अफसर पत्नियों का फिल्म स्टार क्रेज

भोपाल में अक्षय कुमार की फिल्म की शूटिंग चलने से कई प्रभावशाली लोगों के परिवारों ने फिल्म से जुड़े लोगों का जीना हराम कर दिया है। दरअसल, फिल्म की शूटिंग बेहद ही गोपनीय माहौल में की जाती हैं। लेकिन प्रभावशाली लोगों की नजर से ऐसे गोपनीय स्पॉट कैसे छिप सकते हैं। लिहाजा इस जानकारी का उपयोग अपने परिवार की जिद पूरी करने में किया जा रहा है। ऐसे प्रभावशाली परिवार या तो किसी नेता से ताल्लुक रखते हैं या फिर किसी अफसर से। अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके शूटिंग देखने की होड़ मची हुई है। कई बड़े अफसर भी फिल्म प्रोडक्शन से जुड़े लोगों पर दबाव बनाने की कवायद में लगे हुए हैं। दो अफसरों की पत्नियां तो ऐसी हैं, जो लगातार स्पॉट पर पहुंच रही हैं। इन्हें नोटिस करके अक्षय कुमार ने एक-दो बार रिस्पांस भी किया। लेकिन एक दिन तंज भी कसते हुए अक्षय ने कह दिया आपको रेगुलर शूटिंग देखने का वक्त मिल जाता है क्या? लेकिन अफसरों की पत्नियों को अक्षय के इस कथन से कोई फर्क नहीं पड़ा। आलम यह है कि अफसरों और प्रभावशाली नेताओं की पत्नियां और बच्चे अक्सर शूटिंग स्पॉट के इर्द गिर्द जमात लगाते दिखाई दे जाते हैं।

बीजेपी विधायक का टल्ली अवतार

बीते हफ्ते की बात है, एक युवा विधायक बीते वीकेंड पर पब पहुंचे। देर शाम से महफिल जमनी शुरू हुई तो पता ही नहीं लगा कि आधी रात भी कब पार हो चुकी है। अंदर के माहौल की रंगीनियत ने मदहोशी के आलम को चार चांद तक पहुंचा दिया। जब पब की महफिल खत्म करने का वक्त हुआ तब महाशय को पता लगा कि चलना-फिरना भी मुश्किल हो रहा है। जनाब किसी तरह बाहर निकले, सिर पर चढ़ती मस्ती और डिगते कदम उनकी तरफ हर किसी का ध्यान खींच रहे थे। किसी तरह वे बाहर निकले और मददगार के जरिए अपने घर तक पहुंचे। लेकिन मॉल के उस पब से बाहर निकलते वक्त हर एक शख्स को उनके नाम की जानकारी पहुंच चुकी थी। हैरत की बात यह है कि बाहर खड़े खाकी वर्दी वालों ने भी साहब का मूड देखकर मामले से किनारा करना ही बेहतर समझा। अब ये खाकी वर्दी वाले आधी  रात के बाद का पूरा माजरा चटखारे लेकर लोगों को सुना रहे हैं। ये सीक्रेट ज़रूर खोल देते हैं कि जनाब विंध्य क्षेत्र से आते हैं।

पीसीसी में मंडराने लगे दिल्ली के परिंदे

कांग्रेस में अचानक वे लोग सक्रिय दिखाई देने लगे हैं जो  कमल नाथ के सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद गायब हो गए थे। किसी ने दिल्ली में काम का बहाना बनाया तो किसी ने दलील दी थी कि एमपी में काम नहीं रह गया है। लेकिन चुनाव करीब आते देख पर्दे के पीछे और आगे काम करने वाले कई लोग यकायक अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहे हैं। कुछ लोग कमल नाथ के बंगले तो कुछ लोगों ने पीसीसी पर आवाजाही बढ़ा दी है। दरअसल, कमल नाथ पीसीसी चलाते वक्त भी प्रोफेशनल और कार्पोरेट सिस्टम का ख्याल रखते हैं। इसी सिस्टम में कई नेताओं को काम के साथ दाना-दुनका भी नजर आता है। आने वाले दिनों में कमल नाथ जब चुनावी जमावट के लिए अपना काम शुरू करेंगे तो दिल्ली जा चुके लोगों को भी एमपी में अपनी संभावनाएं नजर आने लगी हैं। कुछ लोग ट्वीट करके अपनी मौजूदगी जाहिर कर रहे हैं तो कुछ लोगों ने फोन पर एमपी के लोगों से संपर्क साधने शुरू कर दिए हैं। अब ये सीक्रेट तो कमल नाथ के दिल में है कि वे किसको कितना भाव देते हैं।

