किसने उड़ाई प्रोटोकॉल की धज्जियां?
सूबे में पीएम मोदी का कार्यक्रम हो तो सारे इंतज़ाम चाक-चौबंद रखे जाते हैं। चाहे कार्यक्रम में मोदी की मौजूदगी वर्चुअल हो या फिर एक्चुअल, गफलत और गड़बड़ी की कोई संभावना नहीं रखी जाती। लेकिन एक गफलत की वजह से कांग्रेस ने पूरे कार्यक्रम की बखिया उधेड़ने का मौका दे दिया। पहले तो आयोजन के आमंत्रण पत्र में विभागीय मंत्री भूपेंद्र सिंह का नाम ही उचका दिया गया। जबकि ये प्रोटोकॉल है और पीएम के कार्यक्रम में प्रोटोकॉल का विशेष ध्यान रखा जाता है। तैयारी करने वालों ने ये भी ध्यान नहीं दिया है कि भूपेंद्र सिंह सीएम की गुड लिस्ट में टॉप पर हैं। मामला खुद भूपेंद्र सिंह ने संभालते हुए एक रात पहले ही अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए बताया कि कार्यक्रम में गैरहाज़िरी की सूचना वे पहले ही दे चुके हैं। मामला केवल इसी प्रोटोकॉल की बेख्याली तक सीमित नहीं रहा, बल्कि हद तब हो गई जब केंद्रीय राज्य मंत्री का नाम भी लोकल मंत्रियों के नाम के नीचे लिखा रहा। अब एक साथ इतनी गफलतों के पीछे वजह सोची-समझी साजिश या बड़ी लापरवाही की बू आने लगी है। इस आग में कांग्रेस ने जो घी डाल दिया है। कांग्रेस ने इसमें सिंधिया एंगल तलाश लिया और कहा कि सिंधिया भूपेंद्र सिंह से नाराज़ चल रहे हैं और उन्हें इंदौर में तुलसी सिलावट को एडजस्ट करना है। सरकार में नंबर दो की भूमिका निभा रहे नरोत्तम मिश्रा को इग्नोर करना संभव नहीं है, इसलिए सिंधिया के इशारे पर ये सारा मामला रचा गया। अब कांग्रेस की चुटकियों ने मंत्रालय की पांचवी मंजिल पर चर्चाओं का बाज़ार गर्म करके रखा है।

ब्यूरोक्रेसी में जासूसी का जिन्न
आईएएस अफसर अगर किसी घटना पर खतरे या डर का इशारा कर दें और बवाल ना कटे कैसे हो सकता है। बीते दिनों एक महिला आईएएस अफसर के इसी तरह के इशारे वाले ट्वीट कर दिया। ट्वीट के बाद सभी अफसरों के बीच मोबाइल फोन की घंटियां घनघनाने लगीं। इशारा इस बात का था कि फेसबुक, ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस किस तेजी से काम करता है। घटना का ज़िक्र अपने फोन के ज़रिए अपने पीए को बताया तो फेसबुक पर उसका असर नुमायां होने लगा। मैडम ने साफ इशारा किया कि इंटरनेट उपयोगकर्ताओं पर नज़र रखी जा रही है, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस इसी का हिस्सा है। लेकिन चुनाव से पहले यदि यह पता लग जाए कि इंटरनेट सर्चइंजिन, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग आपकी निजी जिंदगी में तांकझांक कर रहा है तो यह अधिकारियों के लिए चौंकाने वाला तथ्य है। दरअसल, ब्यूरोक्रेसी तांकझांक से बचकर चलती है। मंत्रालय के कक्ष और घर के गेट पर दरबान बैठाकर तांकझांक रोकी जा सकती है लेकिन इंटरनेट उपयोग के दौरान वर्चुअल दुनिया के जरिए तांकझांक मुमकिन है। मैडम के ट्वीट के बाद मंत्रालय के अफसरों ने सतर्कता बरतने में ही बेहतरी समझी है। आपसी चर्चाओं में अब तौर-तरीके तलाशे जा रहे हैं।

