पुरूषोत्तम पात्र,गरियाबंद। जिले में प्याज की खेती उपज के मामले में प्रदेश में सबसे आगे हैं. यहां की मिट्टी और तापमान प्याज की फसल के लिए पूरी तरह अनुकूल है, लेकिन जिले के किसान भाई अभी परम्परागत खेती करने पर मजबूर है.उद्यानिकी विभाग और कृषि विभाग की अनदेखी की वजह से यहां के किसानों को शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है.
बता दें कि जिले में 10 से भी ज्यादा गांव के ढाई सौ किसान पिछले 40-50 सालों से प्याज की किफायती खेती करते आ रहे हैं,इन्हें सरकारी प्रोत्साहन नही मिलातो इनमे से कुछ ने सब्जी की खेती शुरू कर दी.
तो कुछ परम्परागत तरीके से अब भी प्याज की खेती करते आ रहे हैं, क्योकि गर्मी के दिनों में खेत का सदुपयोग हो जाता है,और परिवार को मजदूरी भी मिल जाता है.दहीगाव, झिरिपानी,निष्टीगुड़ा,माडागाव, कोदोबेड़ा,माहूलकोट,सुपेबेड़ा, बरकानी,कैठपदर,सिनापाली प्याज की खेती के लिये अपनी अलग पहचान बनाए हुए है.
जानकारी के अनुसार यहां करीबन 180 एकड़ रकबे पर हर साल प्याज की खेती की जाती है,लेकिन इसका रिकॉर्ड न तो कृषि विभाग के क्षेत्राछादन रिपोर्ट में होता है, ना ही उद्यानिकी के लाभार्थी हितग्राहियों की सूची में इनका कोई जिक्र है.
इस मामले पर उद्यानिकी विभाग के प्रभारी उपसंचालक एच मेश्राम से बात करने की कोशिश की गई तो वे मोबाइल रिसीव नही किये,वही कृषि विभाग के प्रभारी उपसंचालक एन के ध्रुव ने कहा कि इसकी खेती उद्यानिकी विभाग के अंर्तगत आती है,रवि सीजन में तैयार होने वाले रिपोर्ट में सब्जी बॉडी के रकबे के अंर्तगत इसका जिक्र होता है.
प्याज के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अगर वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जाए तो किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के साथ ही गरियाबंद जिला प्याज के उत्पादन में अव्वल क्षेत्र बन सकता है. इसके लिये किसानों को रासायनिक खाद के इस्तेमाल,रोग ब्याधि से निपटने के तरीके के अलावा लघु सिचाई योजना उपलब्ध कराई जाए तो प्याज के दूसरे उत्पादक राज्य की तरह यंहा भी बेहतर संभावना बन सकती हैं.