सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। आज देश में राम मंदिर को लेकर भारी उत्साह है, इसी बीच प्रदेश सरकार के महत्वकांक्षी योजना राम वन गमन पथ के लिए 113.55 करोड़ रुपए का अप्रूवल हुआ है. पहले चरण के लिए 9 जगहों को चिन्हित किया गया है. वहीं दूसरे चरण में 43 स्थलों को वहां की मान्यता और भगवान राम के कार्यों के आधार पर विकसित किया जाएगा.

लल्लूराम डॉट कॉम से बात करते हुए पर्यटन मंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ का भगवान राम से काफी करीब का नाता है. माता कौशल्या खुद छत्तीसगढ़ की राजकुमारी थी, वहीं भगवान राम ने भी अपने वनवास के दौरान काफी वक्त छत्तीसगढ़ में गुजारा था. आज तक सिर्फ राम के नाम पर राजनीति हुई, लेकिन हमने जो कहा वो कर रहे हैं. 16 जिलों के बचे हुए 43 स्थलों का प्लान तैयार कर लिया गया है. शोध के आधार पर इन स्थलों को राज्य सरकार ने अपनी सूची में शामिल तो कर लिया है, लेकिन इनके विकास में समय लग सकता है.

पहले चरण के लिए चयनित 9 स्थल

सीतामढ़ी-हरचौका
कोरिया जिले में है. राम के वनवास काल का पहला पड़ाव यही माना जाता है. नदी के किनारे स्थित यह स्थित है, जहां गुफाओं में 17 कक्ष हैं. इसे सीता की रसोई के नाम से भी जाना जाता है.

रामगढ़ की पहाड़ी
सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ी में तीन कक्षों वाली सीताबेंगरा गुफा है. देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला कहा जाता है. कहा जाता है वनवास काल में राम यहां पहुंचे थे, यह सीता का कमरा था. कालीदास ने मेघदूतम की रचना यहीं की थी.

शिवरीनारायण – जांजगीर-चांपा
जांजगीर चांपा जिले के इस स्थान पर रुककर भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे. यहां जोक, महानदी और शिवनाथ नदी का संगम है. यहां नर-नारायण और शबरी का मंदिर भी है. मंदिर के पास एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसके दोने के आकार में पत्ते हैं.

तुरतुरिया – बलौदाबाजार
बलौदाबाजार भाटापारा जिले के इस स्थान को लेकर जनश्रुति है कि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं था. तुरतुरिया ही लव-कुश की जन्मस्थली थी. बलभद्री नाले का पानी चट्टानों के बीच से निकलता है, इसलिए तुरतुर की ध्वनि निकलती है, जिससे तुरतुरिया नाम पड़ा.

चंदखुरी – रायपुर
रायपुर जिले के 126 तालाब वाले इस गांव में जलसेन तालाब के बीच में भगवान राम की माता कौशल्या का मंदिर है. कौशल्या माता का दुनिया में यह एकमात्र मंदिर है. चंदखुरी को माता कौशल्या की जन्मस्थली कहा जाता है, इसलिए यह राम का ननिहाल कहलाता है.

राजिम – गरियाबंद
गरियाबंद जिले का यह प्रयाग कहा जाता है, जहां सोंढुर, पैरी और महानदी का संगम है. कहा जाता है कि वनवास काल में राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव की पूजा की थी, इसलिए यहां कुलेश्वर महाराज का मंदिर है. यहां माघ पुन्नी मेला भी लगता है.

सप्तऋषि आश्रम – सिहावा (धमतरी)
धमतरी जिले के सिहावा की विभिन्न पहाड़ियों में मुचकुंद आश्रम, अगस्त्य आश्रम, अंगिरा आश्रम, श्रृंगि ऋषि, कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम एवं गौतम ऋषि आश्रम आदि ऋषियों का आश्रम है. राम ने दण्डकारण्य के आश्रम में ऋषियों से भेंट कर कुछ समय व्यतीत किया था.

जगदलपुर – बस्तर
बस्तर जिले का यह मुख्यालय है. चारों ओर वन से घिरा हुआ है. कहा जाता है कि वनवास काल में राम जगदलपुर क्षेत्र से गुजरे थे, क्योंकि यहां से चित्रकोट का रास्ता जाता है. जगदलपुर को पाण्डुओं के वंशज काकतिया राजा ने अपनी अंतिम राजधानी बनाई थी.

रामाराम – सुकमा
सुकमा जिला मुख्यालय से 8 किमी दूर स्थित रामाराम एक गांव है, जहां चिपिमटीन अम्मा देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है. मान्यता है कि श्रीराम ने वनवास के दौरान भू-देवी की आराधना की थी.