी लिहाज़ से ग्वालियर भी उतना ही अहम है, जितना भोपाल। यहां तोमर और सिंधिया जैसे दो-दो केंद्रीय मंत्री हैं। नरोत्तम मिश्रा और प्रद्युम्न सिंह तोमर के अपने जलवे हैं। सांसद का अपना वजन है। सिंधिया समर्थकों की फौज का अपना रुआब है। इतना सारा दबाव अफसरों के लिए सिरदर्द बन रहा है। बीते दिनों सिंधिया का दौरा यहां के अफसरों को चक्करघिन्नी बना गया। दौरा नहीं भी हो, तब भी हरेक फोन अफसरों की नींद उड़ा देता है। एक-दूसरे के विपरीत काम करने का दबाव बनाया जा रहा है। अफसरों का दर्द अब बाहर झलकने लगा है। कई अफसर अब यहां से विदाई लेने का मन भी बनाने लगे हैं। जितना दबाव प्रशासनिक अफसरों को है, उतना ही पुलिस को भी। खुलकर कोई भी अफसर काम नहीं कर पा रहा है। आने वाले दिनों में जारी होने वाली तबादला सूची में यदि ग्वालियर के अफसरों के नाम आए तो चौंकिएगा नहीं।
मोदी-शाह से क्यों नहीं हो रही मुलाकातें
एमपी के मंत्रियों के रोज़मर्रा के बयानों की शुरुआत मोदी और शाह का नाम लिए बगैर नहीं होती। इनका नाम लेकर नज़दीकियां का जितना एहसास कराया जाता है, उतनी ही फिक्र इन दोनों दिग्गजों से दूरी रखने में भी की जाती है। दरअसल, एमपी के मंत्री मोदी और शाह से मुलाकात के लिए वक्त तक नहीं मांग रहे हैं। खौफ किस बात का है इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। सीएम शिवराज को छोड़ दें तो मंत्री भी केवल अपने विभाग के केंद्रीय मंत्री से मुलाकात की औपचारिकता ही कर रहे हैं। समझना मुश्किल नहीं है कि जिस तरह दोनों दिग्गज बीजेपी शासित राज्यों में उलटफेर करने में जुटे हुए हैं। ऐसे दौर में मंत्रियों के लिए मुलाकात करने बर्र के छत्ते में हाथ डालने जैसा ही होगा। गुजरात में पूरे घर के बदलने के बाद अब खौफ ज्यादा बढ़ गया है।
अजय सिंह के जन्मदिन मनाने के निहितार्थ
यही अजय सिंह राहुल अब तक अपने जन्मदिन पर गोपनीय यात्राओं पर रहते थे। तामझाम और उत्सवों से दूर होकर ही जन्मदिन मनाते रहे हैं। लेकिन इस बार वे अपने बंगले पर मौजूद रहे और दिग्गजों से खुलकर मिले। अजय सिंह के इस नए अंदाज़ के निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस सरकार गिरने के बाद आए उपचुनाव के बाद से ही नदारद हैं। चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी की विंध्य में सक्रियता के बाद उनकी मौजूदगी का अहसास ज़रूर हुआ था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उन्हें राजनैतिक विरासत में मिली विंध्य और बघेलखंड में दीगर नेताओं की सक्रियता ने उनके समर्थकों के कान खड़े कर दिए हैं। कमलेश्वर पटेल को जब कमल नाथ ने ओबीसी आरक्षण मुद्दे की कमान सौंपी तो वे प्रदेश के साथ विंध्य में भी सक्रिय हुए। वहीं, बीते दिनों श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी के पुण्यतिथि अवसर पर रीवा में जमे राजनैतिक जमावड़े में तिवारी परिवार के साथ कमलेश्वर पटेल की मौजूदगी ने भी विंध्य में नए राजनेताओं के उदय के संकेत दिए। अब अजय सिंह का नज़र आना बनता ही था। सुन रहे हैं कि जन्मदिन मनाकर और सत्ताधारी दलों के साथ अपनी नज़दीकी ज़ाहिर करके अजय सिंह ने ऊपर तक संदेश साफ कर दिया है।
सुहास भगत का नमस्कार !
