विधायक से वसूली पर मिला निलंबन
बीते दिनों स्वास्थ्य विभाग के एक अफसर का निलंबन हुआ। वैसे, तो यह अफसर जिले में अस्पतालों पर ताबड़तोड़ कार्यवाही करके अपनी पहचान बना रहा था। लेकिन अंदर की खबर यह है कि ‘बात’ नहीं बनने पर कार्यवाहियां की जाती थीं। ‘बात’ बन जाए तो किसी भी खामी से नज़रें चुरा ली जाती थीं। मामले लगातार बढ़ रहे थे। इन्हीं ताबड़तोड़ कार्यवाहियों की चपेट में विधायक का अस्पताल भी आ गया। विधायक की कुर्सी का रसूख काम नहीं आया और ‘बात’ बनाने के लिए अस्पताल के जेब का वजन हल्का करना पड़ा। विधायक ठहरे सत्ताधारी दल से, इसलिए शिकायतों का अंबार लगा दिया। नतीजे में मंच से अफसर के निलंबन का ऐलान हो गया। हां, यह ज़रूर बता दें कि अफसर केवल कार्यवाहियों के लिए जाने जाते थे, जिले में तेजतर्रार वाली इमेज भी बन रही थी। ऐसा कोई भ्रष्टाचार भी नहीं था जिसकी जांच चल रही हो। यहां सीधे कार्यवाही हुई। आपको यह बताते चलें कि जिस दिन निलंबन हुआ उस दिन अफसर भोपाल में विभागीय ट्रेनिंग कर रहे थे और यह ट्रेनिंग कार्यवाही के 6 दिन पहले से चल रही थी। ट्रेनिंग के बीच ही कानाफूसी वाले अंदाज में साथी अफसरों ने निलंबित अफसर को उनके निलंबन की खबर दी।

मंत्री के लेनदेन की नया सिस्टम
एक मंत्री ने लेनदेन का नया सिस्टम बना दिया है। जिले में उनके विभाग के किसी भी नए काम की फाइल अब इस मंत्री के बंगले पर पहुंचने लगी है। हालांकि फाइल का काम विभाग के अफसर के पास खत्म हो जाता है। हर तरह का ‘काम’ अफसर के पास ही खत्म हो रहा था। लेकिन अब मंत्री के पास पहुंचना ज़रुरी हो गया है। मंत्री खुद सारी बात करते हैं और ‘काम’ को अंजाम देते हैं। यह ‘काम’ आवेदक के लिए अतिरिक्त हो रहा है। आवेदक अफसर वाले सिस्टम को ही बेहतर मानते थे, इसमें लेटलतीफी की गुंजाइश नहीं होती थी। अब मंत्री के बंगले पर प्रत्यक्ष उपस्थिति दर्ज कराने के बाद ‘काम’ को खत्म करा पाने में काफी देरी हो रही है। आवेदक भी छोटे-मोटे नहीं होते हैं। बड़ी रकम खर्च करने का माद्दा रखने वाले ही इस तरह का आवेदन दे पाते हैं। जिस महकमे का काम है, वहां छोटी-मोटी रकम खर्च करना गलत भी नहीं माना जाता है। बस मंत्री का नया सिस्टम सिरदर्द बन रहा है।

जांच एजेंसी दफ्तर की जासूसी!
बीते दिनों एक सीनियर IPS अफसर का छह महीने में बाद ही तबादला करने का आदेश काफी सुर्खियां बटोर रहा था। चर्चाएं इस बात की हो रही है कि सरकारी दफ्तर में भ्रष्टाचार की निगहबानी करने वाली जांच एजेंसी की जासूसी आखिर कौन कर रहा था? दरअसल, ये IPS अफसर कुछ बड़े अफसरों की पुरानी फाइलों से धूल झड़वा रहे थे। कुछ फाइलें तो खोल भी ली गई थीं। लेकिन एजेंसी में मौजूद जासूसों ने तुरंत यह खबर ऊपर तक पहुंचा दी। नतीजा यह हुआ कि जिस दिन छह महीने पूरे किए उसी दिन तबादले का आदेश आ गया। इस तबादले के बाद कुछ ने चैन की सांस ली होगी, लेकिन दूसरे लोगों ने साहब के कार्यकाल की जमकर तारीफ की। सोशल मीडिया पर साहब की तारीफ में जमकर कशीदे गढ़े गए। साथ ही यह सीक्रेट भी बाहर आ गया कि बड़ी मछलियों ने इस जांच एजेंसी में अपने जासूस तैनात कर रखे हैं। ये जासूस दफ्तर में हो रही कानाफूसी की खबर सही जगह पर पहुंचा रहे हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि इन जासूसों भनक एजेंसी के अफसरों को पहली बार लगी है।

