हैप्पी बर्थडे की बेताब रहा सचिवालय
सूबे के मुखिया का पूरा स्टाफ तलाश करता रहा लेकिन वे नहीं मिल रहे थे। वे विपक्षी दल के एक दमदार नेता हैं। भले ही सरकार के लिए कड़वा बोलते रहते हों, लेकिन उनकी इज्जत हर कोई करता है। सीएम साहब ने सुबह ही सचिवालय को निर्देश दिए थे कि उन्हें जन्मदिन की बधाई देना है, फोन लगाइए। सचिवालय ने आकाश-पाताल एक कर दिया, घर के सरकारी स्टाफ के मोबाइल फोन नंबर भी घुमाए लेकिन उनका पता ही नहीं लगा। उनका फोन लगातार बंद आ रहा था। हालात ऐसे थे कि उनके करीबी लोगों को भी भनक नहीं थी कि साहब कहां हैं। जन्मदिन के मौके पर इस तरह से गायब होने से तरह-तरह की बातें शुरू हो गईं। प्रदेश के कई नेताओं ने उन्हें जन्मदिन पर बधाई देने का मौका मिला नहीं, यह तो नहीं बता सकते। लेकिन राहत की बात यह है कि सीएम साहब देर शाम बधाई देने में कामयाब रहे। सीएम सचिवालय के अफसरों ने तब जाकर राहत की सांस ली।
मिसमैनेजमेंट का शिकार हो गए जघीरा
सोनू सूद अपनी बहन के चुनाव प्रचार के लिए पंजाब पहुंचे भी नहीं थे कि पूरे देश की मीडिया ने सुर्खियां बन गए। सोनू के प्रचार को भी खूब अहमियत मिली। लेकिन जघीरा फेम मुकेश तिवारी अपनी भाभी के चुनाव प्रचार के लिए एमपी के एक शहर में कई दिनों से प्रचार कर रहे हैं, जिसकी भनक तक नहीं है। दरअसल, उनके परिवार ने चुनावी प्रबंधन की बागडोर अपने हाथ में थाम रखी है। जिससे पार्टी के जिम्मेदार नेता भी कुछ कर नहीं पा रहे हैं। बॉलीवुड का इतना बड़ा चेहरा एक छोटे से शहर की मेयर प्रत्याशी भाभी के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा है लेकिन कहीं कोई खबर नहीं। हालांकि मुकेश तिवारी खुद स्थानीय लोगों को प्रभावित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। पार्टी का अपना बूथ प्रबंधन है। लेकिन इन सब झंझटों में बॉलीवुड का बड़ा चेहरा गुमनामी झेलने को मजबूर है।
चीफ के सेटिंग सिस्टम पर लगा अड़ंगा
चीफ ने तो अपनी सेटिंग के लिए पूरा सिस्टम खड़ा कर दिया था, संविदा आधार पर काम करने वाले अपने कर्मचारियों के ट्रांसफर के लिए बाकायदा विंडो खोल दी थी। रेट भी तय थे, 50 हजार प्रति तबादला। सिस्टम ने काम करना भी शुरू कर दिया था। सब खुश हो गए, जिसने जहां चाहा सिस्टम को फॉलो करके अपनी मंशा पूरी कर दी। वैसे भी इच्छुक को यदि एक जगह नारियल फोड़कर मनचाहा प्रसाद मिल जाए तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। सिस्टम ठीक चल रहा था, लेकिन बड़े साहब को भनक लग गई। बड़े साहब जो आईएएस ही हैं, उन्होंने ऑनलाइन आवेदन का सिस्टम तैयार करवा दिया। अब सब ऑनलाइन ही हुआ। इसमें किस सीक्रेट से चीफ ने अपना सिस्टम खड़ा किया, आपको फिर कभी बताएंगे।
मंच पर कुर्सी को तरस गए दो दिग्गज
एक दिग्गज तो वह थीं, जिसके चुनाव ने पूरे देश की सुर्खियां बटोरीं। दूसरे दिग्गज पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार से ताल्लुक रखते हैं। जाहिर है, इनके शहर में हो रहे पार्टी के किसी भी आयोजन में इन दोनों दिग्गजों की कुर्सियां तय होती थीं। आगे की जानकारी देने से पहले यह अपडेट आपको ज़रूर दे देते हैं कि दोनों अलग-अलग महानगरों से आते हैं। अब बात करते हैं स्थानीय निकायों के चुनाव के दौरान हुए शुरूआती शंखनादी समारोह की। दोनों शहर में आयोजन हुए लेकिन मंच पर इन दोनों के लिए कुर्सियां नहीं लगीं। जिनके चुनाव में पूरे देश में सुर्खियां बटोरीं, वे पार्क की बैंच पर बैठी नजर आई और दूसरे दिग्गज दर्शक दीर्घा में। इसके बाद वे चुनाव से लगभग गायब ही नजर आ रहे हैं। नदारद होने की वजह तो आप जान ही गए होंगे, बाकि कुर्सियां नहीं लगाने की वजह आयोजक जानें।
आबकारी के एक संभाग में दो-दो मुखिया
आबकारी विभाग के एक संभाग में दो-दो मुखिया हो गए हैं। एक महकमे के आदेश से और दूसरे सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लौट आए हैं। महकमे के रसूखदार नहीं चाहते हैं कि पहले वाले साहब को चार्ज दिया जाए। लिहाज़ा नए वाले साहब डटे हुए हैं। सहायक आबकारी आयुक्त स्तर के अधिकारियों के कारनामे प्रदेश स्तर पर मीडिया की सुर्खियां बटोर चुके हैं। इसी तरह का एक मामला यहां से भी आया था। अब कोयले की खान में साफ-सुथरे अफसरों की तैनाती की बेमानी मंशा की पूर्ति करने वाले महकमे के सामने सुप्रीम दुविधा आ गई है। न महकमा फैसला लेने की स्थिति में है और ना ही दूसरे जिम्मेदार लोग। फिलहाल संबंधित संभाग के कर्मचारी दुविधा में है कि किस अफसर के आदेश का पालन किया जाए। दोनों अफसर अलग-अलग तरह के आदेश दे रहे हैं, जिनका एक साथ पालन कर पाना संभव नहीं है।
दुमछल्ला…
एक वकील साहब बड़े नाराज़ थे। नाराज़गी तीन महीने तक कायम रही। सरकार के बड़े वकील के तौर पर काम करने के बाद हालात असहज पड़े तो इस्तीफा देने में भी वक्त नहीं लगाया। तीन महीने की चुप्पी के बाद एक बड़े जैक की वजह से उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। इस बार सीधे दिल्ली से हस्तक्षेप हुआ है। सरकार ने भी आदेश जारी करने में तनिक वक्त नहीं लगाया। सुना है, वकील साहब को अब हाईकोर्ट में चैंबर भी मिलने वाला है। यानी अच्छे दिन फिर से लौटने वाले हैं।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)
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