दिल्ली कूच की रणनीति पर दिग्गज भाजपाई 

खबर बीजेपी के खेमे से आ रही है। यहां अर्से से हाशिये पर आ चुके नेताओं ने गुपचुप बैठक कर ली है। इस बैठक को रोकने का एक प्रयास पार्टी ने असफल कर दिया था। लेकिन चंद रोज़ पहले ही बैठक कामयाब हो चुकी है। इसमें वे सारे नेता शामिल हैं, जो किसी न किसी वजह से पार्टी में दरकिनार महसूस हो रहे हैं। पार्टी की मौजूदा गतिविधियों से नाराज़ होकर इन्होंने दिल्ली कूच करने का मुहूर्त निकाल लिया है। सुना है मुलाकात के लिए दिल्ली के नेताओं ने भी हरी झंडी दिखा दी है। अब ये सारे मुद्दे की फेहरिस्त तैयार कर रहे हैं। अलग-अलग घटनाक्रमों को जोड़कर ये संदेश देने की कोशिश है कि पार्टी को खड़ा करने में पूरा जीवन निकालने के बाद अब उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। इसके लिए सारे नेता तर्क भी इकट्ठा कर रहे हैं। हालांकि पार्टी में फिलहाल पीढ़ी बदल का दौर चल रहा है, जिससे उनकी बातों को तवज्जो मिलने के आसार कम ही हैं। सीक्रेट बात यह निकल कर सामने आ रही है कि सारे तजुर्बेकार नेता यह बात जानते हैं कि उन्हें तवज्जो नहीं भी मिल सकती है, लिहाज़ा कुछ ऐसे तर्क इकट्ठा किए जा रहे हैं कि इनकी बातों को दिल्ली में गंभीरता से लिया जाए। आप भी देखते जाइए कई तजुर्बेकार नेताओं की रणनीति कितनी कारगर साबित होती है।

नेताजी को सीखनी पड़ रही सोशल सक्रियता

हाल ही में पूरे दल के नेता बने दिग्गज नेताजी को इन दिनों सोशल नेतागिरी सीखनी पड़ रही है। दरअसल, उनके नेता यानी बड़े नेताजी अपने सारे संदेश वॉट्स एप पर भेज देते हैं। बड़े नेताजी के काम करने का स्टाइल ही कुछ ऐसा ही है। लेकिन बीते दिनों मुलाकात में जब बड़े नेताजी ने दिग्गज नेताजी को कहा कि आपने वॉट्स एप मैसेज ही नहीं पढ़ा तब नेताजी को बगले झांकते हुए कहना पड़ा कि उन्हें वॉट्स एप चलाना ही नहीं आता है। बहरहाल, नेताजी ने अब सोशल मीडिया को सीखना शुरू कर दिया है। आपको ये ज़रूर बता दें कि नेताजी जिस क्षेत्र से आते हैं, वहां वे शुरू से ही वन टू वन कांटेक्ट रखते आए हैं। ये फॉर्मूला एक विधानसभा सीट पर तो चल सकता है लेकिन पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी संभालनी है तो फिर सोशल मीडिया पर एक्टिविटी बढ़ाना ज़रूरी है। नए युग की नेतागिरी तो यही कहती है कि केवल मास मीडिया के भरोसे नहीं चल सकते सोशल मीडिया पर भी एक्टिव रहना ज़रूरी है। उम्रदराज़ नेताजी को अब नए सिरे से आधुनिक सोशल नेतागिरी सीखने में परेशानी आ रही है।

विदेशों में सीएम के हमसफर अफसर का राज़

सीएम सचिवालय में इन दिनों सीएम के विदेश जाने वाली टीम तैयार हो रही है। इसमें सबसे ज्यादा मशक्कत उस शख्स को खोजने के लिए की गई जिसे पिछली विदेश यात्राओं का तजुर्बा रहा हो, ताकि उस तजुर्बे का फायदा अब होने वाली विदेश यात्रा में लिया जा सके। तलाश की गई तो ज्यादातर अफसर रिटायर हो गए और कुछ केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ हो गए। सीएम के करीबी रहे कई खासमखास अफसर पिछले दिनों रिटायर हो चुके हैं, जबकि विवेक अग्रवाल और हरिरंजन राव जैसे अफसर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर हैं। ऊर्जा, एमएसएमई, उद्योग से जुड़े रहे अफसर तो तलाशे गए, लेकिन एक अफसर केवल इसलिए जा रहे हैं क्योंकि उन्हें पिछली विदेश यात्राओं का तजुर्बा है। भले ही स्वास्थ्य विभाग का कोई मसला सीएम की विदेश यात्रा के एजेंडे से नहीं जुड़ा हुआ है लेकिन साहब सीएम की विदेश यात्रा की टीम में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। इसके पीछे वजह साहब का पिछली विदेश यात्राओं का तजुर्बा ही है। सीएम साहब से सूचना मिलने के बाद साहब ने तैयारी शुरू कर दी है। वे सीएम साहब के साथ उनकी विदेश यात्रा को आसमानी-सुलेमानी करते नजर आएंगे।

