नए बिजनेस टायकून की एंट्री
चुनाव से पहले चार विभागों में हुए करीब 25 हज़ार करोड़ रुपए के टेंडर में एक नए खिलाड़ी की एंट्री हुई है। इस एंट्री में सीधे दिल्ली का दखल बताया जा रहा है। अहम बात यह है कि अब तक इस तरह के टेंडर में एमपी के प्लेयर्स ही छाए रहते थे। लेकिन अब दिल्ली वाले हाथ पकड़कर जिस तरह पैराशूट लैंडिंग करा रहे हैं। उसके पीछे की वजह सियासी हो सकती है। एंट्री में सीधे दिल्ली वाले एक्टिव हैं तो कोई इसमें किसी की दखल अंदाज़ी की गुंजाइश खत्म हो जाती है। साथ ही यह इशारा भी साफ नजर आता है कि एक नए खिलाड़ी को एमपी में बिजनेस टायकून की तरह स्थापित करने की कोशिश शुरू हो गई है। इस पूरे मामले में अहम बात यह है कि यह खिलाड़ी एमपी का ही है, जो एक बड़े खिलाड़ी के दफ्तर में काम किया करता था। इस पर दिल्ली की जांच एजेंसी ने बीते दिनों नज़र गाड़ कर देख लिया था। इसके बाद खिलाड़ी की किस्मत ने ऐसी पलटी मारी कि उसे अब दिल्ली वाले गोद में लेकर बड़ा आदमी बनाने की तैयारी में दिखाई दे रहे हैं।
हाईवे टू डायरेक्ट फॉरेन विजिट
जी बिल्कुल! फॉरेन विजिट हाईवे के थ्रू ही हुई है। अंतर बस इतना है कि यह नेशनल हाईवे नहीं है, बल्कि उसका एक दफ्तर है। दफ्तर के एक साहब साल 2020 के बाद भोपाल टू कैलिफोर्निया के बीच ट्वेंटी-ट्वेंटी खेल रहे थे। बार-बार जाने पर मामला दफ्तर की चर्चाओं में शामिल हुआ तो किसी ने शिकायत कर दी। इसके बाद बंदिशें लगा दी गई कि अनुमति लेने के बाद ही कैलिफोर्निया जाने को मिलेगा। इसका बाकायदा आदेश जारी हुआ था। अनुमति महकमे के बड़े साहब को देनी थी। इसलिए साफगोई से वजह पूछी जाने लगी। वजह तो वाजिब थी, लेकिन इंतज़ाम पर बात अटक गई। भई, 60 हज़ार रुपए महीने की सैलरी वाले के लिए कैलिफोर्निया विजिट आसान नहीं है। आसपास के लोग बताते हैं कि केवल आसान ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। साहब ने वजह बताई कि दोस्तों से इंतज़ाम कर लेंगे। इसके बाद अनुमति नहीं दी गई। एक सरकारी दफ्तर के साहब यदि दोस्तों की मदद से फॉरेन विजिट करने लगे तो माजरा तुरंत समझ में आ जाता है। हां, यह जरूर बता दें कि अक्सर ऐसी विजिट के पीछे दोस्तों की मेहरबानी ही होती है। बाकी अंदर की बात तो आप समझ ही गए होंगे।
सेक्रेटरी की स्पेशल उम्मीद टूटी
केंद्र के सेक्रेटरी स्पेशल की उम्मीद करें न करें, लेकिन जब भी वे किसी राज्य का दौरा करते हैं तो उन्हें ट्रीटमेंट हमेशा स्पेशल वाला ही दिया जाता है। ऐसे ही एक सेक्रेटरी बीते दिनों उत्साह और केंद्रीय अफसरों के दल-बल साथ एमपी में एक कार्यक्रम को लेकर आए तो उनकी स्पेशल प्रोटोकॉल वाली उम्मीद टूट ही गई। वे बड़े उत्साह के साथ एक बड़ा आयोजन लेकर आए थे, उनके साथ डिप्टी सेक्रेटरी और जॉइंट सेक्रेटरी जैसे अफसरों की टीम भी थी। कार्यक्रम हुआ तो कुछ ही अफसर नजर आए। कुछ अफसरों ने आयोजन का बखान नहीं किया तो सरकार के बड़े चेहरे भी आयोजन में एक्चुअल या वर्चुअल जुड़ ही नहीं सके। दरअसल, उन्हें आयोजन की गंभीरता को ठीक ढंग से बताया नहीं गया था। अब नतीजा यह हुआ कि दो दिन के आयोजन के बाद जब टीम दिल्ली लौटी तो उनके चेहरे पर सुकून और संतुष्टि के भाव दिखाई नहीं दिए। अपने करीबियों से उन्होंने इस बात का ज़िक्र भी किया। लेकिन अब पछताकर क्या फायदा, जब चिड़िया चुग गई खेत।
सीनियर्स को सम्मान की मिसाल