मंत्रियों की तंत्र, अफसरों का सिरदर्द

चैत्र की नवरात्रि में माता बिगड़ी बना देती है, बस उन्हें प्रसन्न करने की ज़रूरत है। यही वजह है कि तांत्रिक क्रियाओं के लिए एमपी के मशहूर माता मंदिरों में वीआईपी ड्यूटी की बाढ़ आ गई है। नलखेड़ा और दतिया का प्रशासन ही नहीं, बल्कि उनके आसपास जिलों के अफसरों की भी वीआईपी ड्यूटी बढ़ गई है। वजह ये है कि मंत्रियों ने यहां के लिए दौड़ लगानी शुरू कर दी है। ये बात जगजाहिर है कि नलखेड़ा और दतिया के माता मंदिर में तांत्रिक पूजा पाठ से सियासत पर आंच नहीं आती है। आने वाला वक्त चुनाव का है, यूपी के बाद अब आलाकमान ने भी अपने अय्यारों का रुख एमपी की तरफ कर दिया है। ऐसे में संकेत हैं कि कहीं टिकट नहीं कट जाए। नंबर बढ़ाने के लिए अब मैया का ही सहारा है। लेकिन माता पूजन के लिए शुरू हुई घुड़दौड़ में अफसरों का सिरदर्द बढ़ गया है। उन्हें एक्सट्रा ड्यूटी जो बजानी पड़ रही है।

रायता फैलाकर गर्म होगा चुनावी माहौलई

ईओडब्ल्यू, एसटीएफ और लोकायुक्त जैसी एमपी की सरकारी जांच एजेंसियों ने अचानक फाइलें खोलनी शुरू कर दी हैं। इन फाइलों में से चुन-चुन कर ऐसे नाम बाहर किए जा रहे हैं जिनसे रायता फैल रहा है और सियासत गर्म हो रही है। बताया जा रहा है कि इसका इस्तेमाल चुनावी माहौल बनाने के लिए किया जा रहा है। दरअसल, जो नाम बाहर किए जा रहे हैं, उनका ताल्लुक कमल नाथ सरकार में प्रभावशाली के तौर पर लिया जाता था। अब तो ये शुरूआत है, सुना है चंद रोज़ बाद बड़ा विस्फोट करने की तैयारी भी की जा चुकी है। हमेशा से ही सरकारी एजेंसी जांच में सक्रिय रहने और उसे अंजाम तक पहुंचाने से ज्यादा  सियासी रायता फैलाने का ही काम करती रही हैं। इसलिए आने वाले दिनों में कुछ और नाम सुर्खियां बटोरने लग जाएं तो आश्चर्य मत कीजिएगा।

दुमछल्ला…

यूपी इलेक्शन के बाद बीजेपी को इस बात का पूरा अंदाज़ा था कि आलाकमान एमपी पर फोकस करेगा। यूपी फतेह के बाद एमपी में पार्टी संगठन और सरकार की बड़ी बैठकें तो साफ इशारा करती हैं कि चुनावी तैयारी शुरू हो गई हैं। लेकिन अब तक पार्टी में इसे फुल स्टॉप नहीं समझा जा रहा है। हर तरफ चर्चाएं हैं कि आखिर होने क्या वाला है? कुछ ना कुछ होगा तो ज़रूर, लेकिन होगा कब? उसका स्वरूप और दायरा कैसा होगा? दरअसल, सुहास भगत की सम्मानजनक विदाई के बाद अब ये सवाल अक्सर कान में पूछे जाने लगे हैं कि बदलाव की आंधी तो नहीं आएगी? यदि आ गई तो इसमें कौन सी कुर्सियां खिसक जाएंगी? सवाल के जवाब अभी आने बाकी हैं।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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