प्रेशर में दबे मंत्री नहीं कर पा रहे ओके
नई पारी के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस योजना का हर कहीं ज़िक्र छेड़ रहे हैं, उस योजना की एक फाइल पर मंत्रीजी दस्तखत करके ओके नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल इस फाइल पर योजना को चलाने वालों की पोस्टिंग तय होना है। लेकिन इसके लिए इतने लोगों को फोन आ गए हैं कि मंत्रीजी फाइनल ही नहीं कर पा रहे हैं। एक ही जगह पर दो से तीन लोगों की पोस्टिंग के लिए सिफारिश की जा चुकी हैं। सांसद, विधायक, मंत्री से लेकर पार्टी की तरफ से भी सिफारिशों का अंबार है। हालत यह है कि योजना पहली अप्रैल से शुरू होना था, यानी पहली अप्रैल से जॉइनिंग शुरू हो जानी थी। लेकिन फाइल श्यामला हिल स्थित मंत्री के बंगले पर ही अटकी हुई है। साहब परेशान हैं कि एक को संतुष्ट किया तो दूसरे-तीसरे नाराज़ हो जाएंगे। साहब पहले से ही ट्रांसफर को लेकर वीआईपी लोगों की सिफारिशें पूरी नहीं कर पाए हैं और पार्टी के अंदर-बाहर पार्टी नेताओं की नाराजगी के शिकार हो चुके हैं। अब मुसीबत यह है कि सीएम हर सभा में इस योजना का ज़िक्र छेड़ते हैं। चूंकि योजना बच्चों के भविष्य से जुड़ी है, इसलिए सुर्खियां भी खूब बटोर रही है। लेकिन अपनों के प्रेशर में दबे मंत्री का ओके नहीं मिलने से पूरी योजना शुरूआत में ही लेटलतीफी की शिकार हो रही है। मंत्री के बंगले की लोकेशन और बच्चों को जोड़ देंगे तो मंत्रीजी का नाम पता करना मुश्किल नहीं है।
चर्चित बेटा अब चलाएगा ठेका
सीएम के खास होने के बावजूद अपने बेटे की नाफरमानी की वजह से नेताजी को पिछले कार्यकाल में काफी ज़लालत झेलनी पड़ी थी। इस बार भी साहबज़ादे ने आमदनी के लिए शराब ठेका हासिल करने के लिए ऐड़ी-चोटी को ज़ोर लगा दिया। कामयाबी भी मिली लेकिन इसी वजह से पार्टी के अंदर साहबज़ादे चर्चाओं में आ गए हैं। हालांकि साहबज़ादे को पार्टी-वार्टी में कभी दिलचस्पी भी नहीं दिखाई थी। लेकिन उनके पिता पूर्व मंत्री के चेहरे पर चिंता की लकीरें ज़रूर आ गई हैं। हालांकि किसी राजनेता का शराब कारोबारी होना कोई गलत नहीं है। कई शराब कारोबारी तो खुलेआम राजनीति करके बीजेपी-कांग्रेस और निर्दलीय होकर भी चुनाव जीतते आए हैं। इस मामले में चिंता की बात यह है कि पूर्व मंत्री का नाम लेते ही सीधे श्यामला हिल्स का ज़िक्र छिड़ जाता है। वह श्यामला हिल जहां गलत कारोबार और करप्शन का आहट से ही निगाहें फेर ली जाती हैं। पूर्व मंत्री के करीबियों को चिंता यह है कि साहबजादे के कारोबार की वजह से नेताजी को श्यामला हिल्स से मिलने वाली तरजीह कम तो नहीं हो जाएगी?
