यूपी की जीत में हिस्से की तलाश
यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली जीत में अपने हिस्से की कामयाबी की तलाश एमपी के बीजेपी नेताओं में भी शुरू हो गई है। वहां गए कई नेता विजयी सीटों की फेहरिस्त तैयार कर रहे हैं। अहम बात यह है कि कई नेता इस लिस्ट को सार्वजनिक करने से डर रहे हैं क्योंकि उनकी ड्यूटी यूपी के बुंदेलखंड वाले इलाकों में लगी थी। यहां बीजेपी को वैसी कामयाबी नहीं मिली, जैसी पूरे यूपी में नज़र आ रही है। अब ये सभी नेता बीजेपी की जीत का जश्न मना रहे हैं, अपने यूपी दौरे का ज़िक्र भी कर रहे हैं लेकिन सीटों का ज़िक्र करने से परहेज़ कर रहे हैं। हालांकि ये भी बता दें कि उनका योगदान वही था, जो रामसेतु निर्माण के लिए गिलहरी का था और गोवर्धन पर्वत उठाने के लिए ग्वाल बालों का रहा। इसलिए सोशल मीडिया पर हो रही चर्चाओं में जैसे ही यूपी जीत के जश्न में बीजेपी नेताओं से सीटों के बारे में पूछताछ शुरू होती है तो बात को इधर-उधर कर दिया जाता है। बहरहाल, मनोबल बढ़ाए रखने के लिए अब इसकी फिक्र किसको है कि कौन-कहां गया था, चर्चा में तो यह है कि यूपी फिर से बीजेपी का हो गया।

धरी रह गई कांग्रेस की बाड़ेबंदी
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम को लेकर कांग्रेस ने ज़बरदस्त बाड़ेबंदी की तैयारी की थी। दूध से जली कांग्रेस को शक था कि हंग असेंबली के हालात में बीजेपी ऑपरेशन लोटस को दोहरा सकती है। इसलिए बड़े नेताओं को ऐसे राज्यों में पहुंचने के लिए तैयार किया गया था। कुछ ने तो रवानगी डाल भी दी थी। लेकिन नतीजे आए तो सब टांय-टांय फिस्स हो गया। होटलों और चार्टर्ड प्लेन को अलर्ट पर रखना बेकार गया। गेट-सेट गो की मुद्रा में तैयार नेता, दोपहर से पहले ही अपने रुटीन कामकाज की तरफ लौट आए। कुछ नेता तो अपनी महफिलों में इन तैयारियों का ज़िक्र कर चुके थे। लेकिन जो शांत रहे वे इस बात को लेकर संतुष्ट हैं कि किरकिरी होने से तो बची। कांग्रेसी नेताओं के तेवर ढीले पढ़ने पर भाजपाई खेमा ठहाके लगा सकता है। लेकिन इसे एमपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की रिहर्सल के तौर पर भी देखा जा सकता है। इन तैयारियों ने कांग्रेस की इस रणनीति का खुलासा ज़रूर कर दिया कि कांग्रेस अगली बार ऑपरेशन लोटस के दोहराव को लेकर सजग है।

कमिश्नर की कुर्सी पर लगी नज़र
बिना दबाये रस न दें, ज्यों नींबू और आम… दबे बिना पूरे न हों, त्यों सरकारी काम… गोपाल दास नीरज यूं ही ये पंक्तियां नहीं कह गए। ये पंक्तियां आम आदमी पर भी लागू होती हैं और सरकारी सिस्टम में बैठे लोगों पर भी। दरअसल, पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के साथ ही अफसरों पर उसके औचित्य को साबित करने की चुनौती भी है। जबकि महकमा पहले से ही अमले की कमी और संसाधनों के अभाव से जूझ रहा है। इंदौर और भोपाल में पुलिस कमिश्नर सिस्टम शुरू होने के बाद ही तैनात अफसर कमियों से जूझ रहे हैं और सुविधाएं ‘सरकारी सिस्टम’ से। कुछ अफसर तो अब अपराधों पर नकैल कसने की बात पर उखड़ने भी लगे हैं और कहने लगे हैं कि केवल नया पदनाम और अधिकार ही मिले हैं, संसाधन नहीं। कुछ अफसरों का तो चंद महीनों में मोहभंग भी होने लगा है क्योंकि वे नए पुलिस कमिश्नर सिस्टम के औचित्य को प्रमाणित नहीं कर पा रहे हैं। अफसरों के बीच चर्चाएं हैं कि पुलिस कमिश्नरी सिस्टम को रोकने की कोशिश करने वाले अफसर अड़ंगे डाल रहे हैं। तो कुछ आईपीएस अफसर आपदा में अवसर की तलाश कर रहे हैं, नाकामयाबी का ठीकरा मौजूदा पुलिस अफसरों पर फूटा तो नए सिस्टम में कुर्सी हासिल करने का मौका मिल जाएगा।

