गौ-अभयारण्य से हाथ खींचे सरकार ने
सुसनेर के गौ-अभयारण्य में फैली अव्यवस्थाएं अब सरकार के माथे आने लगी हैं। नतीजतन इसके कर्ता-धर्ता अब व्यवस्थापक की जिम्मेदारी से हाथ खींचने की तैयारी में लग गए हैं। एक प्रस्ताव तैयार किया गया है जिसमें गौ-अभयारण्य की जिम्मेदारी एक एनजीओ को देने की तैयारी है। जिम्मेदारों ने एनजीओ को भी शॉर्ट लिस्ट कर दिया है। अब केवल ऊपर की सहमति मिलनी बाकी है। दरअसल, यह गौ-अभयारण्य विशेषज्ञों की देखरेख में चलाने के बावजूद अव्यवस्थाओं का शिकार था। बीमार गायें और कभी-कभी उनकी मौतों की खबरों से सरकार की किरकिरी होने लगी थी। दरअसल, गौ-अभयारण्य का कांसेप्ट वन विभाग से आया था। वन विभाग में ऊपर से लेकर नीचे तक वन्य प्राणी विशेषज्ञों की तैनाती की जाती है और उन्हें विशेष अधिकार भी प्राप्त होते हैं। ऐसा गौ-अभयारण्य में संभव नहीं है। इसलिए अब एक ऐसी एजेंसी को गौ-अभयारण्य देने की तैयारी है, जिसने राजस्थान में बदहाल गौ-शालाओं को मुनाफे वाली विशाल गौशालाओं में तब्दील किया है।

CAG की रिपोर्ट को लेकर मची गफलत
वाकया उस वक्त का है, जब विधानसभा के बीते सत्र का आखिरी दिन था। इसी दिन सीएजी की रिपोर्ट टेबल होने वाली थी। मौका भांपते ही विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया, सरकार को घेरने की रणनीति तो एक दिन पहले ही बना ली गई थी। लेकिन सरकार के अफसरों के बीच गफलत मच गई। उन्हें रिपोर्ट के बारे में जानकारी ही नहीं थी। दरअसल, यह रिपोर्ट विधायकों के बीच वितरित कर दी गई थी। लेकिन बाहर ही नहीं आ पायी। दरअसल, रिपोर्ट को मीडिया तक पहुंचाने से रोका जा रहा था। लेकिन रिपोर्ट अफसरों तक भी नहीं पहुंची। जिस मुद्दे पर हंगामा हो रहा था, वह रिपोर्ट तो काफी बाद में बाहर की गई। लेकिन तब तक नदी में काफी पानी बह निकला था और मीडिया के हाथ दूसरा बड़ा और इंटरनेशनल मुद्दा लग गया। पूरे देश का मीडिया चीते की खोज खबर में व्यस्त हो गया और सीएजी की रिपोर्ट सार्वजनिक होकर भी दबी ही रह गई।

कमलनाथ की तस्वीरें होने वाली थी जारी
एक और रिपोर्ट का सीक्रेट आपको बताते हैं। विधानसभा में कई महकमे अपनी वार्षिक रिपोर्ट पेश करते हैं। ऐसी ही कुछ रिपोर्ट पेश होनी थी। सभी महकमों ने रिपोर्ट तैयार की और विधानसभा के पटल पर प्रस्तुत करने के लिए उनकी कई प्रतियां विधानसभा में भेजने की तैयारी कर ली। सरकार की निगहबानी करने वाले कुछ शार्प माइंड अफसरों ने रिपोर्ट पेश करने से ऐन पहले जब जायजा लिया तो माथा ठनक गया। सभी के मुख पृष्ठ पर कमल नाथ की मुस्कुराती तस्वीरें नजर आ रही थी। सरकार की किरकिरी होती इससे पहले ही सारी रिपोर्ट तुरंत ही लौटा दी गईं। इसके बाद महकमों ने नई तस्वीर वाली रिपोर्ट विधानसभा को भेजी। जाहिर है, सरकार की इज्जत बाल-बाल बचा ली गईं। यदि अफसर शार्प माइंड नहीं होते और ज़रा सी आखिरी लापरवाही हो जाती तो कांग्रेसी मजे लेने का मौका कतई नहीं छोड़ते। हालांकि मामला दबा दिया गया है, और सरकार को भी उन अफसरों के बारे में अब तक यह सीक्रेट पता नहीं चल पाया है कि कमलनाथ की तस्वीरें छापने के जिम्मेदार अफसर कौन-कौन हैं।

