आईपीएल से होटल का रिकॉर्ड धंधा
लॉक डाउन की वजह से बेजा घाटे में चल रहे होटलों का धंधा आईपीएल के दौरान खूब चल निकला। इस दौरान भोपाल-इंदौर के लग्जरी होटलों में शाम होते ही रौनक अफरोज़ होने लगती थी। यहां से आईपीएल पर जमकर खेला किया जाता था। लग्जरी होटलों का चयन उनकी सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए किया जाता था। दरअसल, कुछ होटलों के रूम के अलावा लॉबी भी सेंसर युक्त कार्ड से खुलती हैं। इसके अलावा रिजर्व स्टाफ रिसेप्शन पर हर आवाजाही पर नजर रखता था। नतीजा यह हुआ कि लॉक डाउन के दौरान जिन लग्जरी होटलों का लंबा घाटा आईपीएल के चंद दिनों में ही भरपाई कर गया। होटल वालों ने खूब चांदी काटी है। यह बात अलग है कि ऑन लाइन सट्टेबाज़ी की भनक पर इन बड़े शहरों की पुलिस जगह-जगह छानबीन करती रही।

पीसीसी के पास भी नहीं होगी मुलाकात
इन दिनों कमलनाथ के तीखे तेवरों से वाकिफ कांग्रेस के कई नेता पीसीसी के आसपास मेल मुलाकात से परहेज कर रहे हैं। ये वो नेता हैं जो सरकार से पहले, सरकार के दौरान और सरकार के दौरान मुख्य धारा में नजर आते थे। कुछ नेता तो पूरे वक्त पीसीसी की रौनक बनाए रखते थे। कांग्रेस या कमलनाथ की हर रणनीति इन्हीं के तरकश से निकलती थी। लेकिन अब नई कमेटी के बाद सब काफूर हो गया है। सदा सक्रिय रहने वाले नेता पीसीसी से गायब हैं। जो भोपाल में हैं वे मेल मुलाकात के लिए पीसीसी के आसपास की टपरियों को भी मुलाकात का अड्डा नहीं बना रहे हैं। मुलाकात कहीं और हो रही है। जगह फोन पर तय की जाती हैं।

कमिश्नर सिस्टम पर भारी गैंगस्टर का नेटवर्क
मुख्तार मलिक फायरिंग करके भोपाल से निकल गया। जहां पहुंचा वहां फिर फायरिंग की। भोपाल की पुलिस तो पहली फायरिंग के बाद से ही खोज में लग गई थी। लेकिन मुख्तार की भनक दूसरी फायरिंग की घटना के बाद भी नहीं लगी। ऐसा दुर्भाग्य वाला संयोग भोपाल पुलिस के साथ आमतौर पर नहीं होता है। सीधे एनकाउंटर वाला संयोग तभी बनता है, जब नाक का सवाल बन जाए। बहरहाल, पुलिस पुलिस कमिश्नर सिस्टम का इंटेलीजेंस सिस्टम एक बार फिर धराशायी हो गया। वैसे, यह ज़रूर बता दें कि मुख्तार मलिक अपने संपर्कों और नेटवर्क का इस्तेमाल करके फरार रहने, अंडर ग्राउंड रहने और पुलिस गिरफ्त से भागने की हिमाकत अपने जीवन में कई दफा कर चुका था।

हरियाणा चुनाव का एमपी कनेक्शन
हरियाणा में राज्यसभा चुनाव से केवल उसी राज्य के सियासत नहीं प्रभावित है। बल्कि एमपी के दो परिवारों के दिलों में भी धुकपुक मची हुई है। अजय माकन की रिश्तेदारी भोपाल के रहने वाले पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत शंकर दयाल शर्मा के परिवार के साथ है और हरियाणा से कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा की रिश्तेदारी जबलपुर में है। कमल नाथ सरकार में मंत्री रहे तरुण भनौत उनके मौसेरे भाई हैं। दोनों ही राज्यसभा उम्मीदवारों का राजनैतिक भविष्य हरियाणा के कांग्रेस विधायकों की वोटिंग पर निर्भर करता है। इसलिए भोपाल और जबलपुर में मौजूद उनके रिश्तेदारों के घरों में भी उहापोह की स्थिति बनी हुई है।

जब बीजेपी के प्रत्याशी गायब हो गए
वाकया अजीब है, जो बीजेपी में कतई मुमकिन नहीं होता है। ये घटना उस दिन की है जब बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवारों को विधानसभा में पहुंचकर अपना नामांकन दाखिल करना था। प्रदेश बीजेपी मुख्यालय में सुबह से ही जश्न शुरू हो गया था। कार्यकर्ताओं को इस बात की खबर थी कि दोनों ही महिला उम्मीदवार प्रदेश कार्यालय में मौजूद हैं। कार्यालय में कहां बैठीं हैं इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था। लेकिन होश उस वक्त उड़ गए जब विधानसभा पहुंचने की तैयारी शुरू हुई। तलाशी शुरू हुई तो पसीने छूट गए। क्योंकि दोनों उम्मीदवार कार्यालय से नदारद थी। किसी ने खबर की कि दोनों उम्मीदवारों को पीछे के गेट से एक गाड़ी में बैठकर जाते हुए देखा गया है। इस खबर के बाद जश्न अचानक बंद हो गया। ढोल बंद हो गया, नाचते-कूदते कार्यकर्ताओं के चेहरे फक्क पड़ गए और एक दूसरे को निहारने लग गए। तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे। तभी एक जिम्मेदार नेता ने बताया कि दोनों शुभ मुहूर्त की औपचारिकता पूरी करने विधानसभा पहुंची हैं और चंद मिनिट में लौट रही हैं। इसके बाद फिर से चेहरे पर मुस्कान आई और ढोल बजने शुरू हुए। बिना बताए अचानक चले जाने के सियासत में कई मायने निकाल लिए जाते हैं।

दुमछल्ला…
नड्डा ने भर दी सबकी झोली। भई पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं इसलिए तालमेल बैठाना उन्हें बेहतर आता है। दौरा कार्यक्रम में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के चाय का न्योता वे टाल नहीं सके। पूरे वक्त कैलाश विजयवर्गीय को भी तवज्जो देते रहे। पार्टी कार्यालय में शिवराज को सीएम रहने का ग्रीन सिग्नल दिया और वीडी के कामकाज की भी तारीफ की। जबलपुर पहुंचे तो भी सबका ध्यान रखा। सांसद राकेश सिंह का भी और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का भी। नड्डा ने संदेश दिया कि पार्टी का ध्यान सबकी तरफ है। ऐसा उदाहरण पेश करके उन्होंने सबका वजन बढ़ा दिया। अब सियासी गलियारों में अंदाज़ा भले ही लगाया जाए कि किसे ज्यादा फायदा पहुंचा है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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