मेट्रो में नहीं चलता फिजीक
मेट्रो में फिजीक-फिटनेस नहीं बल्कि परफॉरमेंस से रिजल्ट मिलता है। एक सीनियर आईपीएस ने नौजवान आईपीएस अफसरों को यह मूलमंत्र दिया तो एक युवा आईपीएस नाराज़ हो गए। अफसरों में यह चर्चा छिड़ गई कि यह कथन सभी अफसरों के लिए लागू नहीं था, बल्कि किसी एक अफसर पर टारगेट करके कहा गया था। चूंकि यह मंत्र मंडली के बीच में दिया गया था। इसलिए चंद मिनिटों में ही समूचे आईपीएस कुनबे में यह मंत्र आग की तरह फैल गया। सुना है कि एक नौजवान अफसर तो नाराज़ होकर चुप्पी भी साथ ली उन्होंने सालाना मेल मुलाकात के कार्यक्रम में सक्रियता भी कम कर दी। शायद वजह यह रही होगी कि जो बात एकांत में कही जा सकती थी, उस सलाह को सार्वजनिक मंत्र का स्वरूप देने की क्या जरूरत थी? ज़ाहिर बात है इससे प्रेस्टीज पर फर्क पड़ता है। बात आई-गई होकर रह जाती तो भी ठीक था, अब बात का बतंगड़ बन भी रहा है और बात दूर तलक भी जा रही है।

अब नेताजी चले इंस्टा चलाने
नेताजी को इंस्टा का भूत चढ़ा है। लेकिन इंस्टा है कि समझ में आता नहीं। सोशल मीडिया पर अब तक नेताजी वॉट्स एप और ज्यादा से ज्यादा फेसबुक तक सीमित थे। जिसके अपडेशन का काम भी ठेके पर दे रखा था। बीते दिनों कुछ टॉप लेवल से कुछ ऐसे निर्देश आए हैं कि अब सोशल मीडिया का गणित समझने की कोशिश शुरू हो गई है। चंद रोज पहले कमलनाथ ने अपनी मीडिया टीम को और बीजेपी के प्रदेश प्रभारी ने विधायक-सांसदों को सोशल मीडिया पर सक्रियता और फॉलोअर बढ़ाने की सलाह आपको याद ही है। इसके बाद सभी ने कोशिश करना शुरू कर दी। ज्यादातर लोग ट्वीटर और इंस्टाग्राम पर उलझ गए। लिहाज़ा फिर से सोशल मीडिया को ठेके पर देने का काम शुरू कर दिया है। जनप्रतिनिधियों को चिंता ज्यादा है, क्योंकि उनको अपने इलाके के वोटरों के अनुरूप फॉलोअर हासिल करने का लक्ष्य दिया गया है। लेकिन यह इंस्टा नहीं है आसान, साबित करने के लिए आग के दरिये में डुबकी लगाई जा रही है।

पीएस विधानसभा के लिए होड़
विधानसभा के मौजूदा प्रमुख सचिव सबके चहेते रहे हैं। लेकिन वे मार्च में रिटायर हो रहे हैं। इस कुर्सी को हासिल करने के लिए कई लोगों ने नजरे गड़ा कर रखी है। विधानसभा के कैडर से भी दावे आ रहे हैं, लेकिन उनको चुनौती दे रहे हैं बाहरी दावेदारियां। कई दावेदारी ज्यूडीशियरी से है। इससे पहले भी पूर्व न्यायधीश को विधानसभा प्रमुख सचिव बनाने की परंपरा निभाई जा चुकी है। इस बार भी इसे दोहराने का विकल्प कर्ता-धर्ताओं के पास है। फिलहाल दावेदारियों का नापतौल प्रोसेस में है। इसके बाद नाम फाइनल होगा। वक्त करीब आते ही कई और दावेदारों ने कागज़ तैयार कर ऊपर पहुंचानी शुरू कर दी है। मेलमुलाकात के दौर भी बढ़े है। देखना है, पूरा जीवन देने वाले विधानसभा कैडर को मौका मिलता है, या फिर कोई बाहरी इस कुर्सी पर काबिज होता है। साल चुनावी है, इसलिए सब कुछ देख परख कर ही फैसला होगा।

