(For – 17 April 2022)

फिल्म शूटिंग के लिए चढ़ोत्री की मांग
भोपाल में इन दिनों अपनी फिल्म सेल्फी की शूटिंग में व्यस्त अक्षय कुमार की टीम को सरकारी सिस्टम में उलझना भी पड़ रहा है। वैसे तो मुंबई से आई प्रोडक्शन की टीम ऐसे मामलों को निपटाने में माहिर समझी जाती है। लेकिन भोपाल की लालफीताशाही में वे भी उलझ कर रह गए हैं। पहला मामला भेल प्रबंधन से जुड़ा है। यहां के खंडहर पड़ी कॉलोनियों में शूटिंग की अनुमति मांगी गई तो जिम्मेदार दफ्तर से एक लाख रुपए की डिमांड रख दी गई। किसी तरह विधायक के हस्तक्षेप के बाद मामला बिना लेनदेने के सुलटाया गया। दूसरा मामला लाल परेड ग्राउंड में शूटिंग का था, यहां मामला 20 लाख रुपए में उलझ गया। पिछले दिनों अक्षय कुमार की सीएम शिवराज और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा से मुलाकात के नतीजों में यह मामला सुलझा। ऐसे यह केवल दो मामले नहीं है। लाल फीताशाही द्वारा उलझन में डालने के सारे मामले निकाल दिए जाएं तो सरकार की मध्य प्रदेश को फिल्म सिटी बनाने का सपना मुश्किल में आ सकता है।

नए मुख्य सचिव को लेकर चर्चाएं तेज़
सूबे के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस इसी साल रिटायर होने वाले हैं। लिहाजा नए मुख्य सचिव को लेकर मंत्रालय में चर्चाओं के दौर तेज हो गए हैं। मंत्रालय के गलियारों में चर्चाएं हैं कि सीएम अपनी इस पारी में अपने भरोसेमंद अफसर को ही प्रशासनिक मुखिया की कुर्सी सौंपेंगे। इसलिए ऐसा कोई अधिकारी ही मुख्य सचिव बन सकता है जो सीएम सचिवालय में तैनात हो। ऐसे एक अफसर फिलहाल दिल्ली में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं। चर्चाएं तो इस बात को लेकर भी है कि जिस तरह का फार्मूला डीजीपी की पोस्टिंग के लिए बनाया गया था, उसी फार्मूले से मुख्य सचिव को भी तैनात किया जाएगा। फार्मूला यह है कि अफसर मुख्यमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री कार्यालय की कार्यप्रणाली से बेहतर तरीके से वाकिफ हो। ऐसे अफसर फिलहाल अनुराग जैन ही नजर आते हैं। एमपी में वे मुख्यमंत्री सचिवालय में तैनात रहकर सीएम शिवराज के भरोसेमंद रह चुके हैं। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान वे पीएमओ का हिस्सा भी रह चुके हैं। सीएम शिवराज के साथ उनकी ट्यूनिंग भी काफी अच्छी रही है।

पोस्टिंग की जुगाड़ में आईएफएस
एक जिले की अहम पोस्ट पर रहते हुए अपने बेटे को ही भुगतान करने के मामले में मुख्यालय का अटैचमेंट झेल रहे एक आईएफएस अफसर एक बार फिर फील्ड पोस्टिंग की जुगाड़ में लग गए हैं। सुना है उन्होंने एक मंत्री को साधने की भरसक कोशिशें अब रंग लाने वाली है। साहब कई जिलों में तैनात रहे हैं। जहां-जहां तैनात रहे हैं, मुख्यालय किसी ना किसी मामले की जांच कर रहा है। ये सारे मामले भ्रष्टाचार से जुड़े हैं। बावजूद इसके साहब को अपनी पहुंच-पकड़ और सबको साधने वाली कार्यशैली से उन्हें जल्द ही नयी बेहतरीन पदस्थापना मिलने की उम्मीद है। इस मामले में विभाग के ही कुछ प्रभावशाली और जिम्मेदार अफसर भी उनकी मदद के लिए जुट गए हैं। सुना है कृपा मंत्रालय में रुकी हुई है। साहब ने एक मंत्रीजी के ज़रिए कृपा के अवरोध हटाने की मुहिम शुरू कर दी है। बस मुफीद मौके की तलाश की जा रही है। इधर मौका मिला और उधर तपाक से नई पोस्टिंग के ऑर्डर जारी हो जाएंगे। हां, शायद उनके खिलाफ हो रही जांच इसके बावजूद चलती रहेंगी।

