मुलाकात को हां, बजट को ना
पहुंच-पकड़ हो तो मुलाकात संभव हो जाती है, लेकिन बजट भी मिल जाए ये संभव नहीं है। मौजूदा मुख्य सचिव के साथ क्रिस्प के अफसरों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। यह सोसायटी इन दिनों भारी किल्लत के दौर से गुजर रही है। तनख्वाह में देरी इस सोसायटी के कर्मचारियों को अक्सर भुगतना पड़ता है। अहम बात यह है कि कर्ता-धर्ता संघ पृष्ठभूमि से आते हैं। अब आइए मुद्दे की बात पर सोसायटी प्रबंधन फाइनेंस की जुगाड़ के लिए तरह-तरह की स्कीम बनाकर मुख्य सचिव के सामने पेश कर रहा है। स्कीम की तो तारीफ मिल रही है, लेकिन इसके लिए बजट का प्रबंध करा पाने में हाथ खड़े किए जा रहे हैं। दरअसल, किसी सोसायटी को अलग से बजट उपलब्ध कराना प्रशासनिक नियमावली से संभव नहीं है। एक स्कीम में 50 हजार युवाओं को ग्रामीण युवा उद्यमी बनाने का सपना दिखाया गया, तो दूसरी योजना आईटीआई की ट्रेनिंग देने की थी। दोनों में 200 से 250 करोड़ के बजट स्वीकृत करने का प्रस्ताव रखा गया, जो नामंजूर हो गया। समझने की बात यह है कि संघ पृष्ठभूमि से मुलाकात की राह तो आसान हो सकती है, लेकिन बजट मिलना संभव नहीं है।

विंध्य को वजन देने के लिए जतन
बीजेपी ने यह भांप लिया है कि विंध्य-बघेलखंड में फैला असंतोष विधानसभा चुनाव के दौरान भारी पड़ सकता है। इसलिए रणनीतिकार यहां के लिए खास रणनीति प्लान कर रहे हैं। इससे यहां के नेताओं को आने वाले दिनों में वजन मिल सकता है। इस इलाके में राजेंद्र शुक्ल, अजय प्रताप सिंह जैसे नेताओं की किस्मत खुल सकती है। संजय पाठक और केदार नाथ शुक्ल के लिए भी दांव पटका जा सकता है। आने वाले दौर में मंत्री मंडल विस्तार और संगठन में नए पदों पर नियुक्तियां होनी हैं। इसमें यदि विंध्य और बघेलखंड को वजन मिल जाए तो चौंकिएगा नहीं। फिलहाल पार्टी के कर्णधार नामों पर गौर कर रहे हैं, फोकस इस बात का है कि क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाए, जिससे विंध्य-बघेलखंड से पार्टी के लिए जीत के रास्ते आसान हो जाएं। फिलहाल यहां के नेता मौन हैं। जाहिर है, राजनीतिक लिहाज़ से अहम स्थान रखने वाले इस इलाके के लोग और नेता

आंटी के मकान में अवैध की तलाश
भोपाल नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी अमले को एक आंटी का मकान निर्माण खूब खटक रहा है। खटकपन इतना ज्यादा है कि नगर निगम के अफसर रोज इस घर के तीन-चार चक्कर काट कर जाते हैं। आंटी का मकान फिलहाल निर्माणाधीन है और नगर निगम का अमला रोज-रोज बारीक नजर से देख रहा है कि कब अवैध निर्माण हो और बुलडोजर चढ़ा दिया जाए। एक ज़रा से मौके की तलाश की जा रही है। इस गंभीरता की वजह एक रिटायर्ड अफसर हैं, जो इसी कॉलोनी में आंटी के निर्माणाधीन मकान से सटे बंगले में रहते हैं। रिटायर्ड अफसर की इस ज़मीन पर नजर है, जिससे उनके बंगले को स्पेसियस बना दे। एक-दो प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन आंटी ने कोर्ट के दखल से मकान बनाने का ग्रीन सिग्नल ले लिया है। अब रिटायर्ड अफसर का दबाव नगर निगम के अफसरों पर हैं, वे बार-बार अपने और मंत्रीजी के नज़दीकी रिश्ते की बात छेड़कर नगर निगम अफसरों को असहज कर देते हैं। लिहाज़ा दबाव में चक्कर काटे जा रहे हैं।

बीजेपी के 2 नेताओं में ‘अहाता वॉर’
बीजेपी के 2 नेताओं के बीच अहाता वॉर शुरू हो गया है। अहाता लेने को लेकर युद्ध चल रहा है। फिलहाल तो शीतयुद्ध के ही हालात हैं। एक नेता तेज़तर्रार हैं और सरकार के चहेते हैं। दूसरे युवा नेताजी पर दिल्ली के नेता का हाथ है। दोनों अपनी-अपनी पर अड़े हुए हैं और अहाता हथियाने को लेकर तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। फिलहाल शीतयुद्ध के ज़रिए शह और मात का खेल चल रहा है। हाल ही में 3 अहाते तेज़तर्रार नेता के समर्थकों तक पहुंच गए हैं। अब जवाब देने की बारी दिल्ली के हाथ वाले युवा नेता की है। युवा नेता सारे कारोबार की कमान खुद संभाले हुए हैं। लेकिन तेज़तर्रार नेता अपने समर्थकों के लिए इस वॉर में सामने खड़े हुए हैं। मामला फिलहाल दोनों के बीच में ही है, लेकिन यही हाल रहे तो मैदानी जंग भी शुरू हो सकती है।

मंत्रालय के अफसरों में आयुर्वेद का क्रेज
मंत्रालय के अफसरों में इन दिनों आयुर्वेदिक उपचार का क्रेज जमकर देखने को मिल रहा है। ज़ुकाम की परेशानी के लिए रुमाल में लौंग और कपूर फंसाकर इनहेल किया जा रहा है। बड़े से लेकर छोटे तक कई अफसर अब एलोपैथिक दवा की बजाय दादी-नानी के नुस्खे अपनाकर हल्का-फुल्का इन्फेक्शन ठीक कर रहे हैं। बीते हफ्ते मौसम में हुए बदलाव के बाद जब एक बार फिर आयुर्वेदिक उपचार शुरू हुआ तो एसीएस, पीएस से लेकर कई सेक्रेटरी स्तर के अफसरों के कक्ष कपूर की खुशबू से लबरेज रहे। जिस तरह सेंट्रलाइज्ड एसी वाले मंत्रालय भवन में इन्फेक्शन फैलने की आशंका होती है, उसी तरह लौंग और कपूर को रुमाल में लपेटकर खुशबू लेने का नुस्खा भी तेजी से फैल रहा है।

दुमछल्ला…
आम तौर पर मीटिंग शुरू करने के लिए सीनियर अफसर का इंतज़ार किया जाता है। लेकिन कभी कभार जूनियर अफसर की योग्यता को देखते हुए भी मीटिंग शुरू करने में देरी की जाती है। एक महकमे के बड़े अफसरों ने बैठक शुरू करने के लिए महकमे में पदस्थ जूनियर डायरेक्टर मैडम का देर तक इंतज़ार किया। केवल इंतज़ार ही नहीं किया, बल्कि मैडम को फोन करके याद भी दिलाया कि मीटिंग शुरू करना है, जल्द आ जाइए। तब तक महकमे के दूसरे सीनियर-जूनियर अफसरों ने इंतज़ार किया। मैडम के आने के बाद मीटिंग शुरू हुई। अफसर काबिल हो तो, उसे सम्मान देना भी सीनियर अफसरों का ही काम है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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