सुहास भगत ने सोशल मीडिया पर नमस्कार क्या कह दिया हड़कंप मच गया है। वैसे तो सुहास भगत के सरल-सौम्य स्वभाव के कारण इसे घुमाफिरा कर समझने की ज़रूरत नहीं है। बीजेपी में चल रही चर्चाओं में इसके सीधे-साधे मायने निकाले जा रहे हैं। लोगों ने सुहास भगत अनुमान लगाना शुरू कर दिया है कि अगला पड़ाव कहीं दिल्ली तो नहीं? पिछले कुछ अर्से से चल रहे घटनाक्रमों पर गौर करें तो बीते दिनों संभागीय संगठन मंत्रियोंकी व्यवस्था बदली गई है। उन्हें संगठन मंत्री की बजाय पार्टी में पद दिए गए हैं। पीढ़ी बदल के दौर से गुज़र रही बीजेपी में अब सुहास भगत के भी नए दायित्व के कयास लगाने स्वाभाविक हैं। अब सुहास भगत ने खुद ही नमस्कार लिखने पर नयी चर्चा को जन्म दे दिया है। पार्टी के लोग इसे अस्वाभाविक नहीं मान रहे हैं। बदलते दौर की बीजेपी में आगे देखिए नमस्कार के मतलब जल्दी ही समझ में आएंगे।
संघ की तर्ज पर संगठन मंत्री
अपने संभागीय संगठन मंत्रियों को बीजेपी में प्रदेश कार्यसमिति सदस्य का पद देकर नवाज़ने वाली बीजेपी में नए संगठन मंत्रियों का खाका भी खींच लिया गया है। संघ से नए संगठन मंत्रियों को तैनात किया जाना तय हुआ है। इस बार ये व्यवस्था बदली हुई रहेगी। संभागीय संगठन मंत्रियों को संघ की तर्ज पर अब मालवा, महाकौशल और मध्य भारत प्रांत की ज़िम्मेदारी दी जाएगी। इससे पहले हर संभाग में संगठन मंत्रियों को तैनात किया जाता था। बीजेपी में संभागीय संगठन मंत्री का भौतिक स्वरूप तो है, लेकिन कागजों में इन्हें कहीं नहीं तलाशा जा सकता है। ये मौखिक व्यवस्था की ऐसी कड़ी हैं, जो पार्टी को ताकत देने वाली, संदेश वाहक और अंडर कवर होकर काम करने वाली टीम कहा जाता है। अरविंद मेनन ने संगठन महामंत्री रहते वक्त इन संगठन मंत्रियों के कामकाज में बदलाव की कोशिश की थी, जो अब संभव हो पाई है।
दफ्तर के अफसर, बाहर पार्टनर !
इंदौर के लापता हुए बिजली के खंभों के कांड ने बिजली कंपनी के कई अफसरों की कलई खोलकर रख दी है। कंपनी के कई अफसर ऐसे हैं जो आउटसोर्स कंपनियों से फायदा ले रहे हैं। अपनी सरकारी कुर्सी पर बैठकर आउटसोर्स सुविधाएं देने वाली कंपनियों पर मेहरबानी दिखाई जाती है और बाहर उन्हीं कंपनी में अपने रिश्तेदारों को पार्टनर बनाकर फिट किया जा रहा है। फायदा लेने का ये सिस्टम में नया रास्ता है। इंदौर कांड के बाद खबर ये लगी है कि इंदौर के बाद अब भोपाल और जबलपुर की बिजली कंपनियों पर आरटीआई कार्यकर्ताओं ने काम शुरू कर दिया है। रिकॉर्ड दुरुस्त किया जा रहा है कि किस बिजली अफसर की पत्नी, बेटा या दूसरा कोई रिश्तेदार आउटसोर्स या ठेका कंपनी में बिजनेस पार्टनर बनकर बैठा है। कलई खुलने में ज्यादा वक्त नहीं है।
दुमछल्ला…
भारत भवन के एक अधिकारी पर मंत्री जी ने निगाहें टेढ़ी कर दी हैं। बीते दिनों अफसर की कारगुजारी पर संज्ञान लेते हुए मंत्रीजी ने बंगले पर पेशी लेकर अफसर को जमकर फटकार लगाई है। यही नहीं, एक नोटशीट भी चल पड़ी है, जिसके अंजाम में अफसर ना केवल कार्यवाही के दायरे में आ रहे हैं, बल्कि विदाई भी तय हो सकती है। आगे-आगे देखिए होता है क्या।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)