सीएम दावेदारी में ‘नए लड़कों’ की एंट्री
दिग्विजय सिंह नापतौल कर कहते हैं। दरगाह पर जियारत के दौरान ‘नए लड़कों’ को मौका देने की बात कहकर कांग्रेस की सियासत में नयी चर्चाएं छेड़ दी हैं। अरुण यादव की मौजूदगी में कही गई इस बात को कांग्रेसी गलियारों में हवा-हवाई कतई नहीं माना जा रहा है। यह चर्चाएं साफ हो रही हैं कि आने वाला वक्त नए लड़कों का है। इन चर्चाओं को सुनकर कांग्रेस के यंगिस्तान के सीने चौड़े हो सकते हैं। लेकिन तजुर्बेकार कांग्रेसी जानते हैं कि पार्टी में किन लड़कों पर फोकस रहता है। वैसे, दिग्विजय सिंह ने जब ये बात कही तब उनके लिए पूर्व मुख्यमंत्री का ज़िक्र हो रहा था, लेकिन दिग्गी ने खुद की तवज्जो से इनकार करके नए लड़कों की तवज्जो का इशारा किया। मौके पर मौजूद लोगों ने अरुण यादव के भविष्य के ताने-बाने बुनने शुरू कर दिया। वैसे, कांग्रेसी सियासत में दो नए लड़के और भी मौजूद हैं जिनमें कांग्रेस नेता संभावना देखते हैं। एक बेटे हैं, नकुल नाथ तो दूसरे जयवर्धन सिंह। ये दोनों भी मौके-मौके पर ताल ठोंकते रहते हैं। देखना यह है कि विधानसभा चुनाव से पहले नए लड़कों का ज़िक्र छेड़कर दिग्विजय सिंह अपनी पार्टी की राजनीति को किस तरह का मोड़ देने की तैयारी कर रहे हैं।

प्रमुख सचिव के लिए टोटके-चढ़ौत्री
साहब का हाल ही में प्रमुख सचिव के पद पर प्रमोशन हुआ है। लेकिन जिस विभाग में पदस्थ हैं, वहां पहले से ही प्रमुख सचिव मौजूद हैं। साहब को चिंता सताने लगी है कि फिलहाल तो पसंदीदा डिपार्टमेंट में हैं और कई फाइलें निपटानी बाकी हैं, वक्त का इशारा है कि मौजूदा डिपार्टमेंट में बने रहें। लेकिन परिस्थितियां इजाज़त नहीं दे रही हैं। लिहाज़ा टोने-टोटके और खास दरबारों की चौखट तक दस्तक देने का सिलसिला शुरू कर दिया गया है। करीबी लोग जुगाड़ में भी लग गए हैं। इधर से उधर मैसेज पहुंचाए जा रहे हैं। सीएम साहब ने सूबे में एक बड़ी प्रशासनिक सर्जरी की तैयारी कर रखी है। ये काम भी जल्द होने वाला है लेकिन दरबारों में दस्तक का सिलसिला कमजोर पड़ गया तो सपना टूट सकता है। फिलहाल साहब ने पूरी ताकत लगा रखी है।

संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो
ठीक समझे आप। बात बीजेपी की ही हो रही है। सिंधिया की बीजेपी में आने की धमक से जो सियासी तूफान आया है, उसकी लहरें अब तक उठ रही हैं। विंध्य-जबलपुर में उठे विरोधी स्वरों के बाद अब इंदौर के नेताओं को पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा और अब तक मिले प्रतिसाद का तुलनात्मक अध्ययन शुरू कर दिया है। बाकी जगहों की तरह भी निष्ठावान इंदौरी कार्यकर्ता को एक सिंधिया समर्थक को पार्टी में मिली जिम्मेदारी पर विरोध दर्ज कराया। जाहिर है, अनसुनी के बाद इलाज की गुंजाइश सोशल मीडिया से ही की जा सकती है। बात को आई-गई करने के लिए जब पार्टी स्तर पर ऐड़ी चोटी का जोर लगाया गया तो नतीजा भी निकला। इंदौरी भाई ने संगठन गढ़े चलो की बात कहकर मामले का पटाक्षेप कर दिया। लेकिन सवाल खड़े होने लगे हैं कि सूबे में ऐसे कई खाटी कार्यकर्ता हैं जिनका दर्द निकाय और पंचायत चुनाव के दौरान झलक सकता है। और पार्टी के पास निराकरण का मंत्र केवल एक ही है… ‘संगठन गढ़े चले-सुपंथ पर बढ़े चलो’।

कलेक्टर की छुट्टी से चढ़ गए तेवर
एक कलेक्टर साहब की छुट्टी पर जाने से दो अफसरों के तेवर चढ़ गए। दरअसल, कलेक्टर साहब ने बीते हफ्ते दो दिन का अवकाश लिया और चार्ज दिया जिले में ही पदस्थ एक अन्य आईएएस को। इससे एडीएम साहब का बर्ताव दो दिन के लिए गरम हो गया। अब तक एडीएम साहब को चार्ज देकर जाने वाले कलेक्टर ने नए अफसर को चुना तो सिर घनचक्कर होगा ही। साहब ने दो दिन तक किसी को अपने चेंबर में घुसने नहीं दिया। जिन्हें चार्ज मिला था उन साहब के तेवर भी सातवें आसमान पर पहुंच गए थे। कलेक्टर का चार्ज लेने के दौरान साहब ने अपने मूल विभाग का परित्याग कर दिया। उससे संबंधित लोगों के फोन तक नहीं उठाए। चर्चाएं मंत्रालय तक पहुंच गई कि एक कलेक्टर के छुट्टी पर जाने से दो अफसरों का कामकाज पर असर डाल दिया।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)