मुंह लटकाकर बैठी है ब्यूरोक्रेसी!
आईएएस एनुअल मीट में सीएम शिवराज ने जब मंच से कहा कि कुछ अफसर मंत्रालय में मुंह लटकाकर बैठे हैं तो अफसरों का माथा ठनका नहीं, बल्कि वे खुशी की लहर फैल गई। दरअसल, अफसरों का एक वर्ग चाहता था कि मुख्यमंत्री तक यह खबर पहुंचाई जाए कि एक बड़ा तबका निराश होकर बैठा है और मंत्रालय में मुंह लटकाकर बैठने पर मजबूर है। दरअसल, बड़ी तादाद में अफसरों को लग रहा है कि उनकी चल नहीं रही। वे कुछ करना भी चाहते हैं तो कर नहीं पाते हैं। ऊपर बैठे चंद अफसर नकारकर या नज़रअंदाज़ करके उत्साह काफूर कर रहे हैं। नज़रअंदाज़ तबका आपस में तो इसकी चर्चा कर रहा था, लेकिन मुख्यमंत्री तक अपनी बात नहीं पहुंचा पा रहा था। कोशिश तो कई बार की गई, लेकिन रिजल्ट नहीं मिला। अब शिवराज ने एनुअल मीट में अफसरों के दिल की बात कहकर यह संदेश दे दिया है कि उन्हें सबकी खबर है। अब उम्मीद इस बात की है कि खबर पहुंच गई है तो शायद अच्छे रिजल्ट भी आएंगे। फिलहाल प्रयास चालू है।

सत्ता की बात मान गए पंडितजी
मसला एक ऐसे विधानसभा क्षेत्र का है जहां कांग्रेस पैठ जमाना चाहती है। भोपाल का यह इलाका विधानसभा क्षेत्र बनते ही बीजेपी के कब्जे में रहा है। अब यह बीजेपी इसे अपने गढ़ के तौर पर लेती है। अलग-अलग चुनावों में कांग्रेस के कई लीडरों ने यहां किस्मत आज़माने की कोशिश की लेकिन पराजय ही मिली। इस बार नये दावेदार हिन्दुत्व और सक्रिय नेता के तौर पर तैयारी शुरू की है। इसके लिए नेताजी अलग-अलग पैंतरे भी आज़मा रहे हैं। एक बड़ा पैंतरा आज़माने के लिए पंडित प्रदीप मिश्रा के शिवपुराण की योजना बनाई, इसके लिए पंडितजी से शुरूआती औपचारिकताएं भी पूरी कर ली गईं। लेकिन चंद रोज़ बाद ही पंडितजी ने एडवांस लौटाकर क्षमा मांग ली। नेताजी को बाद में पता चला कि विधानसभा पर काबिज नेताजी को इस कथा की भनक लग गई थी। अब यहां कथा बीजेपी कराएगी। कांग्रेस के नेताजी को अब पता चला है कि कथा के लिए भी विधानसभा को कुरुक्षेत्र की तरह देखना होगा। हालांकि बीजेपी वाले नेताजी की जितनी नजर अपने विधानसभा क्षेत्र पर है, उससे ज्यादा अय्यार उन्होंने कांग्रेस वाले नेताजी पर भी छोड़ रखें हैं।

कलेक्टर हैं पर कलेक्शन नहीं
बीते कुछ महीने पहले कलेक्टरी करने पहुंचे कुछ कलेक्टरों का कलेक्शन नहीं हो पा रहा है। जिस उत्साह से कलेक्टरी के लिए चढ़ोती चढ़ाई थी, वह जिलों में पहुंचते ही काफूर हो गई है। दरअसल, अब तक चढ़ोती ही नहीं निकल पाई है। जल्द ही आचार संहिता भी लगने वाली है, ऐसे में नुकसान की आशंका भी घर करने लगी है। ऐसे कलेक्टर अब माथा पीट रहे हैं कि कलेक्टर को जिले का राजा कहने वाली कहानी आखिर सुनाई किसने थी। इन जिलों में निचले अफसरों की जमावट और सत्तापक्षीय राजनेताओं की ऐसी सांठगांठ है कि कलेक्टर तक कलेक्शन पहुंच ही नहीं पाता है। ऐसे में नुकसान होना लाजमी है। ऊपर तक सीधा कनेक्शन होने की वजह से गठजोड़ से सीधा पंगा भी मुमकिन नहीं है। चंद महीनों में फिलहाल तो यह गठजोड़ ही समझ आया है, ऐसे हालत भोग रहे कलेक्टर साहबों अब नयी तरकीब की तलाश शुरू कर दी है।

