उपचुनाव से बीजेपी के नेता पुत्रों को संदेश
चार सीटों पर हुए विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव ने बीजेपी नेताओं को एक संदेश साफ कर दिया है, इस संदेश के बाद भविष्य में संभावना देख रहे नेता पुत्रों के अरमान ठण्डे पड़ सकते हैं। दरअसल, खंडवा में पार्टी के कई नेता स्वर्गीय नंदकुमार सिंह चौहान के पुत्र हर्षवर्धन सिंह चौहान को टिकट देने के पक्ष में आ गए थे, इसी तरह रैगांव सीट में भी जुगल किशोर बागरी के पुत्र पर सहमति बनने लगी थी। लेकिन दिल्ली की लाइन क्लीयर थी कि नेता पुत्र की बजाय पार्टी कार्यकर्ता और नए चेहरे को टिकट दिया जाए। इसके बाद दोनों जगह संभावित प्रत्याशियों की लिस्ट से नेता पुत्रों के नाम हटा लिए गए। खंडवा में जीते ज़रूर लेकिन लीड कम हो गई और रैगांव में बीजेपी की बुरी तरह हार गई। बीजेपी भले ही जीत का जश्न मना रही हो, नेता पुत्रों के लिए इन उपचुनावों के बाद सियासी भविष्य की चिंता हो सकती है।
एक दिग्गज के फच्चर में फंसे हैं कमलनाथ!
कमल नाथ चाहते थे कि नेता प्रतिपक्ष किसी काबिल नेता को बनाया जाए। उन्होंने अपनी तलाश पूरी भी कर ली थी। नए नेता प्रतिपक्ष की घोषणा के लिए उस कांग्रेसी दिग्गज विधायक को भोपाल बुला भी लिया गया था। लेकिन कांग्रेस के दूसरे दिग्गजों को खबर लगी तो दिग्गज विधायक के भोपाल पहुंचने के पहले कमल नाथ के कान भर दिए गए। ऐसा माहौल बनाया गया कि नए नेता प्रतिपक्ष के ऐलान से ही कांग्रेस विधायक दल में उथल-पुथल मच जाएगी। अब कमल नाथ की पसंद वाले दिग्गज विधायक भोपाल पहुंचे तो कमल नाथ ने कहा है अभी आपको होल्ड कर रहे हैं। दिग्गज विधायक को समझते देर नहीं लगी कि विरोधियों ने अपना काम कर लिया है। अब दिग्गज विधायक ने कमलनाथ को दो टूक कह दिया है कि किसी और का नाम घोषित हुआ तो बवाल कट जाएगा। लिहाज़ा कांग्रेस आलाकमान ने नेता प्रतिपक्ष का फैसला होल्ड कर लिया है। दिग्गज विधायक के तेवर से संभावना है कि ऐलान अगले विधानसभा चुनाव तक होल्ड ही रहे।
पहले निकला आदेश, अब उसका तोड़
स्कूली शिक्षा विभाग की उच्च स्तरीय बैठक में ऊपर से निर्देश दिए गए कि डीपीआई और राज्य शिक्षा केंद्र जैसे मुख्यालय में सालों से डटे हुए अफसरों को अब फील्ड पर जाना चाहिए। यह निर्देश चूंकि टॉप लेवल से आए थे इसलिए तबादला सूची में इसपर पूरा अमल कर लिया गया। ऊपर वाले अपनी इस गंभीर और सख्त एक्शन के किस्से जमकर इधर-उधर सुना रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि तबादला आदेश में तो ये नाम था, लेकिन अब एक-एक करके आधा दर्जन से ज्यादा अफसरों ने तबादला निरस्त करा लिया है। फिलहाल किसी को कानों-कान खबर नहीं है, बरसों से डटा अमला अब भी वहीं बैठकर बिंदास काम कर रहा है। कई और अफसरों ने भी मंत्रीजी के बंगले पर दस्तक देकर तबादला आदेश को निरस्त कराने की जुगाड़ तलाश ली है। महकमे की नब्ज को जानने वालों को भी कोई इधर से उधर कर सकता है भला।
