ग्वालियर में फिर ‘महल सरकार’ के चर्चे
अमित शाह के ग्वालियर स्थित सिंधिया महल में कदम रखते ही चंबल की सियासत में एक बार फिर महल सरकार के चर्चे शुरू हो गए हैं। सिंधिया के महल में अमित शाह के साथ ही सीएम शिवराज, नरेंद्र सिंह तोमर, वीडी शर्मा, नरोत्तम मिश्रा जैसे दिग्गज भी महल के अंदर पहुंचे थे। बीजेपी दिग्गजों की आमदरफ्त इससे पहले राजमाता युग के दौरान ही देखी जाती थी। इस घटना के बाद इसे फिर से महल सरकार की वापसी समझी जा रही है। खासतौर पर सिंधिया समर्थकों ने इस कार्यक्रम में उत्साह से भर दिया है। हालांकि महल में रानी लक्ष्मीबाई की एंट्री से भी एक बड़ा संकेत सिंधिया ने दिया है। यहां मराठा रजवाड़ों की वैभव गाथा का उल्लेख करने वाली गैलरी शुरू हुई तो झांसी राजघराने को भी शामिल किया गया। बीजेपी में मराठाओं की शौर्यगाथा के ज़रिए महाराज ने संघ को भी खुश कर दिया है। आने वाले दिनों में इसके बड़े इफेक्ट भी देखने को मिल सकते हैं।

मंत्रियों की लिस्ट के लिए खास फॉर्मूला
तबादलों की लिस्ट को लेकर झमेला अभी खत्म नहीं हुआ है। ट्रांसफर लिस्ट जारी करने की तारीख आगे बढ़ाने के बाद सारा काम स्मूद होने की उम्मीद थी। लेकिन कुछ मंत्रियों को अफसरों ने दगा दे दिया। दरअसल, शुरुआत में जो लिस्ट जारी की गई, उसमें अफसरों ने अपने ट्रांसफर पहले कर लिया। ऐसा तीन-चार महकमों में देखने को मिल रहा है कि मंत्रियों की लिस्ट निकल ही नहीं पा रही है। इसमें ऊपर से जब कुछ नियम-कायदे जोड़ दिए गए तो फंसी केवल मंत्रियों की लिस्ट। अब एक खास फार्मूला निकाला गया है। एक साथ सभी ट्रांसफर करने की बजाय धीरे-धीरे छोटी-छोटी लिस्ट जारी की जा रही है। निराकरण का फार्मूला तो कारगर है, लेकिन देरी से आवेदक बेसब्र होते जा रहे हैं। हालात यह हैं कि कई मंत्रियों को अपने कमिटमेंट पर जवाब देना मुश्किल पड़ रहा है। अफसरों ने मंत्रियों को ऐसा उलझाया है कि मंत्री न निगल पा रहे हैं, न उगल पा रहे हैं।

मंत्री जी को दिवाली पर चाहिए ठोस गिफ्ट
दिवाली से पहले मंत्रियों के बंगले पर हैप्पी दिवाली कहने वाले रौनक अफरोज़ कर रहे हैं। कुछ तो मंत्रियों से सीधे मिलकर हैप्पी दिवाली कह रहे हैं। जाहिर बात है, दिवाली पर मिठाई की परंपरा निभाई जाती है। लेकिन एक मंत्री जी ऐसे हैं जिन्हें मिठाई से अचानक एलर्जी हो गई है। उन्हें कुछ ठोस चाहिए। अपने बंगले पर मिलने वालों से वे कहते नजर आए कि मिठाइयों और सिंपल गिफ्ट से क्या होता है, कुछ ठोस सोने की चीजें दिया करो। मंत्री जी के साफगोई देखकर गिफ्ट देने वाले भी भौचक रह गए। हालांकि मंत्री जी अपनी इसी तरह की साफ बयानी के लिए जाने जाते हैं। वे हर काम ठोस करते हैं सो दिवाली की बधाई भी ठोस ही पसंद करेंगे। इससे पहले सॉफ्ट गिफ्ट देने वाले कुछ लोगों ने ठोस गिफ्ट बाद में पहुंचाए हैं और कुछ पहुंचाने की तैयारी कर रहे हैं। भई हैप्पी दिवाली केवल कहने भर से काम थोड़ी न चलता है। हैप्पी करना भी ज़रूरी है, वर्ना बाद में भड़ास निकाली जा सकती है।

