बधाई हो साहब के यहां शादी है
मंत्रालय के एक बड़े अफसर के घर पर शादी का माहौल है। साहब ऐसे-वैसे नहीं है, मंत्रालय में उनकी तूती बोलती है। उनके नाम से ही कई काम हो जाते हैं। ज़ाहिर बात है, इस शादी की तैयारी को लेकर ऊपर से नीचे तक जमकर चर्चे चल रहे हैं। महकमे का हरेक शख्स किसी न किसी तौर पर इस शादी की तैयारी से जुड़ने को लालायित है। साहब खुश होंगे तो कर्मचारी-अधिकारी का भविष्य संवर सकता है। यहां तक तो ठीक है, आलम यह है कि ताबड़तोड़ तैयारी में जुटने की वजह से महकमे का रूटीन प्रभावित हो गया है। यहां तक की साहब की मौजूदगी में होने वाली मंत्रालय की बैठकें तक रद्द होने लगी हैं। महकमे से जुड़े एक दफ्तर का अमला शादी का कार्ड बांट रहा है या फिर दूसरी तैयारी में जुटा है। पागलपन की हद तक तैयारी में जुटे अमले का एक सीक्रेट यह भी है कि जो तैयारी में नहीं भी जुटना चाह रहे हैं उन्हें भी इस झमेले में डाला जा रहा है। भले ही बेमन से करें, लेकिन तैयारी तो करनी ही पड़ेगी। साहब नाराज़ हो गए तो उलटा पड़ सकता है।

फंड के लिए कॉलिंग मंत्री जी
‘चुनाव आ गए हैं, फंड तैयार रख लीजिए, डिलेवरी जल्द उठानी है।’ मंत्रियों के फोन पर होने वाली टॉप सीक्रेट बातचीत का यही लब्बोलुआब है। कुछ मंत्री ऐसे हैं, जिन्होंने मौसम का रुख देखकर डिलेवरी उठानी की तैयारी शुरू कर दी है। इन तुर्रमखां मंत्रियों को मालूम है कि पार्टी दो-चार महीना तो लगाएगी ही। लिहाज़ा अभी से ही प्रेशर बनाना शुरू कर दिया है। ये वो पार्टी हैं, जो बीते तीन-चार सालों से मंत्रियों के बंगले से उपकृत होती आई हैं। इनसे चुनाव के वक्त होने वाली साइलेंट डील पहले ही की जा चुकी है। डिलेवरी में लगने वाले औसत वक्त का अंदाज़ा लगाकर पहल शुरू कर दी गई है। हालांकि पार्टियों के लिए फंड का इंतज़ाम टेढ़ी खीर है, वे इस गफलत में है कि नेताजी अगली किश्त की डिमांड भी ज़रूर करेंगे। इस चुनाव में मामला टाइट है, चुनावी रणसमर के लिए इस बार ज्यादा पेटियां खपानी पड़ सकती है। मंत्रियों और दिग्गज लीडरों ने तो कमर कसकर तैयारी शुरू कर दी है। पार्टियां भी हामी भरकर अपने रुटीन काम में जुट गए हैं।

कैसे लीक हुआ छापे का सीक्रेट
रात के डेढ़ बजे का वक्त है। वीआईपी कारों का काफिले में अफसरों की जमात है ये बात इंदौर से भोपाल तक आग की तरह फैल गई। कारोबारियों की रात काली हो गई थी, क्योंकि खबर यह मिली थी कि जमात में इनकम टैक्स विभाग की छापामार टीम है। टॉप सीक्रेट छापा मारने पहुंची इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की टीम की यह खबर आखिर लीक कैसे हो गई, यह जांच का विषय है। आमतौर पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के छापे लीक नहीं होते हैं। यह खबर सुबह ही सुनाई देती है। लेकिन इस बार इनफॉर्मेशन लीकेज की वजह से सारे कारोबारी अलर्ट पर आ गए। रात भर काफिले की खबर लेते रहे। 40 कारों के काफिले का पता लगाना इतना भी मुश्किल नहीं है। अल सुबह के वक्त जब छापामार दल इंदौर पहुंचा तो साफ हो गया कि छापा कहां पड़ना है। बहरहाल, छापा पड़ गया, फाइलें खंगाल ली गई हैं। जांच अभी जारी है। अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसमें जितना काला-पीला मिला होगा, कम ही होगा। क्योंकि कारोबारियों और इन्वेस्टरों के पास मामला दुरुस्त करने के लिए मुकम्मल वक्त मिल गया था।