मेट्रो वाली पुलिस के महलनुमा मकान
ऐसा नहीं है कि पुलिस केवल बेहद मजबूर है, उनके मज़बूत चेहरे से भी आपको रूबरू कराते हैं। दरअसल, वित्तीय वर्ष की समाप्ति की जांच फाइलों पर काम करने के दौरान आयकर विभाग के हाथों में अहम सूचना पहुंची है। इस सूचना में राज्य पुलिस सेवा के ऐसे अफसरों की लिस्ट हैं, जिन्होंने भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में महलनुमा मकान बनाए हैं। मकान ऐसा कि आंखें फटी रह जाएं। लिस्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि घर में टाइल्स पत्थर की हैं या क्रिस्टल की। महंगे फर्नीचर, इंटीरियर और आलीशान उपकरणों की जानकारी है। मकान का आकार, स्वरूप और स्थान अफसरों के वेतन से मेल नहीं खा रहा है, इसलिए आयकर अफसर ने अब जानकारी टटोलना शुरू कर दिया है। खास बात ये है कि इन अफसरों की ज्यादातर पोस्टिंग मेट्रो शहरों में ही रहती है। कई अफसर ऐसे हैं जो हमेशा ही टीआई जैसी पोस्ट पसंद करते हैं। ऐसे महानों वाले पुलिस अफसर अपने महकमे और सरकार में प्रभावशाली बड़े अफसरों के बंगलों पर भी आमदरफ्त बनाकर रखते हैं। तिनका-तिनका जोड़कर इन अफसरों ने जो आशियाना बनाया है, अब वह आयकर विभाग के निशाने पर आया है।

IAS की कुर्सी पर एकाउंटेंट का रोड़ा
सतपुड़ा भवन में चलने वाला एक महकमे के कमिश्नर को कुर्सी के संकट से गुज़रना पड़ा। जो कुर्सी पहले से थी, वह आरामदायक नहीं थी। लिहाज़ा साहब ने नयी कुर्सी लाने के आदेश दे दिए। चूंकि सरकारी कुर्सी का मामला था तो तुरंत ही नोटशीट चलाई गई। नोटशीट अलग-अलग टेबलों पर तो पीटी ऊषा की तरह दौड़ी लेकिन जैसे ही एकाउंटेंट की टेबल पर पहुंची तो पूरे अमले को होश फाख्ता हो गए। एकाउंटेंट मैडम ने फिज़ूलखर्ची के लिए लगी नई खरीदी पर रोक का हवाला देते हुए नई कुर्सी की खरीदी की प्रक्रिया रोक दी। एकाउंटेंट मैडम की कलम चली तो साहब भी भौचक्के रह गए। आखिरकार एक आईएएस के लिए चली फाइल को अधीनस्थ अफसर कैसे रोक सकता है? सवाल खूब उठे लेकिन निराकरण का रास्ता नहीं निकला। किसी तरह 20 हजार की नयी कुर्सी का इंतज़ाम तो कर लिया गया है, ताकि साहब को कामकाज करने में परेशानी नहीं हो। लेकिन इस कुर्सी के किस्से ने नियमों की ताकत का अहसास करा दिया है। सतपुड़ा से निकलकर यह किस्सा विंध्याचल, मंत्रालय और पर्यावास समेत सरकारी दफ्तरों की गलियारों में चटखारे के साथ सुनाया जा रहा है। हां, हम ये ज़रूर बता देते हैं कि नयी कुर्सी के लिए फिलहाल कोई फाइल नहीं चली है। ये कैसे और कब चलाई जाएगी, इसके लिए बाद में ठंडे दिमाग से सोचा जाएगा।

दुमछल्ला…
कांग्रेस में अब बदलाव का वक्त आने वाला है। यहां संगठन चुनाव शुरू हो गए हैं। मार्च में सदस्यता खत्म होने के बाद ब्लॉक और जिलों में संगठन का गठन होगा। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाएं कतई नहीं हैं। लेकिन नेता प्रतिपक्ष का पद कमल नाथ एक सीनियर विधायक को दे सकते हैं। इससे पहले कांग्रेस के रणनीतिकारों ने डेमेज कंट्रोल पर पहले से ही काम शुरू कर दिया है। पूरी जमावट के बाद संगठन के पास केवल एक ही टास्क होगा और वह है आने वाले साल में आने वाला विधानसभा इलेक्शन।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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