भोपाल की जुगाड़ में एक एडिशनल एसपी
हमेशा क्रीम पोस्ट पर रहने वाले एक राज्य पुलिस सेवा के अफसर चंद महीने बड़े शहरों की हवा खाने के बाद भोपाल लौट ही आते हैं। इस बार भी वे भोपाल में ही हैं। लेकिन मुख्यालय पदस्थ किए गए हैं। बीते दिनों लोकायुक्त के एक बड़े साहब का व्यक्तिगत टास्क को ठीक से अमल नहीं कर पाने की वजह से उन्हें तबादले की मार झेलनी पड़ी थी। पोस्टिंग पुलिस मुख्यालय में ही हुई, लेकिन साहब तो क्रीम पोस्ट पर रहने के आदी हैं। साहब की पहुंच काफी ऊपर तक है। इसलिए अब पीएचक्यू की बोरिंग पोस्टिंग से वे भोपाल में ही फील्ड पर आने की जुगाड़ में लग गए हैं। लिहाज़ा भोपाल में जल्द ही ए़डिशनल एसपी क्राइम ब्रांच बनकर आ जाए तो चौंकिएगा नहीं।
अडानी की राह में मंत्री का अड़ंगा
अडानी ने एमपी में एक और डिपार्टमेंट के ज़रिए एंट्री मार ली है। इस महकमे में अडानी ग्रुप को एक प्रोजेक्ट मिल गया है। लेकिन इस प्रोजेक्ट को मंजूर कराने में अडानी के लोगों को नाकों चने चबाने पड़ गए थे। दरअसल, मंत्री ने फाइल पर कुंडली मार ली थी। तमाम कवायदों के बावजूद भी फाइल क्लीयर नहीं हो रही थी। जब तक ऊपर से प्रेशर नहीं आया, तब तक फाइल को मंजूरी नहीं मिली। अडानी ग्रुप ने ठण्डी सांस भरकर हाल ही में उसी महकमे में दूसरे प्रोजेक्ट को लेने की शुरुआत की है। लेकिन मंत्री ने फिर आंखें तरेर ली है। पहले प्रोजेक्ट में ऊपर से प्रेशर आने का अनुभव लेने के बावजूद मंत्री फाइल को दबा कर बैठ गए हैं। अब अडानी ग्रुप के अफसर ने फिर माथा फोड़ लिया है। फिलहाल तो कंपलीट तोड़ निकालने की कोशिश की जा रही है, लेकिन ग्रुप ने फिर से ऊपर तक बात पहुंचाने की कवायद भी समानांतर शुरू कर दी है। देखना दिलचस्प है कि कौन सा तरीका कारगर साबित होता है। हालांकि बता दें कि अडानी की नजर इसी महकमे के कुछ और प्रोजेक्ट पर हैं। वैसे आपको ये इशारा कर देते हैं कि हम जिस महकमे की बात कर रहे हैं उस पूरे महकमे के प्राइवेट सेक्टर में जाने की चर्चाएं काफी तेज हैं।
दुमछल्ला…
पूरा उपचुनाव हो गया, कांग्रेस ने दिन रात एक कर दिया। लेकिन इसी कांग्रेस का एक प्रत्याशी ऐसा था, जिसने चुनाव खर्च के लिए भोपाल से भेजी गई रकम को खर्च करने में कंजूसी दिखा दी। कंजूसी भी ऐसी-वैसी नहीं बल्कि काफी तगड़ी। प्रत्याशी की हार में खर्च में कंजूसी को एक बड़ी वजह बताया जा रहा है। सुना है कि कमल नाथ की हार की समीक्षा बैठक में यह मुद्दा खुलकर उठाने की तैयारी है।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)