एमपी में महाराज की चुप्पी

सूबे की सियासी चर्चाएं महाराज के ज़िक्र के बगैर अधूरी ही रहती हैं। इन दिनों बीजेपी के भविष्य की चर्चा के बीच महाराज का ज़िक्र ज़रूर आता है। इधर महाराज इन सारे मामलों में नपे-तुले शब्दों का इस्तेमाल करके जवाब देते हैं। एमपी के मामले में इन नपे-तुले बयानों को चुप्पी माना जा सकता है। कभी बेबाक होकर अपने विचार साझा करने वाले महाराज का यह अवतार सामान्य नहीं समझा जा रहा है। वैसे, भी बीजेपी में आजकल अचानक की परंपरा का बोलबाला है। ऐसे में नपे-तुले बयान वाला अंदाज़ ही कारगर साबित हो सकता है। महाराज भले ही चुप्पी साध कर बैठे हों, लेकिन उनके कुछ समर्थकों ने बीजेपी से मुख्तलिफ शैली अपना रखी है। सोशल मीडिया पर ऐसे विचार साझा किए जा रहे हैं, जैसे उनके ‘उसूलों’ पर आंच आ रही हो। बहरहाल, बीजेपी के रहनुमाओं ने हर एक पर नज़र बना कर रखी है, ताकि चुनाव के वक्त इस रिपोर्ट का ज़रूरत के हिसाब से उपयोग किया जा सके।

अगर दवे-लुनावत होते तो !
बीजेपी दफ्तर में इन दिनों कुछ कार्यकर्ता चर्चा करते नजर आने लगे हैं कि चुनावी मौसम तो शबाब पर आने लगा है, लेकिन चुनावी तैयारी नजर नहीं आ रही है। इसमें अनिल दवे और विजेश लुनावत की भर-भर कर याद की जा रही है। ये दोनों नेता ऐसे हैं कि अपने हिसाब से वक्त पर तैयारी में जुट जाते थे। चुनाव रथ एक बार खड़ा ही हो जाता, वीडियो फिल्म वाली गाड़ियों के मॉडल नजर आने लगते, चुनावी पेंफलेट्स और सरकार की वाहवाही करने वाली योजनाओं की किताबें नजर आती। मीडिया वाले इस पर खूब खबर बनाकर बीजेपी का माहौल बनाते। अब दोनों नेता स्वर्गवासी हो चुके हैं। ये वही नेता हैं, जिन्होंने 2003 के वक्त ‘जावली’ में बैठकर ऐसी रणनीति बनाई कि 15 साल लगातार सरकार चली। अनिल दवे के बगैर एक चुनाव निपट चुका है, लेकिन इस बार विजेश लुनावत भी नहीं हैं। बीते इलेक्शन्स में एक टीम ने काम करना शुरू किया था। लेकिन दवे और लुनावत जैसी वक्त से पहले वाली तेज़ी का खालीपन नजर आ रहा है। बीते हफ्ते बीजेपी दफ्तर में इन दोनों नेताओं की सक्रियता को खूब मिस किया गया।

केंद्रीय एजेंसी पर निजी अय्यार
चुनाव से पहले केंद्रीय एजेंसी की किसी आकस्मिक कार्यवाही की आशंका सूबे के एक तबके को खाई जा रही है। बदलती तकनीक के हिसाब से अपडेट होते इन लोगों ने नई तरकीब अपना ली है। इन्होंने अपने निजी इटेंलीजेंस खड़ा कर दिया है, जो केंद्र की छापामार जांच एजेंसियों पर तगड़ी निगाह रख रही है। किसी भी कार्यवाही से पहले इनका इंटेलीजेंस कितना काम आएगा यह तो वक्त पर ही पता लगेगा। लेकिन सावधानी इतनी बरती जा रही है कि घरों पर भी अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। सीसीटीवी कैमरे से घर के बाहर की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है, रातभर खाना-पानी परोसने वाले शहर के बाहर के रिसोर्ट और रिट्रीट पर अय्यार तैनात किए गए हैं। साथ ही साथ घर पर सेंसर युक्त दरवाज़े लगाए गए हैं, जिससे किसी भी अनजान शख्स का घर में अचानक प्रवेश रोका जा सके। तैयारी तो पूरी है जनाब, लेकिन कारगर होगी या नहीं इसका पता तो छापेमारी पर ही होगा।

