मंत्री को सरकारी अमले पर नहीं भरोसा
सरकार के एक मंत्री हैं, जिनके बंगले पर उनके निजी स्टाफ का डंका बजता है। कायदे से ओएसडी और निज सचिव सरकार की तरफ से भेजे जाते हैं। लेकिन शुरुआती वक्त के बाद मंत्रीजी ने निज सचिव को लौटा दिया है।उनकी जगह निजी स्टाफ बतौर निज सचिव काम कर रहे हैं। यही नहीं, ओएसडी भी विभाग की तरफ से भेजे गए हैं। आमतौर पर मंत्री राज्य प्रशासनिक सेवा के तेज तर्रार अफसर की नियुक्ति इस पद पर करते हैं। आलम यह है कि किसी भी सरकारी कामकाज के पत्र व्यवहार के लिए समूचा भार ओएसडी पर आ गया है। निजी स्टाफ की तरफ से भेजे जाने वाले पत्र की भाषा को लेकर दीगर विभागों के अफसरान अक्सर असहज हो जाते हैं। मंत्रीजी तो संतुष्ट हैं, लेकिन दूसरे विभाग का अमला सिर पकड़ रहा है। कोई कुछ कहने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि जो निजी स्टाफ तैनात है वह पार्टी और संघ से गंभीरता के साथ जुड़ा है। लेकिन अब जगह-जगह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मंत्रीजी को सरकारी अमले पर भरोसा क्यों नहीं है। सरकारी अमला उनके बंगले पर ऐसा क्या कर रहा था, जो मंत्रीजी ने चंद हफ्ते में ही वापस भेज दिया।
साहब के जलवों से मंत्रालय चक्करघिन्नी
बीते हफ्ते हुए प्रधानमंत्री के एक कार्यक्रम के दौरान एमपी कैडर के एक आईएएस अफसर का ऐसा जलवा दिखाई दिया, जिसकी चकाचौंध की चर्चाएं मंत्रालय में चल पड़ी हैं। दरअसल, ये अफसर आजकल दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ हैं। इस कार्यक्रम के ज़रिए साहब ने पीएम और सीएम के बीच अहम कड़ी जैसा जिम्मा निभाया है। कार्यक्रम से जुड़ी हर विषयवस्तु को ग्रीन सिग्नल इन्हीं अफसर की रज़ामंदी से हो रहा था, इसलिए साहब का जलवा अफरोज़ हो गया। साहब ने पूरे कार्यक्रम का मैनेजमेंट इस टाइट रखा कि कार्यक्रम में तीन दफा तब्दीलियां हुईं और वजह किसी अफसर को पता नहीं लगी। दोपहर का कार्यक्रम शाम को संपन्न हुआ। जिससे भोपाल से लेकर इंदौर तक के अफसर पूरे दिन हिल तक नहीं पाए। अफसर जब एमपी में थे तो सीएम शिवराज के नज़दीकियों में शुमार रहे, दिल्ली में भी वे पीएमओ से सीथे समन्वय से कोई चूं तक नहीं कर सका। चर्चाओं का बाजार इस कदर गर्म हो कि आने वाले दिनों में एमपी के प्रशासनिक गलियारों में होने वाली तब्दीलियों में इन अफसर का नाम जोड़ा जाने लगा है।
मौकापरस्ती की भनक पर कमलनाथ की दो टूक
कमलनाथ को भनक लगी कि कोई विधायक मौकापरस्ती दिखा सकता है। मामला विश्वासघात तक पहुंचने की खबर लगी तो तुरंत कमलनाथ ने संबंधित विधायक को भोपाल तलब किया। सीधी चर्चा में टो टूक कह दिया है कि जो करना है अभी कर लो, बाद में किया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। कमलनाथ ने सख्त लहजों में कहा कि गद्दारी अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। दरअसल, बीजेपी की तरफ से आए दिन ऑपरेशन लोटस के पार्ट टू की चर्चाएं शुरू हो जाती हैं। कमल नाथ का इंटेलीजेंस भी रिपोर्ट दे ही देता है कि कमज़ोर कड़ी कौन साबित हो सकता है। एक बार सरकार गंवाने वाला आखिर दोबारा झटका खाने की रिस्क कैसे ले सकता है। सवाल तो यह है कि क्या कांग्रेस में एक बार फिर कोई कद्दावर बीजेपी का रुख कर सकता है। बीजेपी तो आखिरी वक्त में भी झटके देने में माहिर है। लेकिन कमलनाथ के सामने ये चुनौती है कि आखिर कुनबा बचाया कैसे जाए। आपको यह ज़रूर बता दें कि जिनके साथ कमलनाथ चर्चा कर रहे थे वे ग्वालियर-चंबल से ताल्लुक रखते हैं। इन विधायक को कमलनाथ ने ये भरोसा भी दिलाया है कि हर परेशानी वे दूर कर सकते हैं। लेकिन भरोसा तोड़ना स्वीकार नहीं होगा।
