कैलाश का इंदौर, नरोत्तम का ग्वालियर
निकाय चुनाव शुरू हुए तो माहौल ठण्डा-ठण्डा सा ही दिखाई दिया। बीजेपी में तो इसकी वजह तब पता लगी जब लोकल दिग्गजों ने मैदान पूरी तरह से अपने हाथ में लिया। इंदौर और ग्वालियर में चुनाव तभी चढ़ा जब कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा ने कमान संभाली। रैली, जुलूस, आमसभा और रोड शो के जरिये इन दोनों नेताओं ने चुनावी रंग जमा दिया। कार्यकर्ता भी खूब उत्साह में दिखाई दिये। दरअसल, इससे पहले असमंजस के हालात थे। ग्वालियर बीजेपी तोमर और सिंधिया खेमे में बंटी थी। इंदौर में किसी नेता के कमान संभालने का इंतज़ार किया जा रहा था। प्रत्याशी नए थे, इसलिए माहौल ही नहीं जम पा रहा था। आखिर में इन दोनों नेताओं ने बता दिया कि माहौल कैसे बनाया जाता है। इससे पहले इन दोनों ही शहरों में सारा चुनावी माहौल शिवराज और वीडी के भरोसे ही था। जो उनके जाने के बाद शांत हो जाता था। रिजल्ट बताएंगे कि ये चुनावी रंग नतीजों के बाद भी कायम रह पाएंगे या नहीं।
सबको मालूम फिर भी वजह की तलाश
बीजेपी नेता हर एक जगह चर्चा करके यह मालूम करने की कोशिश कर रहा है कि वोटिंग कम क्यों हुई। इन नेताओं को यह भी एहसास है कि वोट नहीं करने वाला और वोट नहीं कर पाने वाला वोटर बीेजेपी का ही होगा। जबकि कम मतदान की वजह सभी जानते हैं। वैसे तो पार्टी ने चुनाव आयोग को ज्ञापन देकर वजह बतायी कि मतदान दल वोटरों के घर तक मतदाता पर्ची नहीं पहुंचा पाया। अब बात कुछ अभियानों की। बीजेपी ने पोलिंग बूथ प्रबंधन के लिए त्रिदेव, बूथ विस्तारक अभियान, हर बूथ पर बीस यूथ, जीतेंगे बूथ-जीतेगी भाजपा, दिग्गजों को पोलिंग बूथ की जिम्मेदारी सौंपने के कई कार्यक्रम चलाए गए। नतीजे मतदान के दौरान ही देख सकते हैं। विधानसभा चुनाव फतेह करने की तैयारी में जुटी बीजेपी के लिए यह झटके से कम नहीं हैं। कोई कह रहा है टिकट बंटवारे के बाद नेताओं की नाराज़गी का खामियाजा है, तो कुछ कह रहे हैं बड़े नेताओं के मैदान में कूदने से लोग रैली-जुलूस में चेहरा दिखाने की औपचारिकता में ही व्यस्त रहे। पोलिंग बूथ पर कोई सक्रिय नहीं हुआ।
यूं बदल गई निकाय रिजल्ट की तारीख
चुनाव आयोग ने तय कर रखा था कि निकाय चुनाव के रिजल्ट 17 और 18 जुलाई को घोषित किया जाएगा। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को शाम करीब 5 बजे घोषित कर दिया कि राष्ट्रपति चुनाव की वजह से 18 जुलाई की बजाय अब 20 जुलाई को नतीजे घोषित किए जाएंगे। दिलचस्प और सीक्रेट बात यह है कि इसकी स्क्रिप्ट दोपहर के वक्त ही लिख दी गई थी, जब बीजेपी के एक कद्दावर लीडर ने फोन पर कांग्रेस के एक कद्दावर लीडर से चर्चा की। यह ज़रूर साफ कर देते हैं कि यह टेलीफोनिक चर्चा मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच नहीं हुई। दोनों लीडरों ने अपने-अपने आलाकमान से चर्चा करके बात फाइनल कर दी। इसके बाद बीजेपी प्रतिनिधिमंडल औपचारिकता पूरी करने के लिए चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचा। ज्ञापन सौंपने के ठीक डेढ़ घंटे बाद तारीख बदलने की घोषणा कर दी। अब इस बात की चर्चा कोई नहीं कर रहा है कि कांग्रेस की तरफ से 28 जून को ही एक ज्ञापन सौंपा गया था और राष्ट्रपति चुनाव की वजह से रिजल्ट की तारीख बदलने की मांग की थी।
