एक मंत्री ने काट दी अफसरों की जेब
सरकार के मंत्री आमतौर पर अपने ही महकमे के आला अफसरों की आनाकानी से परेशान रहते हैं। संगठन-सरकार के पास ऐसी शिकायतों के अंबार मौजूद हैं। लेकिन एक मंत्री ऐसे हैं जिन्होंने ऐसी चक्कर-घिन्नी घुमाई है कि अफसर चर्चा कर रहे हैं कि मंत्रीजी ने उनकी जेब ही काट ली। इससे पहले फाइलें अफसरों के पास ही सेंक्शन हो जाती थीं। अब रिन्यूअल हो या सेंक्शन मंत्रीजी की चिड़िया के बगैर मुमकिन ही नहीं होता है। अफसरों के पास सेंक्शन हो चुकी फाइलें मंत्रीजी फोन करके बुलवाते हैं फिर आवेदक के पास पीए फोन लगाते हैं। डील बंद कमरे में हो जाती है और पीए साहब की जेब गर्म होते ही सिग्नल ग्रीन हो जाता है। मंत्रालय में जमकर चर्चा है कि अब तक इसे मलाईदार महकमा समझा जाता था, लेकिन मलाई अब ऊपर-ऊपर तक सीमित हो गई है। आपकी जानकारी के लिए ये ज़रूर बता दें कि इससे पहले शिवराज की बतौर सीएम दूसरी पारी में वह राज्यमंत्री थे, लेकिन इस बार नया महकमा स्वतंत्र प्रभार के साथ मिला है।

विपक्ष को चुनावी फंड की सुरक्षा की चिंता
विधानसभा चुनाव के दौरान इधर-उधर किए जाने वाले फंड के बारे में कौन नहीं जानता है। इस बार विपक्ष को इस फंड की सुरक्षा की चिंता है। दरअसल, सत्तापक्ष के रणनीतिकार इस फंड को इधर-उधर करने वाले तारों के छोर तक पहुंचने की फिराक में है। जिसकी भनक विपक्ष के कई लीडरों को लग गई है। इसलिए अब सुरक्षित रास्ता तलाशा जा रहा है। चुनाव के आखिरी तीन दिनों में इसी फंड के फ्लो से सब दुरुस्त किए जाने की परंपरा है। सत्तापक्ष के पास अपना सिस्टम होता है, लेकिन विपक्ष का सिस्टम अक्सर कमजोर साबित हो जाता है। विपक्षी दल के नेता जब चुनाव के आखिरी तीन दिनों का ज़िक्र करते हैं तो एक वजह यह यह भी शामिल होती है। इसलिए अब इन तीन दिनों के लिए विपक्षी दलों के अलग-अलग नेता अपने लीडर के इशारे के बाद अपनी नयी रणनीति पर काम करने लगे हैं।

संतों के ज़रिए मज़बूत हो रहे एक मंत्री
पंडोखर, रावतपुरा, बागेश्वर जैसे धाम हों या फिर पंडित प्रदीप मिश्रा जैसे संत… सरकार के एक कद्दावर मंत्री ने इन सभी के बीच तेजी से पैठ बना ली है। इन संत-महाराजों की ज़बरदस्त फैन-फॉलोइंग है। कद्दावर मंत्री ने इन संतों के साथ जब संवाद स्थापित किया तो संतों ने मंत्रीजी की खुलकर जय-जयकार शुरू कर दी है। एक महाराज ने तो अपनी गादी से ही उन्हें ‘हिन्दू ह्रदय सम्राट’ की उपाधि से नवाज़ दिया। मंत्री के दखल की वजह से जिन दो महाराज के बीच में पड़ी दरार खत्म हुई। यहां तक कि दोनों एक ही कार्यक्रम में भी साथ-साथ नज़र आए। दरअसल, इन महाराजों का चुनावी वक्त में बड़ा इस्तेमाल किया जा सकता है। न केवल मंत्रीजी के अंचल में बल्कि प्रदेश के दूसरे कई इलाकों में भी। ज़ाहिर है, संगठन को चुनाव के वक्त जब इन संतों के इशारों की ज़रुरत पड़ेगी तो रुख मंत्रीजी की तरफ ही करना पड़ेगा।

बीजेपी मीडिया प्रभारी का संत अवतार
संतों की बात चली है तो एक राजनेता के संत अवतार का भी ज़िक्र कर लेते हैं। बीजेपी के संवाद विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे नेताजी मीडिया को सहूलियत की मांग पर फंस गए। भीड़-भाड़ वाली तिरंगा यात्रा के दौरान साथ चल रहे वाहनों में सवार मीडियाकर्मियों ने जब भीड़ को दूर करने की मांग की तो नेताजी को हस्तक्षेप करना पड़ा। लेकिन एक कार्यकर्ता उखड़ गया। कार्यकर्ता नेताजी पर बरस पड़े और आम कार्यकर्ता होने की दुहाई देने लगे। नेताजी के दखल को कार्यकर्ता ने बदसलूकी दर्जा तक दे दिया। उधर, नेताजी केवल सामने हाथ जोड़े खड़े रहे, कोई ना-नुकुर नहीं की कोई तर्क नहीं दिया। केवल आम कार्यकर्ता का गुस्सा झेलते रहे। ऐसी घटनाएं के भीड़-भाड़ वाले आयोजन में आम होती है। लेकिन नेता मीडिया और कार्यकर्ता के बीच व्यवस्थाएं बनाने वाले अक्सर कार्यकर्ता को झिड़क ही देते हैं। लेकिन इन नेताजी ने शालीनता-सज्जनता और धैर्य का परिचय देकर मामला संभाल लिया।

लीडर का इशारा, सीधे अंदर आओ राजा
जामवाल ने नाराज़ और उपेक्षित पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए एक नई खिड़की खोल दी है। उन्होंने पार्टी की बैठक में सभी को साफ कह दिया है कि कहीं भी-किसी से भी नाराज़गी हो तो सीधे उनसे आकर मिले और अपनी बात रखे, वे हर एक से मिलेंगे। चुनावी दौर में यह काफी अहम रणनीति समझी जा रही है। लेकिन सीधे अंदर आने का इशारा करने के बाद कई बड़े नेताओं का माथा ठनक गया है। न जाने कौन क्या शिकायत करेगा। फिर जामवाल इस फी़डबैक का इस्तेमाल कैसे और कहां करेंगे। इससे कई नेताओं के नंबर घट-बढ़ सकते हैं। शिकायत के बाद नंबर बढ़ने की उम्मीद तो कम ही है, लेकिन नंबर घटे तो चुनावी साल में कहीं कोई साइड इफेक्ट नहीं हो जाए। एक अहम जानकारी यह भी दे दें कि करीब डेढ़ दर्जन विधायकों का फीडबैक जामवाल ने सीरियसली लिया है। उनकी गठरी बांधकर उपयुक्त स्थान पर खोलने की तैयारी है।

दुमछल्ला…
चार इमली में रहने वाले एक मंत्री के बंगले पर एक रिश्तेदार के लिए एक नया कक्ष बनाया गया है। यहां से रिश्तेदार साहब मंत्रीजी का खास कामकाज देखते हैं। इस व्यवस्था के बाद बंगले पर मौजूद स्टाफ को सहूलियत होनी चाहिए थी। लेकिन साहब मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। कई सरकारी कामकाज की फाइल अब इस टेबिल से गुजरने लगी हैं। यही नहीं, कुछ फाइलें तो इसी कक्ष से शुरू होती हैं। दखलअंदाजी से स्टाफ परेशान हो गया है, लेकिन कोई किसी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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