कार्यक्रम+ज़िद+भाजपा+टिकट= बवाल
इस शीर्षक के दो हिस्से हैं। पहला हिस्से में परिस्थितियां हैं और दूसरे हिस्से में उन परिस्थितियों की वजह से होने वाला परिणाम है। इस समीकरण के कुछ हिस्से बीते हफ्ते हकीकत का अंश बन चुके हैं। पूरा माजरा समझने के लिए एक कार्यक्रम का ज़िक्र करते हैं। यह कार्यक्रम विधानसभा परिसर में आयोजित हुआ जिसमें पूर्व विधायकों को आमंत्रित किया गया था। इस कार्यक्रम में भाजपा के एक पूर्व विधायक ने मंच पर बैठने की ज़िद पकड़ ली। कार्यक्रम शुरू होते ही जनाब खड़े होकर बताने लगे कि पूर्व विधायकों के संगठन का अध्यक्ष होने के नाते उन्हें मंच पर होना चाहिए। स्पीकर ने मंच पर जगह भी दे दी। कार्यक्रम खत्म होने के बाद जनाब ने साथी पूर्व विधायकों को सलाह दी कि हक के लिए ज़िद करनी पड़ती है और लगातार अड़े रहने से कामयाबी मिलती है। साथी पूर्व विधायकों ने जो सिर हिलाकर सहमति दी और साथ ही यह भी तय किया गया कि भविष्य में एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद की जाएगी। चौंकने की बात यहां शुरू होती है कि सभी विधायक भाजपा से ताल्लुक रखते हैं। ये सभी किसी ना किसी सीट से विधानसभा की टिकट का दावे की तैयारी भी कर रहे हैं। हक जताकर मंच पर बैठने वाले जनाब भी मालवा की एक सीट से टिकट का दावा कई बार कर चुके हैं लेकिन हमेशा ही हाथ खाली रहे हैं। बीते महीने उन्होंने ट्वीट करके दर्द जाहिर भी किया था कि बाहर वालों और नए नेताओं की आमद से पार्टी को बड़ी करने में योगदान देने वाले पुराने नेताओं का हक छीना जा रहा है। इससे साबित होता है कि कार्यक्रम+ज़िद+भाजपा में यदि टिकट की दावेदारी भी जुड़ गई तो भाजपा को विधानसभा चुनाव से पहले बड़े बवाल से जूझना पड़ेगा।

अफसरों के डिनर में पक रही ‘खिचड़ी’
अलग-अलग गुट बनाकर काम करने वाले अफसरों के लगातार रिटायर होने से मंत्रालय में गुटीय तालमेल गड़बड़ा गया है। इस खालीपन को भरने के लिए और अफसरों में अपना गुट बनाने की होड़ शुरू हो गई है। अपने इरादों को धरातल पर लाने के लिए अब अफसरों ने डिनर की तरकीब पर काम शुरू कर दिया है। कुछ अफसरों ने ताबड़तोड़ डिनर शुरू किए हैं। ऐसे डिनर पर कई छोटे-बड़े लेकिन अहम अफसरों से मन की बात की जा रही है। कभी ये डिनर एक अफसर से होता है, तो कभी दो-तीन के साथ। लेकिन तेज़ी के साथ डिनर के आयोजन हो रहे हैं। कुछ बड़े अफसरों ने इस तरह की पहल करके मंत्रालय में अपनी ताकत बढ़ाने की शुरूआत की है। इसमें प्रमुख सचिव स्तर की एक महिला अफसर इस मामले में ज्यादा आगे नज़र आ रही हैं। दरअसल, इस तरह के डिनर से नज़दीकियां बढ़ेंगी और एक दूसरे के ज़रूरतें और परेशानियों का भी आदान-प्रदान होगा। अपने संपर्कों के ज़रिए उन्हें निपटाने के प्रयास तेज होंगे। धीरे-धीरे ये अफसरों के गुट में तब्दील होंगे। एक वक्त था जब अफसरों की गुटबाज़ी से मंत्रालय की हर गतिविधि पर वार-प्रतिवार किए जाते थे। गुटों का नेतृत्व करने वाले कई अफसरों के रिटायरमेंट के बाद अब सब बिखरा सा नजर आ रहा है। अपनी पोजिशन के दम पर अब नए बड़े अफसर नए गुटों की तामीरी में जुट गए हैं। ये खिचड़ी पर पक रही है डिनर में।