एमपी के डेरे पर नेताओं के डोरे
एमपी में छतरपुर के बाबा बागेश्वर और सीहोर के पंडित प्रदीप मिश्रा के जलवे पूरे देश में अफरोज़ हो रहे हैं। भले ही मामला हरियाणा-पंजाब के डेरों जैसा नहीं है, लेकिन उससे कम भी नहीं है। इन दोनों बाबाओं की पूरे देश में तूती बोल रही है। बाबाओं की सभाओं में भीड़ उमड़ रही है तो नेता नगरी कैसे हाथ पर हाथ रखकर बैठ सकती है। सारे नेताओं ने इन बाबाओं पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। एमपी-छत्तीसगढ़ में हो रही इन बाबाओं की कथाओं के पीछे कोई न कोई नेता ही हैं। जितनी कथाएं हो चुकी हैं, उससे ज्यादा नेता अभी इन दरबारों में कतार में खड़े हैं। मज़े की बात तो यह है कि एक ही विधानसभा क्षेत्र में विरोधी नेता की कथाओं को काटने की रणनीति भी अपनाई जा रही है। जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं, इन कथाओं की तादाद में ज़बरदस्त बढ़ोतरी होने की संभावना हैं। आप भी इंतज़ार कीजिए देश भर में जलवे बिखेर रहे बाबा जल्द ही आपके द्वार के करीब भी होंगे। बस नेता दमदार होना चाहिए।

भाषण के सेंसरशिप की जिज्ञासा
राज्यपाल के 26 जनवरी भाषण को लेकर अफसरों ने जमकर मेहनत की थी। भरसक जानकारी जुटाई गई और रिसर्च भी की गई जिससे मध्य प्रदेश सरकार के हर अच्छे कामकाज को 26 जनवरी के भाषण के जरिए जनता तक परोसा जाए। एक बड़ी टीम लगाई गई थी। पूरी मेहनत करने के बाद करीब 37-38 सौ शब्दों की एक स्पीच तैयार कर राजभवन भेज भी दी गई। अब 26 जनवरी से ऐन पहले जब राज्यपाल का भाषण छपकर आया तो तैयारी कर रहे अफसरों के होश फाख्ता हो गए। राज्यपाल ने इन शब्दों के समंदर को घटाकर 2500 शब्दों के तालाब में तब्दील कर दिया। अफसरों में जिज्ञासा तो बहुत है कि सेंसरशिप की ज़रूरत क्यों पड़ी। लेकिन किसी से पूछ नहीं सकते हैं। मामला राज्यपाल से जुड़ा है। इधर-उधर से जानकारी जुटाने की कवायद लगातार जारी है।

दुमछल्ला…
ग्वालियर के एक नेताजी को न्यूज चैनल शुरू करने का जुनून आ गया है। दिल्ली दौड़ लगाकर बार-बार एक नए चैनल को शुरू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। पहले नेताजी की कोशिश थी कि नए चैनल का लायसेंस लिया जाए, लेकिन अब उन्हें सलाह दी गई है कि शौक पूरा करने के लिए उत्तर या दक्षिण भारतीय चैनलों से भी बात की जा सकती है। कोशिशें कमजोर नहीं हुई हैं, नेताजी के चेलों ने इधर-उधर दौड़ लगाकर जल्द रिजल्ट देने का बीड़ा उठा लिया है। वैसे, चुनाव से पहले नए चैनलों की जमात हर बार देखी जाती है, इस बार साल भर पहले भी ऐसा अनुभव मध्य प्रदेश के लोगों के लिए नया नहीं होगा।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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