चुनावी होली पर बरसेंगे रंग
इस बार की होली पर विधायकों के दफ्तरों में होली कार्यक्रमों की तैयारियों पर चर्चा शुरू हो चुका है। इस बार की होली मिलन समारोहों से आगे बढ़कर जनता के बीच मनाने का प्लान है। कुछ विधायक तो इस पर जमकर काम कर रहे हैं। होली की हुड़दंग के बीच रंग-अबीर-गुलाल उड़ाकर मेल-मुलाकात बढ़ाने की योजना तैयार की जा रही है। विधायकों के साथ विधानसभा टिकट के दावेदार भी इस मौके का फायदा उठाने की तैयारी है। दो साल कोरोना की वजह से होली के रंग में भंग था, जैसा माहौल महाशिवरात्रि में दिखाई दिया है। उससे ज्यादा यदि होली पर दिखाई दे तो समझ जाइएगा, चुनावी रंग चढ़ चुका है। नेताजी अब कई बहानों के जरिए आपकी कॉलोनी में गलबहियां करते नज़र आते रहेंगे।

25 कमरों में एंट्री की युक्ति
कांग्रेस ने पीसीसी दफ्तर के तलघर में कुछ नए कैबिन नुमा कक्ष बनाए हैं। इन कैबीन्स के अपने नाम अलॉट कराने को लेकर वैसा ही माहौल है, जैसा दावेदार टिकट हासिल करने के लिए करते हैं। पूरा दमखम लगाया जा रहा है, आकाश-पाताल एक किया जा रहा है। लेकिन एक अनार और सौ बीमार जैसे हालात होने की वजह से मारामारी जमकर हो रही है। कांग्रेस संगठन के पास 40 तो प्रकोष्ठ हैं, जो बिना कमरों के ही काम कर रहे हैं। अब बेकाम के लोग भी दावा कर रहे हैं। दफ्तर का प्रबंधन देखने वाले नेता को यह नया सिरदर्द परेशान कर रहा है। हालांकि फाइल कमलनाथ के पास सरका दी जाती है। लेकिन फरियादियों की तादाद में कमी नहीं आ रही है। कुछ लोग तो अपने पदाधिकारी होने का हवाला देकर कक्ष की डिमांड कर रहे हैं। दरअसल, इस तलघर में आमूलचूल परिवर्तन करके आलीशान लुक दिया गया है। जिसे देखकर हर किसी का मन डोल सकता है। किस नेता की ख्वाहिश नहीं होती कि पीसीसी में उसके नाम की नाम पट्टिका लगी दिखाई दे।

दुमछल्ला…
कांग्रेस में विधानसभा टिकट हासिल करने का फार्मूला कमलनाथ ने सार्वजनिक कर दिया है, तो उसके साइड इफेक्ट भी सामने आने लगे हैं। इस फार्मूले के बाद हर दावेदार को ज़मीन पर काम करना मजबूरी हो गया है। जो सक्रिय है, वही दावेदार है। इस वजह से हर सीट पर हर दावेदार को कांग्रेस में ही अपने विरोधी पक्ष की पूरी जानकारी लग है। लिहाज़ा अपने नंबर बढ़ाने से ज्यादा ज़मीन पर विरोधी के साथ शह-मात का खेल भी शुरू कर दिया गया है। यह उन सीटों का हाल है, जहां कांग्रेस पिछला इलेक्शन हार चुकी है। यहां नए दावेदार खड़े होने लगे हैं। कई जगह पर चौंकाने वाले चेहरे को भी टिकट मिल सकता है। चूंकि कमलनाथ अपने फैसले के साथ दृढ़ता के साथ खड़े हैं और टिकट मांगने वाले को दो टूक जवाब दे रहे हैं इसलिए दावेदारों ने अब ज़मीन पर अपने ही दल के दावेदारों के साथ शह मात का खेल शुरू कर दिया है। करीब एक दर्जन सीटों पर हालात शीतयुद्ध से सीधी जंग के बन गए हैं।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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