‘स्पा वाले’ बन रहे भोपाल के पुलिस वाले
पुलिस वालों का यह स्पा प्रेम थकान मिटाने के लिए नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन यह देखने में आ रहा है कि कई पुलिस कर्मी सिलसिलेवार स्पा सेंटर के बिजनेस में कूद गए हैं। कुछ डायरेक्टली शामिल हैं, तो कुछ इनडायरेक्टली। ऊपर की कमाई को ठिकाने लगाने के लिए इस तरकीब पर अब तक किसी की नजर नहीं पड़ी है। नजर नहीं पड़ी है इसलिए कई पुलिस वाले स्पा वाले भी बन रहे हैं। यहां यह बताना ज़रूरी है कि इनमें से कई पुलिस कर्मी बड़े अफसर नहीं है। स्पा के बिजनेस से एक फायदा तो यह है कि पुलिस वाले का नाम जुड़ने से यहां कोई खाकी वर्दी वाला बुरी नजर नहीं डालता है। इससे कारोबार धड़ल्ले से चल पड़ता है। दूसरा यह कि ऊपर की कमाई से नयी आमदनी के रास्ते खुल रहे हैं। अकेले भोपाल शहर में करीब दो दर्जन से ज्यादा ऐसे ठिकानों की सूचना है। अब स्पा वाले पुलिस कर्मियों के लिए चिंता की बात यह है कि इसकी बाकायदा एक लिस्ट बन रही है। यह लिस्ट एक बड़ा अफसर तैयार करा रहा है। जल्द ही उन स्पा वाले पुलिस कर्मियों को पता लग जाएगा कि लिस्ट कौन अफसर तैयार करा रहा है। हां, यह ज़रूर जान लीजिए कि ये तय कर लिया गया है कि लिस्ट के बाद एक्शन लिया जाएगा।

कांग्रेस का नया इंटेलीजेंस सिस्टम
विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस ने एक नयी बिसात बिछाई है। विरोधी दल की गतिविधि, रणनीति और अंदरखाने की खबर जानने के लिए अपना एक इंटेलीजेंस सिस्टम विकसित किया गया है। इस इंटेलीजेंस सिस्टम ने काम करना भी शुरू कर दिया है। इसकी कमान कमल नाथ के बेहद करीबी और खास शख्स को सौंपी गई है। यहां से रिपोर्ट सीधे कमल नाथ को जाती है। जिसके बाद अगली रणनीति तय की जाती है। बीते दिनों कुछ घटनाक्रमों में कांग्रेस को इसका सियासी फायदा भी मिला है। कांग्रेस ने ऐसे मसलों पर प्रोपेगंडा खड़ा किया जिसका आभास भी भाजपा को नहीं था। सर्वे और इंटेलीजेंस रिपोर्ट के ज़रिए अपनी रणनीति तय करने वाले कमल नाथ ज़रूरी जानकारी अपने दल के संबंधित नेताओं के साथ भी साझा करने लगे हैं। भाजपा अब तक इस फार्मूले पर पर काम करती आई है। लेकिन कांग्रेस की तरफ से इस तरह की युक्ति भाजपा के रणनीतिकारों को परेशान भी कर सकती है। विधानसभा चुनाव अगले साल ही होने हैं, लेकिन मौजूदा साल खत्म होने के पहले ही दोनों पार्टियां चुनावी गियर लगा चुकी होंगी। इसी दौरान कमल नाथ भी अपने पत्ते खोलने शुरू करेंगे, कांग्रेस के नए इंटेलीजेंस सिस्टम की रिपोर्ट का असर उस वक्त ज्यादा दिखाई दे सकता है।

आईएएस से ज्यादा आईसोवा एक्टिव
एमपी में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद से खिन्न चल रहे आईएएस एसोसिएशन अभी भी उबर नहीं पा रहा है। अफसरों के बीच एक बड़ी खाई पैदा हो गई है। बात केवल सर्विस मीट को रद्द करने तक ही सीमित नहीं रही। बल्कि अरेरा क्लब की रौनक पर भी असर पड़ गया है। शाम को होने वाली महफिलों से अफसरों ने किनारा कर लिया है। अफसरों को इस बात का मलाल है कि उनके बीच के ही कुछ सीनियर्स ने पुलिस कमिश्नर सिस्टम को लेकर सरकार के सामने ठीक ढंग से बात नहीं रखी। यह कलह परिवारों तक नहीं पहुंचे इसलिए आईसोवा ने हलचल मचाए रखने का बीड़ा उठाया है। कोशिश की जा रही है कि छोटे-बड़े आयोजनों के जरिए आईसोवा के मेंबर एक दूसरे से मुलाकातों का सिलसिला शुरू करें। ऐसे कुछ आयोजन हो चुके हैं। आगे भी प्लानिंग की जा रही है।

दुमछल्ला…
एक मौत मालिक बना गई… बीते दिनों एक चर्चित अफसर की मौत के बाद कई बड़े लोगों को मालिक बना दिया है। दरअसल, इन बड़े लोगों के पास जो कारोबार या ज़मीनें हैं। उस पर चर्चित अफसर हक जता सकते थे। अब सारी बाधाएं खत्म हो गई हैं। आने वाले दिनों में किसी का कारोबार बढ़ता हुआ दिखाई दे या बिल्डिंग रिनोवेट होने लगे तो चौंकिएगा नहीं।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)