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हार से खुले बीजेपी के मनमुटाव
किसी भी तरह के चुनावों में अपराजेय योद्धा की पहचान बना चुकी बीजेपी को निकाय चुनाव में हार मिली तो खामियां खुलकर सामने आ रही थी। यह आपसी मनमुटाव और कमियां अक्सर जीत के गुबार में दबी रह जाती थी या नजरअंदाज़ हो जाती थी। दमोह में बीजेपी के पर्याय रहे मलैया परिवार के फरजन्द ने बगावती बिगुल बजाया तो बीजेपी को आईना दिखा दिया। जबलपुर नगर निगम के चुनाव में मिली हार के बाद दिग्गज नेताओं के बीच सोशल मीडिया पर की गई परस्पर टिप्पणियां पार्टी की फजीहत करा रही हैं। सिंगरौली और कटनी में भी इसी तरह के हालात हैं। ऐसी विचलित टिप्पणियों और रवैयों-तेवरों को पार्टी नेतृत्व ने गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। बीजेपी ने अब यहां वर्क आउट शुरू करने का प्लान तैयार किया है।
मुश्किल वक्त, टीम बीजेपी सख्त
‘मुश्किल वक्त-कमांडो सख्त’ ये नारा सेना के कमांडो में ऊर्जा भरने के लिए होता है। निकाय चुनाव में पराजय के बाद जब पंचायत चुनाव अध्यक्ष के निर्वाचन का वक्त आया तो बीजेपी नेता कुछ इसी तेवरों में दिखे। भोपाल में कांग्रेस की तरफ से दिग्विजय, पचौरी जैसे दिग्गज पहुंचे तो समर्थकों का हुजूम खड़ा हो गया। जाहिर बात है, उन्हें गड़बड़ी का आभास था। लेकिन झंडा लहराया बीजेपी का। जबलपुर, उज्जैन, रतलाम में भी ऐसे ही नजारे दिखाई दिए। कांग्रेस के हाथ में आती जीत बीजेपी ने छीन ली। साम-दाम-दंड-भेद तो प्राचीन काल से चली आ रही राजनीति का हिस्सा है। सो, इस्तेमाल हुआ और बीजेपी ने रिजल्ट को अपने पक्ष में कर लिया। सियासी चालबाज़ियों पर बहस अपनी जगह है, मायने रिजल्ट ही रखता है। लिहाज़ा दिग्विजय-पचौरी भरसक प्रयास के बाद भी असहाय होकर लौटे। बीजेपी ने नेता की टिप्पणी को याद कीजिए जो उन्होंने निकाय चुनाव में हार के सवाल पर की थी – राजनीति कोई संतों का अखाड़ा नहीं है। इस टिप्पणी के बाद कांग्रेस को बीजेपी के आगामी तेवरों का अंदाज़ा लगा लेना चाहिए था। बहरहाल, सियासत पर निगाह रखने वालों के लिए दिलचस्प होगा आने वाला विधानसभा का चुनाव।
कांग्रेस को घर के भेदी की तलाश
पूरी चर्चा कमलनाथ और उनके करीबियों के बीच आपस में बंद कमरे में हुई थी। लेकिन लीक हो गई। लीक हुई तो उसमें मसाला भी लगा। लीक करने वाले और मसाला लगाने वाले कर्णधारों को अंदाज़ा था कि टारगेट किसे किया जा रहा है। लेकिन जिस तरह सूचना लीक हुई, पूरी पार्टी और पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों पर सवाल खड़ा हो गया। कांग्रेस अब इस बात की खोज में लगी है कि सूचना लीक करने वाला शख्स है कौन? आखिर कौन प्रदेश कांग्रेस के एकजुटता का संदेश को बट्टा लगाने पर आमादा है। कोशिश तेजी से की जा रही है। लेकिन हम आपको बता दें कि वह शख्स अंदर का ही है। जिसने बाकायदा एक प्रेस नोट की शक्ल में पूरी जानकारी बाहर की थी। इसके लिए वॉट्स एप की बजाय एक अन्य सामाजिक माध्यम का इस्तेमाल किया गया था। अय्यार तो नाम भी बता रहे हैं, लेकिन सीक्रेट जगजाहिर होने के बाद तूफान आने का खतरा है।