कांग्रेस के तय, बीजेपी में कनफ्यूज़न
आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस ने करीब 80 विधायकों के टिकट तय कर दिए हैं। उन्हें काम करने का इशारा दिया जा चुका है। फाइनल विधानसभा सीटों पर दूसरे दावेदारों को भी काम पर लगने का आदेश दिया जा चुका है। 50 सीटों पर काफी मेहनत की जा रही है, ताकि सरकार बनाने का रास्ता आसान रहे। ऐसा ही कुछ बीजेपी में भी तय हो चुका है। लेकिन ये फैसला केवल ऊपर स्तर के नेताओं को ही मालूम है। नीचे टिकट दावेदारों के बीच असमंजस के हालात हैं। कई मौजूदा और कद्दावर विधायकों को भी शक है कि इस बार कहीं उनका टिकट कट नहीं जाए। इसकी वजह यह है कि पार्टी में युवाओं को मौका देने की बयार बह रही है। कुछ नेताओं की सीट बदलने की भी चर्चा है। नेता पुत्र और फार्मूला 75 जैसे रणनीतियां अलग हैं जो किसी भी कद्दावर नेता का मनोबल गिरा सकती है। खास बात ये है कि इस बार सब कुछ संगठन तय कर रहा है। बीजेपी इस बात के लिए पहले ही जानी जाती है कि संगठन की तरफ से तय की गए फैसलों का नफा-नुकसान पहले ही तय कर लिया जाता है। डेमैज कंट्रोल की पूरी रणनीति भी पहले ही बना ली जाती है। दोनों ही पार्टियों के बीच टिकट को लेकर चिंगारी फूंक दी गई है। यह रणनीति इशारा करती है कि इस बार मुकाबला दिलचस्प होगा।

विपक्ष में भी जलवा बरकरार
कौन कहता है कि विपक्ष में आने के बाद अफसरों पर पकड़ कमजोर हो जाती है। सूबे के एक पूर्व मुख्यमंत्री के साथ इससे ज्यादा कहीं है।  हालत यह है कि साहब के मातहत निजी अधिकारियों के पास आर्म लाइसेंस, बीमारी सहायता समेत कई तरह के आवेदनों की भरमार है। दरअसल नौकरशाही भी नेताजी के कद और वजन के हिसाब से काम करती है। भले ही नेताजी विपक्ष में आ गए हों, लेकिन उनकी पूर्व कार्यशैली नौकरशाहों के साथ रिलेशनशिप और दिल्ली में पकड़ को देखते हुए वजन दिया  जाता है। कांग्रेस में ऐसे दिग्गज नेताओं की लंबी कतार है। जिनके इशारे पर नौकरशाही की कलम चलती दिखाई पड़ जाती है। कुछ नेताओं के पास चुनिंदा अफसर हैं। तो कुछ नेताओं के पास प्रमुख पदों पर बैठे कई बड़े अफसर। एक पूर्व सीएम तो ऐसे भी हैं, जिनकी सिफारिशी आवेदनों को मंत्रालय के बड़े अफसर भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रहे हैं। लिहाज़ा विपक्ष में बैठकर भी उनकी प्रशासनिक अफसरों में तूती बोल रही है। आलम यह है कि कांग्रेस के कई पदाधिकारी, नेता और विधायक भी उन्हीं के ज़रिए अपने आवेदन मंत्रालय पहुंचा रहे हैं।

दुमछल्ला…
एमपी के दो आईएएस मनोज गोविल और आकाश त्रिपाठी जल्द ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले हैं। उन्हें केवल केंद्र और एमपी सरकार की हरी झंडी का इंतज़ार है। दूसरी तरफ दो आईपीएस अफसरों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति अब खत्म हो रही है। एमपी कैडर के ये दोनों आईपीएस अब जल्द ही लौटकर कामकाज संभालेंगे। इसी बीच खबर यह भी आई है कि एमपी कैडर में 2006 बैच के आईपीएस अंशुमान सिंह को बीपीआरएंडडी में डीआईजी पद पर प्रमोशन मिल गया है। अहम अफसरों की पदस्थापनाओं पर एमपी के नौकरशाह पूरी निगाह रखे हुए हैं।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)