पोलिंग बूथ बैठक में उठावना
किसी कार्यक्रम स्थल पर वीआईपी मूवमेंट हो तो ज्यादा रद्दोबदल नहीं किए जाते हैं। लेकिन बीजेपी ने सीएम शिवराज के कार्यक्रम के दौरान कार्यक्रम स्थल पर बदलाव कर दिए। दरअसल, बीजेपी ने बूथ स्तर पर 2.0 अभियान शुरू किया था। मुख्यमंत्री ने भी कार्यकर्ता भाव से भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट पर बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं की बैठक में पहुंच गए। जिस स्थान पर कार्यक्रम तय किया गया था, वहां मुख्यमंत्री से पहुंचने के ऐन पहले उठावना शुरू हो गया। यह कार्यक्रम पहले से तय था। जबकि बीजेपी ने बाद में कार्यक्रम तय किया। इसके बाद उठावना कार्यक्रम में रद्दोबदल करने की बजाय उसी भवन में छोटे से अन्य कमरे में कार्यक्रम स्थानांतरित कर दिया गया। मुख्यमंत्री ने एक छोटे से कमरे में ही अपनी बैठक की। कार्यकर्ता, नेता और सीएम की सुरक्षा टीम ने इसी छोटे से कमरे में व्यवस्थाएं संभालीं। कोशिश की जाती तो उठावना कार्यक्रम छोटे कमरे में शिफ्ट किया जा सकता था। लेकिन बीजेपी नेताओं ने ऐसा नहीं किया। संवेदनशीलता का परिचय देते हुए नेताओं के वीआईपी प्रोटोकॉल को भी बदल दिया। इस दौरान उठावने में आए लोग इस भवन में कई बीजेपी दिग्गजों की आमदरफ्त देखते रहे।

3 अफसरों की नाथ से मुलाकात
चुनावी तैयारी कहें या फिर सियासी जमावट, कमलनाथ के पास अफसरों की मौजूदगी बढ़ने लगी है। बीते हफ्ते ही एडिशनल चीफ सेक्रेटरी स्तर के 3 अफसरों ने कमलनाथ के बंगले पहुंचकर कमराबंद मुलाकात की है। क्या बात हुई होगी, इसे ज्यादा समझाने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि मुलाकात का होना ही काफी इशारे कर देता है। कमलनाथ भी खुलकर अफसरों से चर्चा कर रहे हैं। अफसर भी मुलाकात के बाद मुस्कुराते हुए बाहर निकल रहे हैं। चुनाव से पहले ऐसी मुलाकातें सियासी हल्कों में चर्चा का विषय बन जाती है। लिहाज़ा चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सभी अपने-अपने मायने निकाल रहे हैं। मज़े की बात यह है कि इन खास मुलाकातों की चर्चाएं मंत्रालय में तेजी से फैल रही हैं। मंत्रालय की पांचवी मंजिल पर भी इन मुलाकातों की खोज-खबर लेने की कवायदें शुरू हो गई हैं।

माननीय जी का ‘गाली’ संस्कार
बीते पखवाड़े एक माननीय की सब इंसपेक्टर के साथ हुज्जत के वीडियो वायरल हो गए। वायरल होने की वजह थी हुज्जत में उपयोग की गई गालियां। भले ही ये गालियां समाज की व्यवहारिक और आपसी बातचीत का हिस्सा बन जाती हों, लेकिन आदर्शवादी व्यवस्था में इन्हें दुर्वचन और अभद्रता का ही दर्जा दिया जाता है। बीते सालों में यूपी के सीएम का एक वीडियो वायरल हुआ तो ज़माने भर में उस शब्द की व्याख्या शुरू हुई और उसे सामाजिक मान्यता के व्यावहारिक शब्दों की श्रेणी में प्रदर्शित करने की कोशिश हुई तो यही फार्मूला माननीय महोदय ने भी अपना लिया। जब नेता प्रतिपक्ष उन्हें समझाने पहुंचे की एक सरकारी अफसर के लिए इस तरह के शब्द या गाली-गलौज ठीक नहीं है तो माननीय जी ने दो टूक जवाब देकर कहा कि यह तो भारतीय संस्कृति है। यह बात अलग है कि इस तरह का शब्द ग्वालियर-चंबल इलाके में आम है। फूलन देवी की बॉलीवुड फिल्म में इसका उपयोग जमकर हुआ हो। इसके बाद नेता प्रतिपक्ष ने भी माथा पकड़ लिया। हालांकि विधायकजी को समझाने के प्रयास अब खत्म हो चुके हैं।