आईएएस अफसरों के बीच इन दिनों ‘सम्मान’ की मिसाल दी जा रही है। दरअसल, राजभवन में राज्यपाल ने स्कूली शिक्षा विभाग के अफसरों को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए सम्मानित किया। राजभवन से बाकायदा तस्वीरें जारी की गईं। ये तस्वीरें जब अफसरों के मोबाइल तक पहुंची तो कार्यक्रम की जमकर तारीफ की जाने लगी। दरअसल, इस कार्यक्रम में एक पूर्व अफसर भी प्रमुखता से नजर आ रहे थे। ये अफसर बीते दिनों इसी विभाग में तैनात थे और उस काम के हिस्से थे, जिसके लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में महकमे का नाम दर्ज हुआ। उनकी मौजूदगी की सीनियर अफसर मिसाल दे रहे हैं। क्योंकि इससे एक पूर्व अफसर के योगदान को भी महत्व दिया गया। इसे अफसरों के बीत सम्मान की मिसाल की नजर से देखा जा रहा है। बीते दिनों विधानसभा के अंदर अधिकारी दीर्घा में जूनियर अफसरों के द्वारा कुर्सियां हथियाने की घटना को सीनियर्स के प्रति असम्मान की चर्चाएं थीं। इसलिए अब जूनियर्स तक यह संदेश दिया जा रहा है कि अफसरों के बीच सम्मान की परंपरा खत्म नहीं होनी चाहिए।
बेसमेंट का जजमेंट ने हिला दिया
पूरी टीम आदेश के पालन को लेकर वाबस्ता है। लिहाज़ा तकलीफ कही नहीं जा रही है। अब बुझे मन में उत्साह भरने की पूरी कोशिश हो रही है। चूंकि आदेश को लेकर डिपार्टमेंट के ही दो सीनियर लोग ही शामिल हैं। इसलिए एक दूसरे से भी नहीं कहा जा रहा है। लिहाज़ा अब ग्राउंड फ्लोर पर लगने वाला मजमा तलघर में ही लगाने की कवायद शुरू हो गई है। होश तो उस वक्त फाख्ता हो गए थे, जब पूरी टीम रायपुर अधिवेशन में शामिल होने के लिए गई थी। लौट कर पीसीसी दफ्तर आई तो अपने नाम की चमकदार तख्तियां नदारद मिलीं। उन्हें उखाड़ दिया गया था। न कोई सूचना, न कोई पूछताछ। नदारद तख्तियों को लेकर इधर-उधर के ख्याल आने लगे और पता किया गया तो मालूम चला कि बैठक व्यवस्था तलघर में कर दी गई है। बहरहाल काम चालू कर दिया गया है। दरअसल, तलघर में नई बैठक व्यवस्था के बाद कई दावेदारों ने चाणक्य बुद्धि लगाना शुरू कर दिया था। एक कमरे के लिए बड़ी-बड़ी एप्रोच लगाई जा रही थी। तब फैसला लेने वालों के सामने धर्म संकट खड़ा हो गया। अब इस पूरी एक्टिव टीम को स्थान परिवर्तन कर दिया गया है। हां, यह ज़रूर बता दें कि ग्राउंड फ्लोर की खाली हुई जगह के लिए लॉबिंग शुरू हो चुकी है।
दुमछल्ला…
पुलिस की इंटेलिजेंस टीम को एक कॉल गर्ल ने उलझा दिया है। ये कॉलगर्ल बीते हफ्ते गोवा में हुए सैंडल कांड के बाद चर्चाओं में आई थी। दुर्घटना जिस शख्स के साथ हुई थी, वह तो चिकित्सा सुविधा में हैं। लेकिन इसकी गूंज ने सियासत में हलचल मचा दी। ऐसे मामलों की तह में जाने के लिए पुलिस की इंटेलिजेंस टीम को तुरंत एक्टिव होना पड़ता है। लेकिन एक्टिव होने के चक्कर में जो सबूत हाथ लगे हैं। उसका पता जिनको लग रहा है, उसका सिरदर्द बढ़ रहा है। जानकारी लेने और टटोलने वालों ने इंटेलिजेंस की नाक में दम कर दिया है। पुलिस के हाथ सीसीटीवी भी लग गया है और सैंडल फैंकने वाली की जानकारी भी खंगाल ली है। इतनी सब जानकारी होने के बाद यदि आप सोच रहे हैं कि मामले का पता लग जाएगा तो उसे भूल जाइए। मामला मध्य प्रदेश के पॉवर सेंटर से जुड़ा है, इसलिए कुछ भी बाहर आना संभव नहीं है। आप बस पता यह लगाइए कि चोट के शिकार कौन साहब हुए हैं? चेहरा सब बयां कर देगा।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)
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