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पुलिस कमिश्नरी के औचित्य का प्रश्न
यह प्रश्न सीधे सूबे के मुखिया ने उठाया है। इसे दुरुस्त करने को कहा गया है। इन निर्देशों के बाद खुल पुलिस मुखिया ने दोनों पुलिस कमिश्नरों को स्वयं को साबित करने का टास्क दिया है। इस हिदायत के बाद भोपाल और इंदौर की पुलिस टीम में यकायक बदलाव देखे जा सकते हैं। दरअसल, दिसंबर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम को लागू हुए एक साल पूरे हो जाएंगे। इस दौरान डीजीपी इन दोनों ही शहरों में पुलिस कार्यप्रणाली में आए बदलाव की रिपोर्ट देना चाहते हैं। लिहाजा पर्सनली इस पर नजर बनाए हुए हैं। प्रदेश पुलिस कप्तान की कोशिश है कि अपराध नियंत्रण, कार्यवाही में तेजी के साथ नवाचार भी प्रस्तुत किए जाए, जिससे सामाजिक जीवन सरल किया जा सकता है। इन दोनों ही शहरों की पुलिस पर सीधे पुलिस मुख्यालय से नजर रखने का प्लान भी है। देखना है आईपीएस खेमा खुद को साबित करने के लिए कितना काम कर पाता है।
चीफ सेक्रेटरी को लेकर उलझी गुत्थी
बात नए चीफ सेक्रेटरी को लेकर है। मौजूदा सीएस के रिटायरमेंट का वक्त करीब आते ही दावेदार अफसरों ने अपनी प्रोफाइल सही जगह पहुंचाना शुरू कर दिया था। भोपाल से लेकर दिल्ली तक के आईएएस एक्टिव हो गए थे। लेकिन सरकार की तरफ से मौजूदा सीएस को एक्सटेंशन देने की फाइल चली तो निराशा-हताशा का माहौल बन गया। अब खबर आ रही है कि मौजूदा सीएस एक्सटेंशन को लेकर आनाकानी कर रहे हैं और स्वास्थ्य का हवाला देने लगे हैं। ऐसे में निराश-हताश दावेदार अफसरों ने लामबंदी फिर से शुरू कर दी है। एक तरफ मौजूदा साहब से बातचीत का दौर चल पड़ा है, तो दूसरी तरफ अलग-अलग गुट एक्टिव हो गए हैं। जहां से भी ज़ोर लगाया जा सकता है, लगाया जा रहा है। उलझी गुत्थी को सुलझाने की कवायदें तेज हैं।
दुमछल्ला…
शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया शुरू होकर अब आखिरी पड़ाव तक पहुंच चुकी है। इसी बीच में अब जिम्मेदार टेबिलों ने संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है। दरअसल, सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद मुख्यालय की टेबिलों तक पहुंचाने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाने शुरू हो चुके हैं। अब तक ये सारा मामला ऊपर के अफसरों से छिपाकर किया जा रहा था। कुछ लोग तो कमजोर दिल के लोगों को काटने में कामयाब भी हो गए लेकिन अधिकतर को निराशा हाथ लगी। सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है और नियुक्ति पत्र जारी करने का काम भी आखिरी दौर में चल रहा है। लोग प्रयासों में लग गए हैं कि आखिरी वक्त में भागते भूत की लंगोटी ही नजर आ जाए। महकमे की इस बिल्डिंग के सबसे बड़े तेज़ तर्रार कहे जाने वाले जिम्मेदार साहब के कानों में यह बात अब तक नहीं पहुंची है।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)
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