इबादत के साथ भरपूर काम, अब इनाम

अक्सर ऐसे मौके आते हैं, जब धार्मिक आस्था हमारी जिम्मेदारियों को प्रभावित कर देते हैं। सरकारी महकमे के लोग आमतौर पर ऐसी मुश्किलों में फंस जाते हैं। ऐसी ही एक मुश्किल बीते माह मंत्रालय के एक ऐसे बड़े अफसर के सामने आ गई। इन दिनों में इबादत भी ज़रूरी थी और सरकारी कामकाज भी। सरकारी काम भी वे जो सीधे पांचवीं मंज़िल से जुड़े रहे। साहब ने पूरे महीने इबादत की, घर-दफ्तर एक कर दिया और पांचवे मंज़िल से जुड़ी काम की एक भी फाइल भी पेंडिंग नहीं रहने दी। आलम यह था कि महीने की इबादत से कोसों दूर रहे अफसरों से पहले फाइल सीएम सचिवालय पहुंचने लगी। ये बात जब सरकार के मुखिया तक पहुंची तो वे जिम्मेदारी के प्रति शिद्दत देखकर प्रसन्न हो गए। वाहवाही तो दी साथ में जल्द ही एक अच्छे इनाम का इरादा बना लिया है। खबर यह है कि इन साहब को जल्द ही एक अहम महकमे का अतिरिक्त प्रभार भी दिया जाने वाला है। शुरुआती औपचारिकताएं प्रारंभ हो गई हैं, उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही ये सरकारी आदेश की शक्ल में सार्वजनिक हो जाएंगी। साहब को इन जिम्मेदारियों की लिए पहले से ही बधाई।

वीडी के सपनों पर भारी अफसरों की कमी

संगठन की सरकार हो तो संगठन के मुखिया की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। वीडी शर्मा ने इसी तरह की एक जिम्मेदारी का बीड़ा उठाया। बुंदेलखंड में पानी की समस्या को दूर करने को लेकर वीडी ने दिन रात एक कर रखा है। यहां तक कि एक अफसर को व्यक्तिगत आग्रह करके इलाके की पानी की समस्या दूर करने के लिए तैनात किया है। अफसर भी वीडी की मंशा को भांपते हुए शिद्दत से जुड़ गए। केंद्र और राज्य की कई योजनाओं को बुंदेलखंड में उतारकर जल संकट दूर करने के प्रयास शुरू कर दिए गए। काम तेजी से चल पड़ा था। इसी दौर में दिल्ली के अफसरों के साथ भी तालमेल बैठाना शुरू किया गया है। लेकिन मामला भोपाल में अटक गया है। हुआ यूं कि बुंदेलखंड में जल संकट के स्थाई निदान के लिए जब चर्चा शुरू की तो गल्फ के एक देश ने जल संकट दूर करने को लेकर एक फार्मूला दिया। इस फार्मूले पर अमल के लिए अफसर को अपने देश में अध्ययन दौरे का निमंत्रण भी हासिल हो गया। अब अफसर ने जब यह मंशा मंत्रालय में एक पत्र के ज़रिए ज़ाहिर की तो मामला अटक गया। मंत्रालय  के अफसरों ने तर्क दिया कि आईएएस अफसरों की कमी की वजह से विदेश में अध्ययन दौरे की इजाज़त नहीं दी जा सकती है। एक तर्क से बुंदेलखंड में गल्फ के जल संकट निदान फार्मूले की योजना पर पानी फिर गया है। 

दुमछल्ला…

कृषि विभाग के बड़े अफसर छुट्टी पर क्या गए… फाइलों का अंबार लग गया है। हालांकि इस पद पर एक अन्य अफसर को अस्थाई प्रभार दिया गया है। लेकिन मूल विभाग की जिम्मेदारियों के साथ कृषि विभाग की फाइलों ने काम का बोझ इतना बढ़ा दिया कि न मूल विभाग की फाइलें निपट पा रही हैं और ना ही कृषि विभाग की। फिलहाल कई अहम फैसले कृषि विभाग को लेने हैं, लेकिन फाइलें पेंडिंग होने से काम नहीं बन पा रहा है। अस्थाई प्रभार लेने वाले साहब भी सिर पकड़ कर बैठ गए हैं क्योंकि पेंडेंसी का ठीकरा उन्हीं के माथे पर फूट रहा है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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