तो ऐसे मिलेगा राहुल की पदयात्रा को समर्थन
कांग्रेस ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा को तूफानी समर्थन देने की ज़बरदस्त तैयारी कर रखी है। राहुल गांधी जब मध्य प्रदेश की धरती पर कदम रखेंगे तो अचानक ही हज़ारों लोगों का कारवां उनके साथ पीछे-पीछे हो लेगा। इसके लिए कांग्रेसी रणनीतिकारों ने जिला अध्यक्षों को एक बड़ा टास्क दिया है। करीब के जिलों के अध्यक्ष एक हज़ार लोगों को लाएंगे और दूर के जिलों के अध्यक्षों 200 लोगों के साथ राहुल गांधी की यात्रा में शामिल होंगे। जाहिर है, कुछ आम लोगों का भी इंतज़ाम किया गया है, जो अलग-अलग तरीकों से पदयात्रा करते राहुल गांधी से मुलाकात करेंगे। ऐसी तस्वीरों से ज़ाहिर हो जाएगा कि राहुल गांधी की पद यात्रा का एमपी में बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा था और पद यात्रा में शामिल होने की बेताबी थी। तो अब उस वक्त का इंतज़ार कीजिए जब उपरोक्त पंक्तियां वीडियो और तस्वीरों की शक्ल लेंगी।

फिर से बजरंग बली फार्मूला चलाएंगे नाथ?
एमपी की जमीनी राजनीति करते-करते हनुमान भक्त कमलनाथ को बजरंग बली के टोटके से कई फायदे मिले हैं। जब-जब बजरंग बली का ज़िक्र हुआ है, कमलनाथ को कामयाबी मिली है। यही नहीं, कमलनाथ के सामने भी यदि किसी ने बजरंग बली का ज़िक्र कर दिया तो उसे भी फायदा मिला। ग्वालियर अंचल में एक कद्दावर मंत्री को हराने वाले एक कांग्रेस विधायक को भी इसके फायदे पता चले हैं। दरअसल, चुनाव से ऐन पहले विधायकजी को कमलनाथ ने टिकट देेने की सूचना दी, तब वे अस्पताल में भर्ती होकर कोरोना का इलाज करा रहे थे। कमलनाथ ने सवाल किया कि चुनाव कैसे लड़ोगे तो जवाब में नेताजी ने कहा कि अब बजरंग बली ही देखेंगे। कमलनाथ ने दोबारा से पूछा क्या कहा – नेताजी ने दोहराया कि बजरंग बली सब ठीक करेंगे। फिर क्या था, चुनाव के बाद नेताजी विधायक बन गए हैं। अब कमलनाथ इस बात का ज़िक्र बार-बार कर रहे हैं और अपनी बैठकों में भी इस कामयाब टोटके की बात कह रहे हैं। सवाल यह है कि इस बार जय श्री राम के जवाब में जय बजरंग बली का नारा लगाने की तैयारी तो नहीं है?

दुमछल्ला…
बीजेपी ने चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह के सीएम काल के वक्त हुई चरनोई भूमि विवाद को फिर से उछालने की तैयारी कर ली है। इसके लिए खाली पड़ी या दबंगों के कब्जे वाली चरनोई ज़मीन को वापस लेने की तैयारी शुरू की है। इसे चरागाह बनाने की तैयारी है। इस तरह बीजेपी को एक बार फिर से दिग्गी राज को कोसने का मौका मिल जाएगा। इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाने की तैयारी की जा रही है। योजना का खाका तैयार कर लिया गया है, बेहद जल्त इसे जनता के सामने परोस दिया जाएगा।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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