बैठे थे गढ़ने, शुरू हो गए झगड़ने
सरकार ने एक व्यवस्थित नीति बनाने के लिए अफसरों के साथ कुछ कामयाब युवाओं को शामिल किया। उम्मीद थी कि एक कारगर नीति बनेगी, जिससे चीजें आसान होंगी और एमपी के युवाओं को फायदा मिलेगा। इसकी बैठक शुरू हुई तो युवाओं की मांगें अफसरों को नीतिगत नहीं लगी। यानी सरकारी सिस्टम में उनकी सलाहों को समाहित किया जाना मुमकिन नहीं हुआ। एक-एक करके जब कई डिमांड का हश्र यही हुआ तो समिति में शामिल सरकार से बाहर के लोगों को लगने लगा है कि अफसर आनाकानी कर रहे हैं। दरअसल, दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए हैं। युवा और अफसर टस से मस नहीं हो रहे हैं। इससे सरकार की व्यवस्थित नीति की मंशा पूरी नहीं हो पा रही है। वैसे, यह ज़रूर बता दें कि बात अब तक सरकार तक पहुंची नहीं है। जबकि यह सरकार की महत्वाकांक्षी नीति शुमार है। शुरूआती बैठक में मिठास घुलने की बजाय फैली कड़वाहट से साफ है कि सरकार का सिर एक बार फिर फिरने वाला है।

कलेक्टर की गजब एक्टिवनेस
राजधानी के करीबी जिले के एक कलेक्टर की एक्टिवनेस की चर्चा मंत्रालय के पांचवे माले में हो रही है। दरअसल, कलेक्टर साहब ने अल सुबह से लेकर देर रात तक अमले को काम पर लगा दिया है। छुट्टी के दिन भी अमला काम में जुटा हुआ है। जिले के पेंडिंग मामले और समस्या की शिकायतें जल्द से जल्द निपटाने की कवायद हो रही है। इसके लिए कलेक्टर दफ्तर के अफसरों ने समूचे जिले के फील्ड अमले को हिला कर रख दिया है। पांचवी मंजिल में दिखाई देने वाले कंप्यूटर पर पेंडेंसी तेजी से खत्म होती दिखाई देने लगी तो कलेक्टर साहब की तरफ मंत्रालय के दूसरे अफसरों का भी ध्यान गया। दरअसल, महीने के आखिर में कलेक्टर-कमिश्नर कांफ्रेंस होना है। इसमें हर महकमे और हर जिले की रिपोर्ट रखी जाएगी। बाकी जगह तो दिशा-निर्देशों पर ही काम चल रहा है, लेकिन इस जिले के कलेक्टर ने सीधे रिजल्ट पर फोकस कर दिया है। यह भी साफ है कि नतीजे नहीं देने वाले अफसर सीएम की मौजूदगी में होने वाली कलेक्टर-कमिश्नर कांफ्रेंस में कोपभाजन के शिकार होते रहे हैं। लिहाजा इन दिनों की एक्टिवनेस ज़रुरी है। सीएम साहब ने आईएएस मीट में आगाह जो कर दिया है।

दुमछल्ला…
इंदौरियों ने प्रवासी भारतीयों की आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। शहर क्या अपने घर-द्वार भी सजा दिए थे। प्रशासन ने भी कुछ इसी तरह के इंतज़ाम कर रखे थे। आवभगत की जिम्मेदारी वाले अफसरों ने कुछ विदेशी मेहमानों को ठहराने का प्रबंध किया उसमें शहर के कुछ होटल और रिसोर्ट रिजर्व किए। लेकिन भीड़भाड़ की आपाधापी में यह भूल गए कि कुछ देशों के लोग केवल नॉनवेज ही पसंद करते हैं। ब्रेक फास्ट के वक्त एक होटल के बुफे में केवल वेजिटेरियन ब्रेकफास्ट देखकर विदेशी मेहमानों ने होटल प्रबंधन पर आपत्ति जाहिर कर दी कि वे हर भोजन में केवल नॉनवेज ही लेते हैं। किसी तरह इंदौरी मेज़बानों ने मामले को संभाला।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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