धूमधाम से मन रही ट्रांसफर वाली दिवाली
ट्रांसफर सीज़न के तुरंत बाद दिवाली के त्योहार ने सरकारी कॉलोनियों में बहार ला दी है। बंगलों पर रंगीन झालरें चमचमा रही हैं। हालांकि कोरोना के दो साल निकलने बाद का इफेक्ट कहकर मुद्दे से भटकाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन चमचमाता घर और घर के बाहर लोडिंग ऑटो से उतरते सामान देखेंगे तो आप खुद ही अंदाज़ा लगा लेंगे कि घर में रहने वाले का ताल्लुक मंत्रालय या विभागाध्यक्ष से सीधे है। इसके बाद की कड़ियां खुद-ब-खुद जोड़कर दिवाली की बहार का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं होता है। भोपाल के न्यू मार्केट, दस नंबर मार्केट और बिट्टन मार्केट पर जमकर खरीददारी हो रही है। सतपुड़ा से बाहर निकलते वक्त कर्मचारियों ने वीकेंड पर घर जाते वक्त एक दूसरे को जाते हुए हैप्पी ट्रांसफर वाली दिवाली भी कहते सुनाई दिए।

जन्मदिन की बधाइयों से फिर आई ‘शोभा’
बीते हफ्ते मैडम का जन्मदिन था। मैडम वैसे मेनस्ट्रीम पॉलिटिकल हैपनिंग से लंबे अर्से से गायब चल रही थी। लेकिन मैडम के जन्मदिन पर सोशल मीडिया पर चला बधाइयों के दौर ने बरबस ही ध्यान खींच लिया। वैसे तो बर्थडे तो पिछले साल आया और चला भी गया। लेकिन इस बर्थडे पर मैडम को मिली शुभकामनाओं ने कांग्रेस की सियासत में नए चर्चे शुरू कर दिए हैं। पीसीसी के गलियारों में इसके कारण तलाशने की जद्दोजहद लगातार जारी है। कमलनाथ के एमपी की सियासत में 2018 में कदम रखने के साथ ही मैडम के जलवे देखने लायक थे। कमलनाथ की सरकार के दौरान भी उनके इशारों से एक बड़ा महकमा चलता था। लेकिन सरकार जाने के बाद उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया। मैडम कब गई और कहां रहीं कुछ पता नहीं चला। अब बधाई संदेशों ने मैडम के युग की वापसी का इशारा कर दिया है। खबर मिली है कि साहब के बंगले पर मैडम कोर ग्रुप की मीटिंग में भी शामिल होने लगी हैं। बाकी भविष्य के अंदाजे आप खुद लगा लीजिए।

दुमछल्ला…
साहब के विदेश में पढ़ने वाले बेटे को रकम भेजने के लिए उस बंदे ने खूब मदद की। लेकिन 3 महीने में ही साहब बंदे से खार खाने लगे थे। खुन्नस निकालने के लिए साहब ने बंदे को मानसिक तौर पर परेशान भी करना शुरू कर दिया था। बंदा कुछ कर भी नहीं पा रहा था, क्योंकि साहब जिस महकमे से आते हैं, उस रास्ते गुजरने में भी अच्छे-अच्छे अफसर, नेता, मंत्री, उद्योगपति जैसे लोग कतराते हैं। लेकिन बंदा भी चालाक था, उसने उसी महकमे के साथ प्रवर्तन निदेशालय को एक शिकायती चिट्ठी पहुंचा दी है। इसमें यह राज़ खोल दिया गया है कि साहब अपनी आमदनी से बड़ी रकम अपने विदेश में पढ़ने वाले बेटे को पहुंचा रहे हैं। अब आगे क्या होता है, यह तो वक्त ही बताएगा।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus