ओंकारेश्वर पर सीधे पीएमओ की नजर

महाकाल कॉरिडोर की तरह ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को भव्य स्वरूप देने के लिए चल रही योजना पर सीधे पीएमओ से निगरानी की जा रही है। इस परिसर में इस बार आदि शंकराचार्य की विशालकाय प्रतिमा स्थापित की जानी है। जिसके लिए स्थान चिन्हित किया जा चुका है। इस जगह पर क्या हो रहा है, इस के बारे में ज़बरदस्त गोपनीयता बरती जा रही है। आलम यह है कि स्थानीय नेताओं को भी पता नहीं कि अंदर चल क्या रहा है। देश के ज्योतिर्लिंगों को भव्य स्वरूप देने की पीएम मोदी की कोशिश में अब नंबर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का है। इसके लिए एमपी सरकार ने काफी पहले से योजना तैयार कर रखी है। लेकिन अब पीएमओ ने इसकी मॉनीटरिंग शुरू कर दी है। पीएमओ की सीधी नजर के बाद एमपी के अफसरों की हालत का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं। इस योजना से जुड़े अफसरों को दिन-रात ओंकारेश्वर भगवान याद आ रहे हैं।

मंत्री ने बनाया बेजोड़ तबादला फॉर्मूला

तबादलों को लेकर मंत्री और अफसरों में जमकर तनातनी तो जगजाहिर है। लेकिन एक मंत्री ऐसे भी हैं, जिन्होंने ऐसा फॉर्मूला तैयार किया कि तबादलो को लेकर मंत्री के बंगले से निकली नोटशीट अफसर की रजामंदी की मुहर के साथ जस की तस लौट आई। तबादला आदेश जारी हुआ तो मंत्रियों के स्टाफ के बीच जमकर चर्चा शुरू हुई कि आखिर मंत्रीजी ने ऐसा कौन सा फॉर्मूला तैयार कर लिया? हम उस फॉर्मूले का सीक्रेट खोल देते हैं। दरअसल, मंत्रीजी ने सबसे पहले तबादले की वजह को लेकर गाइड लाइन बनाई। इसके बाद गाइड लाइन के दायरे में आने वाले आवेदनों की फेहरिस्त अफसरों से ले ली। फिर अपने विधायक, पदाधिकारियों और अन्य करीबियों से उनकी सिफारिशें लीं। इसके बाद जो नोटशीट भेजी, वह जस की तस आदेश की शक्ल में वापिस आ गईं। यदि बाकी मंत्री भी अपनी ज़िद छोड़कर सबकी सुनने की कोशिश करते तो वे भी अब पड़ने वाली लानत-मनालतों के दौर से बच जाते। अब सबकी आस केवल सीएम कॉर्डिनेशन से फाइल लौटने पर ही टिकी हुई है।

निधि संग्रह में गड़बड़ी, गिरेगी गाज

पार्टी के लिए फंड इकट्ठा करने के मामले में जब गड़बड़ी सामने आई तो आलाकमान के होश फाख्ता हो गए। कई जिलाध्यक्षों का हिसाब-किताब गड़बड़ाया हुआ था। बड़ी रकम अपने खीसे में पहुंचायी जा रही थी। जब मामला दिल्ली वाले नेताओं की नजर में आया तो दिमाग एमपी के नेताओं का भी ठनक गया। अब तक अपनी ही पार्टी से इस तरह के कारनामे नहीं किए जाते थे। होते भी थे तो ऊपर तक पहुंच नहीं पाते थे। लेकिन पीढ़ी बदल के दौर में मिली युवा नेताओं को मिली बड़ी जिम्मेदारी के बाद इस तरह के कारनामों ने पार्टी नेतृत्व का सिर शर्म से झुका दिया है। अब डेमेज कंट्रोल की कवायद चल रही है। कमराबंद बैठकों में व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की नसीहत दी गई है। लेकिन जल्द ही चिन्हित नेताओं पर कार्यवाही की गाज भी गिराई जाने की खबर है। कुछ जिलाध्यक्ष बदले जाएंगे तो अब वजह मत खोजिएगा।

