आजाद सक्सेना, दंतेवाड़ा. जिले के प्राचीन नगरी बारसूर में पिछले कई वर्षों से एक अनोखी परंपरा चली आ रही है. यहां के गांव प्रमुख, बैगा और सिरहा, गुनिया गांव के ग्रामीणों के साथ मिलकर महुआ के फूलों की अच्छी पैदावार के लिए महुआ पेड़ की शादी करवाते है.
बता दें कि, पेड़ों के शादी की खास बात यह है कि, जिस तरह आम मानव जीवन में दूल्हा-दुल्हन की शादी की रस्म की परंपराए होती है. ठीक इसी रस्मों से महुआ के पेड़ों की शादी करवाई जाती है. इस शादी की एक-एक रीति रिवाज बस्तर के आदिवासी संस्कृति, रीति रिवाजों और रस्मों पर आधारित है.
जानकारी के अनुसार, आदिवासी रीति-रिवाजों से दूल्हा-दुल्हन को जिस तरह तेल हल्दी लगाया जाता है, ठीक उसी प्रकार महुआ के टहनियों को तेल हल्दी लगाकर शादी करवाया जाता है. इस शादी में बाजे-गाजे और शहनाई बजाकर पुरुष ग्रामीण महुआ पेड़ का चक्कर लगाते हुए नाच गाना करते हैं और तेल हल्दी खेलने का रस्म भी निभाते हैं. शादी की सब रस्म समापन के बाद गांव के देवी-देवताओं की पूजा कर महुआ फूल के अच्छे पैदावार की कामना करते हैं.
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