दफ्तर में लटके-झटके, इंस्टा के चर्चे
दफ्तर लोकायुक्त का है। संजीदा दफ्तर। ज़ेहन में आता है कि रिटायर्ड जजों और खाकी वर्दी की मौजूदगी वाले इस दफ्तर में डिसिप्लिन की गंगा बहती होगी। लेकिन इन दिनों इस दफ्तर में हो रहे लटके-झटके की चर्चाएं सरगर्म हैं। पुलिस से जुड़ी अलग-अलग एजेंसियों से होकर इन लटके-झटकों के वीडियो अब पीएचक्यू में भी देखे जाने लगे हैं। दरअसल, यहां मौजूद एक महिला कर्मचारी इंस्टा पर जमकर पोस्ट कर रही हैं। नयनाभिराम बैकग्राउंड, मौसम की खुशनुमाई के साथ-साथ अक्सर दफ्तर में रखी फाइल-अलमारी और कर्मचारी के साथ दफ्तर परिसर भी दिखाई दे जाते हैं। जिससे यह सवाल पूछे जाने लगे हैं कि वीडियो बनाने वाली कर्मचारी क्या कुछ काम भी करती हैं? बहरहाल, वीडियो पोस्ट व्यूअर्स को पसंद आ रहे हैं और फॉलोअर्स बढ़ रहे हैं। वैसे तड़कते-भड़कते ट्रैक पर दिलकश अदाओं वाले डांस स्टेप्स वाले वीडियोज़ हों तो फॉलोअर्स बढ़ेंगे ही। यह बात अलग है कि अब पीएचक्यू में बैठे अफसरों ने कर्मचारी की लोकायुक्त पोस्टिंग की समीक्षा करना शुरू कर दिया है। इसी दफ्तर में तैनात हमारे सूत्र कहते हैं किकपड़ों पर चाहे जितना परफ्यूम लगा लो, रूह तो किरदार से महकती है।
बोलेरो को ठुकराने वाले जबलपुर में पैदल
बात एक ऐसे आईएफएस अफसर की जिन्होंने अपनी भोपाल पोस्टिंग में बोलेरो को ठुकरा दिया था। साहब की पसंद थी स्कॉर्पियो या उसके समकक्ष को कई दूसरी लग्जरी कार। साहब एक जिले की पोस्टिंग से भले ही भोपाल मुख्यालय पहुंचे थे, लेकिन कार के मामले में उनकी चॉइस स्पष्ट थी। अब उनकी पोस्टिंग जबलपुर में एक ऐसे संस्थान में हो गई है, जहां कई दूसरे आईएफएस अफसर लूपलाइन पोस्टिंग काट रहे हैं। साहब इसलिए छटपटा रहे हैं कि यहां उन्हें एक अदद वाहन भी नसीब नहीं हो रहा है। अब साहब को वह दिन ज़रूर याद आ रहे होंगे जब वे भोपाल में फारेस्ट रेस्ट हाउस से सतपुड़ा तक का सफर पैदल तय करते थे और बोलेरो उनके पीछे-पीछे चलकर ड्यूटी की औपचारिकता पूरी करती थी। साहब की दूसरी जगह की पोस्टिंग के लिए ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं, लेकिन साल भर से बात नहीं बन रही है। बावजूद इसके वे, इस उम्मीद पर हर रोज़ दिया जलाते हैं… पाने वाले बरसों बाद भी पाते हैं।
दो पीएस के पास काम का टोटा
सरकारी सिस्टम में योग्य व्यक्ति के अत्यधिक व्यस्त होने के कयास लगाए जाते हैं। लेकिन दो प्रमुख सचिवों के मामले में इसके उलट हो रहा है। यहां दो अफसर ऐसे हैं जो योग्यता का बावजूद काम के टोटा झेल रहे हैं। इनमें से एक केंद्र और राज्य के फाइनेंस विभागों में सालों बिता चुके हैं। नौकरी का दशक जितना वक्त वित्तीय मामले देखने के बाद अब उन्हें ऐसा महकमा सौंपा गया है, जो उनकी काबिलियत से कतई मेल नहीं खा रहा है। लिहाज़ा साहब के कैबिन में उदासी छाई रहती है। दूसरा मामला भी कुछ ऐसा ही है, इन्हें सीएम से जुड़ा अहम विभाग सौंपा गया है, लेकिन विभाग इन दिनों काम की तलाश में उलझा हुआ है। बमुश्किल कोई फाइल चलती है। जबकि इस विभाग की अहमियत का अंदाज़ा ही इस बात से लगाया जा सकता है कि महकमे की पैदाइश की इसी सरकार ने की है। अहम विभाग को देखते हुए पीएस भी काबिल तलाशे गए। लेकिन किस्मत देखिए, साहब को महकमे में मशरूफ हुए ज़माना बीत गया है। कभी-कभी योग्यता भी खालीपन की वजह बन जाती है।
दुमछल्ला…
जो सरकार में मुख्य भूमिका में हो, सीएम शिवराज के सबसे करीबी मंत्रियों में शुमार हो… उस सिंह का किंग होना लाजिमी है। लेकिन ना जाने कौन है जो इस राह में आड़े आ रहा है। मृदुभाषी सिंह साहब की ग्रेटनेस है कि वो विरोध नहीं जता रहे, नाराज़ी ज़ाहिर नहीं कर रहे। लेकिन अब लगातार होती घटनाएं सियासी गलियारों में जमकर शोर मचा रही है कि उन्हें सरकार में बैठे अफसर आखिर नज़रअंदाज़ क्यों कर रहे हैं। पहले इंदौर में पीएम मोदी के कार्यक्रम में नज़रअंदाज़ किया। किसी तरह सिंह साहब ने ही तर्क देकर मामला संभाला। अब भोपाल में एक उद्घाटन समारोह में सिंह साहब को उनके ही डिपार्टमेंट केअफसरों ने नज़रअंदाज़ कर दिया है। सवाल उठ रहे हैं सिंह साहब को नज़रअंदाज़ कौन कर रहा है?
(संदीप भम्मरकर की कलम से)
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