कभी रहे रूतबेदार आईएएस साइलेंट ज़ोन में
कभी सरकार पर संकट आया तो मोर्चे पर तैनात किए जाने वाले एक अफसर अपने रिटायरमेंट तक रुतबेदार ओहदे पर ही रहे थे। सीएम शिवराज की खास टीम में शुमार अफसर रिटायरमेंट के बाद भी सीएम हाउस में फिर से तैनात कर दिए गए हैं। उम्मीद की जा रही थी कि साहब को कोई प्रोडक्टिव जिम्मेदारी सौंपी जाती। लेकिन शांत स्वभाव के गुण वाले अफसर ने साइलेंट ज़ोन की जिम्मेदारी पर ही तल्लीनता से काम करना शुरू कर दिया है। रिटायरमेंट से पहले ये साहब सरकार को उलझनों से दूर रखने की जिम्मेदारी निभाते थे। अब केवल सीएम के कार्यक्रम विभाग तक सीमित हो गए हैं। कहा यह जाता है कि सीएम सचिवालय में एक-एक की नियुक्ति के पीछे बड़ा रिसर्च किया जाता है। गलती की गुंजाइश न रहे इसके पीछे काफी मंथन किया जाता है। कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि जीवन में सरकार को कई दफा संकट से निकालने वाले अफसर को रिटायरमेंट के बाद बतौर पारितोषिक सम्मान मौजूदा नियुक्ति दी गई है। जिम्मेदारियों का क्या है, ये तो वक्त-वक्त पर बदल भी जाती हैं।
नेताजी को फिर बंगले की तलाश
हाल ही में नेता बने कांग्रेस के एक दिग्गज ने फिर से बंगले की तलाश शुरू कर दी है। कांग्रेस सरकार में मंत्री बनने के बाद इन्होंने बड़े चाव से बंगले का चयन किया था। बंगले में ठीक-ठाक ढंग से काम शुरू होता इससे पहले ही सरकार चली गई। सरकार जाने के बाद साल भर में ही यह बंगला छोड़ना पड़ गया था। कुछ दिन निजी मकान में रहे, लेकिन बीजेपी सरकार ने नेताजी की सीनियरिटी को देखते हुए जल्द ही बंगले का इंतज़ार खत्म कर दिया। नए बंगले के कमरों के साथ तालमेल बैठा ही था कि किस्मत फिर गई और नेता बन गए। अब फिर बड़े बंगले की दरकार महसूस की जा रही है। मुसीबत यह है कि मुकम्मल बंगला नहीं मिल रहा है। इसकी इत्तला गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा को भी दे दी गई है। आश्वासन मिला है, आप बंगला पसंद कीजिए, ऑर्डर हम निकाल देंगे। बता दें कि बंगले की तलाश तेज़ी से हो रही है। शनिवार को ही ग्वालियर भेजे गए एक सीनियर पुलिस अफसर का बंगला नेताजी के स्टाफ की नजर में आ गया है। आगे-आगे देखिए होता है क्या। ये ज़रूर बता दें कि पिछले तीन सालों में नेताजी की ये तीसरे बंगले की तलाश है।
दुमछल्ला…
बीजेपी के सोशल मीडिया को चंद अपनों से ही हमले झेलने पड़ रहे हैं। ये अपने वे हैं जो पहले किराये पर लिए जाते थे। लेकिन अब फुल फ्लैश टीम के काम करने से उनको जगह नहीं मिल पा रही है। पुराने वाले अपनों की फौज अपने-अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर समूची बीजेपी की तारीफों के पुल बांध रही है, लेकिन सोशल मीडिया विभाग की हवा निकालने की कोशिश में जुट गई है। फुल फ्लैश टीम को कांग्रेस के साथ पुराने वाले अपनों से भी जूझना पड़ रहा है।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)
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