आदेश के इधर-उधर से आने की कहानी

ये ऐसा प्रस्ताव है जो महकमे की तरफ से आया तो लौटा दिया गया। प्रस्ताव के पीछे एक दिग्गज आईएएस थे, जो चाहते थे कि मेडिकल कॉलेजों में आईएएस अफसर को प्रशासक के तौर पर तैनात किया जाए। इस प्रस्ताव को मेडिकल कॉलेजों में आईएएस अफसर के बेवजह दखल के तौर पर देखा गया, इसलिए विभाग की बड़ी मीटिंग में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। लेकिन इस प्रस्ताव के पीछे चूंकि एक बड़े और दिग्गज अफसर थे, इसलिए इस बार आदेश ऐसी जगह से आया जिसे टालना मुश्किल हो गया है। यह प्रस्ताव अब तक अमल के लिए इसलिए रुका हुआ है क्योंकि जूनियर डॉक्टरों ने हड़ताल की धमकी दे दी है। बताने वाले तो यह बताते हैं कि कोरोना काल के बाद मेडिकल कॉलेजों के बजट में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। इससे कई लोगों की नजर इस महकमे पर पड़ गई है। अब अफसरों का एक समूह इधर-उधर से मेडिकल कॉलेजों में दाखिल होने के रास्ते खोजने लगा है। आगे-आगे देखिए होता है क्या।

दिग्गज मैडम की इंपोर्टेड डिमांड

मैडम खुद अफसर हैं, लेकिन एक दिग्गज नेताजी की पत्नी भी हैं। उनका अपने गृह जिले में रुटीन का आना जाना है। इस जिले के एक आबकारी अफसर मैडम की इम्पोर्टेड ख्वाहिशों से परेशान रहते हैं। दरअसल, मैडम जिस ब्रांड की डिमांड करती हैं, उसे खोजकर उपलब्ध कराने में पसीने आ जाते हैं। अब इम्पोर्टेड चीजें गली-मुहल्लों की दुकानों पर तो मिलती नहीं है। इसलिए ऐड़ी-चोटी का जोर उसी तरह लगाया जाता है, जैसे हनुमान ने संजीवनी की खोज में लगाया था। मैडम तेजतर्रार हैं और पॉवरफुल भी, इसलिए उनकी बात को टालना अमले के लिए मुश्किल हो रहा है। जिले में मैडम का अपना रुतबा-रुआब है, लेकिन वे डिमांड करने में संकोच भी नहीं करती हैं। आलम यह है कि मैडम के बंगले का फोन मोबाइल पर आता है तो पूरे शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

दुमछल्ला…

भोपाल नगर निगम में अफसर और ठेकेदारों के बीच चल रही गलबहियों पर अब दखलअंदाज़ी शुरू हो गई है। मेयर, अध्यक्ष और पार्षदों का कार्यकाल खत्म होने के बाद सबकुछ इन्हीं की मर्जी से चल रहा था। किसी का कोई दखल नहीं था। अब चुनाव जीत कर कई ऐसे मंझे हुए नेता आ गए हैं, जो ये काकस तोड़ने में जुट गए हैं। एक नेताजी ने तो एक ठेकेदार को गुणवत्ता के नाम पर दो टूक बात कह दी है, उन्होंने साफ कर दिया कि 4 करोड़ के काम में गुणवत्ता से समझौता किया तो पेमेंट रुकवा देंगे। अपने महारथी होने का उदाहरण देते हुए उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि पेमेंट किस रास्ते रोका जा सकता है। इस तरह की पैंतरेबाज़ी से अब नगर निगम के अफसरों और ठेकेदारों के बीच बने काकस को सतर्क होने का संकेत मिल गया है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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