विकास यात्रा में अनोखी संतुष्टि
बीजेपी के कई विधायकों को विकास यात्रा में जनता का संतुष्टिपरक जवाब अजीब लग रहा है। आम तौर पर ऐसा कभी नहीं होता है कि नेताजी वोटरों से समस्याएं पूछें और वोटर सब कुछ अप टू डेट होने की बात करने लगे। दरअसल, कई विधायकों ने यह अनुभव किया है कि वे विकास यात्रा में आम जनता से तकलीफों की जानकारी मांगते हैं तो वे हाथ जोड़कर केवल सिर हिला देते हैं और सब ठीक होने का जवाब देते हैं। विकास यात्रा से लौटकर बीते हफ्ते विधानसभा पहुंचे विधायकों ने वोटरों की इस संतुष्टि की ज़िक्र किया तो मामले पर चिंता जताई गई। वोटरों ने ऐतिहासिक रूप से दिग्गज विधायकों के सामने संतुष्टि जाहिर कर दी है। वोटरों की यही बेफिक्री विधायकों को चिंता में डाल रही है। अब इन इलाकों में अपने लोग भेजकर माजरा समझने की कोशिश की जा रही है। जाहिर बात है चुनाव से पहले ही वोटरों की इस तरह की खामोशी खतरनाक इरादों का संकेत दे रही है।

ज़मीन मालिक बदलने का खेल
सरकारी ज़मीन भरी-पूरी रिहायशी कॉलोनी के बीच भी रह जाती है। भोपाल में इस तरह की ज़मीनों को लेकर एक खेल जमकर शुरू हो गया है। कई जगहों पर देखा जा रहा है कि ज़मीन का मालिक कई दिनों बाद अपनी सरकारी दफ्तर में अपनी ज़मीन का रिकॉर्ड खंगाल रहा है तो निजी जमीन को सरकारी दर्शाया जा रहा है। सरकारी ज़मीन को निजी जमीन बनाने के खेल से तो सब वाकिफ है। लेकिन यह नया गोरखधंधा आम लोगों की परेशानी का सबब बन सकता है। जो लोग अपनी ज़मीन के कागजात घर पर रखकर अपनी ज़मीन पर निगाह नहीं रख पा रहे हैं। इस तरह के कई ज़मीन मालिक सरकारी कागजातों में अपना मालिकाना हक खो चुके हैं। सरकारी दफ्तर में उनकी ज़मीन को सरकारी दर्शाया जा रहा है। नुजूल दफ्तरों में हो रहे इस खेल से सीनियर अधिकारी शायद वाकिफ नहीं है। बड़े ही गोपनीय तरीके से एक गैंग इस कारनामे में जुटी हुई है। जाहिर है निचला अमला इसमें शामिल हो सकता है। लेकिन ज़मीन मालिकों के लिए सावधान होने का वक्त आ गया है।

उन्हें 52 साल बाद आया बुखार
न ये मुहावरा है और ना ही कोई फिल्मी डॉयलॉग। ज़िक्र हो रहा है खालिस 102 डिग्री बुखार का। जो सर्दी-ज़ुकाम के साथ नेताजी को ऐसा आया है कि 5-6 दिन उठना-बैठना मुश्किल हो गया। नेताजी को पूरा विपक्ष संभालने की जिम्मेदारी है। लेकिन मौसमी नज़ले ने पूरे मूड का बेड़ा गर्क कर दिया। एक-दो दफा तो नेताजी को घर लौटना पड़ गया था। दरअसल, नेताजी इस बुखार के आदी नहीं है, उन्हें इससे पहले 52 साल पहले बुखार आया था। बुखार भी टायफाइड वाला था, जिसने बॉडी का आकाश-पाताल हिला दिया। इस बार का बुखार भी कुछ ऐसा ही एहसास करा रहा है। कोरोना के तीनों दौर निकल गए, संघर्षशील और मेहनती नेताजी को वायरस ने बाल भी बांका नहीं कर पाया। लेकिन इस बार परेशान कुछ ज्यादा भी कर गया है। नेताजी के इर्द-गिर्द बैठने वाले उसकी हंसी-मजाक में चर्चा भी कर लेते हैं। खुशी और राहत की बात यह है कि अब बुखार चला भी गया है, कमजोरी भी जल्द ही चली जाएगी। आइए मिलकर प्रार्थना करें कि ईश्वर नेताजी को सेहतमंद रखे।

दुमछल्ला…
इस हफ्ते खत्म हुए विधानसभा के बजट सत्र के आखिरी दिनों में घटित यह वाकया अफसरों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। आम तौर पर देख परखकर और पढ़कर ही किसी फाइल पर दस्तखत करने वाले प्रदेश के मुख्य सचिव ने एक दस्तखत बिना देखे-पढ़े ही कर दिया। दरअसल सदन की अधिकारी दीर्घा में बैठे मुख्य सचिव को एक संदेश मिला, संदेश मिलते ही साहब बाहर रवाना हुए। उन्हें एक अधीनस्थ अफसर ने एक नोट शीट थमा दी। साहब ने बगैर पढ़े ही दस्तखत कर दिए। इसे देखकर अधिकारी एक दूसरे की तरफ देखने लगे आखिर ऐसी कौन सी फाइल है जो बिने पढ़े ही आगे बढ़ा दी गई। हां, मुख्य सचिव ने कहा कि इसे तुरंत मुख्य सचिव सचिवालय पहुंचा दी जाए। एक अफसर तो कहते देखे गए कि साहब कुछ लोगों पर तो आंखे मूंद कर भी भरोसा करते हैं।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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