दो दिग्गजों के बीच बढ़ रही है तनातनी
नाराज़गी क्या होती है यह एक केंद्रीय मंत्री ने बीजेपी संगठन के सामने ज़ाहिर कर दी है। बीते दिनों चुनाव प्रचार के दौरान संगठन के दिग्गज ने साथ में प्रचार करते हुए फोटो ट्वीट किया। लेकिन दूसरी तरफ से ऐसा नहीं हुआ। मंत्री ने जो फोटो ट्वीट किया उसमें वे अकेले ही नजर आ रहे थे। यह देखते ही संगठन के नेता और संगठन के कान खड़े हो गए। एक संदेश भी नेताजी तक पहुंचाया गया कि संगठन के नेता का ज़िक्र भी किया जाए। सुना है टिकट वितरण से नाराज़ होने के बाद दिल्ली वाले नेताजी ने अपना नाराज़गी का इज़हार करना शुरू कर दिया है। बीजेपी में ये तनातनी की शुरूआत है, जो फिलहाल दोनों के बीच ही नजर आ रही है। हालांकि संगठन वाले नेताजी ने अपनी तरफ से कंट्रोल जारी रखा है। लेकिन एकतरफा नजरअंदाजी बरकरार रही तो असर संगठन की तरफ से भी हो सकता है। आगे-आगे देखिए होता है क्या?
अपने अफसरों की काट ढूंढ रहे एक मंत्री
सरकार के एक मंत्री के पास हैं तो तीन-तीन महकमे, लेकिन काम का केवल एक ही है। यह एक ही ऐसा मलाईदार है जो कई मंत्रियों के बड़े-बड़े महकमो पर अकेला ही भारी है। निराशा की बात केवल इतनी सी है कि इस महकमे पर बैठी मैडम मंत्रीजी के निर्देशों को भाव ही नहीं देती हैं। मंत्रीजी कई बार अलग-अलग नेताओं को अपनी परेशानी बता चुके हैं, लेकिन हल निकल नहीं पा रहा है। हालत यह है कि भारी-भरकम विभाग होने के बावजूद मंत्रीजी कुछ कर ही नहीं पा रहे हैं। अब मंत्रीजी ने दूसरे तरीके निकालना शुरू कर दिया है। सुना है, ऐसी तिकड़मे तलाशी जा रही है, जिनके परिणाम सकारात्मक आना तय हैं। मंत्रीजी भी अब खुश होकर अच्छे दिन के इंतज़ार में लग गए हैं। आपकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए यह इशारा कर देते हैं कि मंत्रीजी सीएम के बाद टॉप 5 में गिने जाते हैं।
दुमछल्ला…
देशभक्ति-जनसेवा का नारा लगाने वाली एक शहर की पुलिस पर इन दिनों कैरेक्टर के सवाल खड़े हो रहे हैं। बीते दिनों विवाहेत्तर संबंधों के चलते फायरिंग और खुदकुशी की घटना हुई तो लोग इस तरह के और कारनामे तलाशने में जुट गए हैं। मुश्किल इस बात की है कि कुछ खाकी वर्दी वाले दो-दो घरों को मेंटेन करने में कामयाब हो रहे हैं, उन पर अब सीधी उंगलियां तानी जा रही हैं। ऐसे एक नहीं बल्कि आधा दर्जन से ज्यादा उदाहरण है, जिनके रिश्तों के चर्चे थानों के गलियारों में अक्सर किए जाते हैं। कुछ रिश्ते वर्दी तक सीमित हैं, तो कुछ वर्दी के बाहर के भी हैं। जिस शहर से हनीट्रेप कांड की शुरूआत हुई,वहां इस तरह की चर्चाएं महकमे के इज्जतदार लोगों को शर्मसार कर रही हैं।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)
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