रिटायर्ड अफसरों से चुनावी चंदा
सुनने में अजीब लगता है, लेकिन जिस तरह की कार्यवाही हो रही है उससे चर्चा में यह बात भी सामने आ रही है कि रिटायरमेंट के अर्से बाद आखिर कार्यवाही का क्या मतलब? सूबे में अहम पदों से रिटायर हुए दो अफसरों पर राज्य की जांच एजेंसियों ने मामला दर्ज कर लिया है। एक अफसर तो खेल, जेल जैसे महकमों के अहम पदों पर काबिज रहे। कुर्सियां ही ऐसी रहीं, जिसका वास्ता विवादों से आमतौर पर हो जाता है। दूसरे अफसर के रिटायरमेंट के बाद मामला दर्ज हुआ, जबकि जांच 20 साल पहले बैठ गई थी। 20 साल तक मामला ठंडे बस्ते में रहा इसके बाद अब जाकर जांच का जिन्न निकला। ये साहब भी सर्विस पीरियड में विवादों में घिरे रहे, बाद में बॉलीवुड सक्रियता की वजह से सुर्खियां बटोर रहे हैं। सियासी हलकों में चर्चा यह है कि इन लक्ष्मीपति रिटायर्ड अफसरों पर इस वक्त कार्यवाही क्यों की जा रही है। जवाब के सर्वाधिक नतीजा चुनावी चंदा कहा जा रहा है। आगे की कार्यवाही से सब साफ हो जाएगा कि आखिर माजरा क्या है?

कांग्रेस में कुछ पक रहा है?
कांग्रेस में आ रहे मुख्यमंत्री के पद के लिए आ रहे दिग्गज नेताओं के बयानों ने बीते हफ्ते काफी बवाल काटा। कांग्रेसी दिग्गजों में इसपर बयान देने की होड़ मची रही तो बीजेपी ने भी जमकर मजे लिए। बात निकली है तो अब यह चुनाव तक जाने वाली है। लेकिन सियासी हलकों में यह चर्चा भी है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर कंफ्यूजन पैदा करने जैसी स्थिति क्यों पैदा की जा रही है? जानकार इसे सोची समझी रणनीति की हिस्सा मान रहे हैं। इससे चुनाव के बाद हिमाचल प्रदेश जैसे हालात बनाने की नींव समझा जा रहा है। जिससे दावेदारों की संख्या बढ़ाई जा सके और विकल्प के लिए नए पद हासिल किए जा सके। वैसे, एमपी कांग्रेस में सिंधिया के जाने के बाद नेतृत्व संकट का पटाक्षेप समझा जा रहा था। इन नए बयानों के जरिए विवादों और चर्चाओं को हवा देने से नेतृत्व को लेकर फिर से सवाल खड़े हो गए हैं। कमलनाथ ने इन विवादों को परिपक्वता के साथ खत्म करने की कोशिश की है। अब सवाल यह है कि यह तो कांग्रेस की परंपरा ही है, इसलिए विवाद एक नए रूप में सामने आ सकता है। आप भी इंतज़ार कीजिए, कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन का, शायद जवाब मिल जाए।

दुमछल्ला…
बीते दिनों एक नेताजी के खासम-खास जनाब यह कहते सुनाई दिए कि नेताजी स्टेट मीडिया से कन्नी काट लेते हैं। अपने ही नेताजी के बारे ्में कलई खोलने वाले ये जनाब आमतौर पर सोच-समझ कर ही बात करते हैं। लेकिन उनका यह उवाच स्टेट मीडिया वालों तक पहुंच गया है। चुनाव से ठीक पहले किसी मीडिया के बारे में ऐसा विचार रखना काफी हिम्मत का काम समझा जा सकता है। आने वाले दिनों में चुनाव है, पब्लिक इंटरेक्शन बढ़ेगा और एक-एक गतिविधि पर मीडिया के कई कैमरे और आम लोगों के मोबाइल कैमरे ऑन रहेंगे। कुछ लोगों ने तो मॉनीटरिंग बढ़ाने का फैसला कर लिया है। ताकि एलर्जी की बीमारी दूर की जा सके।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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