विक्रम के पीछे ‘माइनस’ का बेताल
इस यूनिवर्सिटी को बेहतर श्रेणी में लाने के लिए दिल्ली की टीम के सामने बड़े-बड़े जतन किए गए थे। बाहर के नामचीन और प्रबुद्ध लोगों को दिल्ली की टीम के सामने पेश किया गया था। जिन्होंने यूनिवर्सिटी के प्रबंधन और व्यवस्थाओं की खूब तारीफ की। उम्मीद थी कि रिजल्ट में यूनिवर्सिटी को मौजूदा से बेहतर श्रेणी मिल जाएगी। लेकिन रिजल्ट आया तो श्रेणी ‘माइनस’ में आ गई। जबकि इसके पीछे पूरा महकमा लगा हुआ था, यूनिवर्सिटी मंत्री के गृह जिले की थी इसलिए वे थोड़ा भावुक भी थे। लेकिन रिजल्ट ने मंत्री की इज्जत पर ही बट्टा लगवा दिया। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि चौबे जी निकले थे छब्बे जी बनने लेकिन दुबे जी बनकर लौटे। मंत्री जी की पढ़ाई इसी यूनिवर्सिटी से हुई है, पीएचडी डिग्री लेकर ही बाहर निकले। अब इसी महकमे के मंत्री हैं तो यूनिवर्सिटी के लिए कुछ करना तो बनता ही है। मंत्री सार्वजनिक मंच पर अपनी डिग्री और इस यूनिवर्सिटी का ज़िक्र किया करते थे। अब करेंगे तो रैंकिंग सारा पोल खोल देगी। इससे उनके कामकाज पर भी सवाल जो खड़े होते हैं।

करप्शन क्वीन की पिछले किस्से
आयुष्मान योजना में गड़बड़ी पर कड़ी कार्यवाही को लेकर ऊपर से निर्देश हैं। जून 2022 में अस्पतालों में हो रहे घोटाले के मामले सामने आने के बाद ही कुंडली खंगालने के निर्देश दिए गए थे। लेकिन इसके मास्टर माइंड का खुलासा तब हुआ जब लेनदेन का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। जब मैडम का इतिहास देखा गया तो उन्हें सोशल मीडिया पर करप्शन क्वीन कहा जाने लगा। दरअसल, वे जिस-जिस जगह पर रहीं, वहां बड़े-बड़े कारनामे किए। इससे पहले मेडिकल की पीजी डिग्री में हुई गड़बड़ी के तार भी जोड़े जाने लगे हैं। वैसे, यह बता दें कि मैडम अब दूसरे बड़े महानगर में पदस्थ हो गई हैं। इसलिए अब तक कार्यवाही केवल सोशल मीडिया पर ही हो रही है। यह सीक्रेट भी हम आपको बता देते हैं कि टॉप लेवल की जिस मीटिंग में आयुष्मान योजना के घोटालेबाजों का पता करने के लिए सबकी कुंडली खंगालने के निर्देश दिए गए थे, उसमें मैडम भी बैठी हुई थीं। कार्यवाही का इंतज़ार अब तक क्यों हो रहा है, समझना मुश्किल नहीं है।

दुमछल्ला…
पुलिस कमिश्नर के टीआई सब पर भारी हैं। पुलिस कमिश्नर सिस्टम में कोई भी एसपी पोस्टिंग से कतरा रहा है। दरअसल, एक साल पूरा होने के साथ ही यह मैसेज भी मिल गया है कि कमिश्नर के नीचे किसी भी आईपीएस की बखत नहीं रह जाती है। हालत यह है कि थाना प्रभारी किसी भी अफसर की नहीं सुनता है। पुलिस कमिश्नर की सुनना तो मजबूरी है, लेकिन पुलिस कमिश्नर के नीचे तैनात दूसरे आईपीएस अफसरों को बार-बार नाफरमानी की जिल्लत झेलनी पड़ रही है। जिस पुलिस कमिश्नर सिस्टम को लागू करने को लेकर आईपीएस लॉबी में हर्ष का माहौल था, उन्हीं आईपीएस में से एसपी स्तर के अफसर एडिशनल पुलिस कमिश्नर बनने से बच रहे हैं। हां, टीआई लॉबी में जमकर होड़ मची हुई है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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