रायपुर. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने राजस्थान के अलवर जिले में फंसे छत्तीसगढ़ के 37 आदिवासी बच्चों में से 7 की वापसी की जानकारी दी है. पार्टी ने बताया कि सुरक्षा और सुरक्षित घर वापसी की दृष्टि से इन सभी बच्चों को पुलिस प्रशासन के हवाले कर दिया गया है. इनमें से पांच बच्चे कांकेर जिले चारामा और नरहरपुर ब्लॉक के तथा दो बच्चे राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ चौकी ब्लॉक के हैं.
इन्हीं बच्चों के हवाले से पार्टी ने जानकारी दी है कि दो दिन पहले ही सात और बच्चियां अपने साधन से किराए का वाहन करके अपने गांवों-घरों में पहुंच चुकी है. माकपा ने आरोप लगाया है कि आज तक प्रशासन को उनकी सुध लेने की फुर्सत नहीं मिली है. उसी तरह ये सात बच्चे भी अलवर से रायपुर तक 42000 रुपये में एक स्कॉर्पियो किराया करके रायपुर तक पहुंचे हैं.
माकपा राज्य सचिव संजय पराते तथा सचिव मंडल सदस्य धर्मराज महापात्र ने बस स्टैंड में उनकी अगवानी की और नूरानी चौक स्थित माकपा कार्यालय में निवृत्त होने तथा नाश्ता कराने के बाद उन्हें पुलिस के संरक्षण में सौंप दिया गया, ताकि उनकी सुरक्षित ढंग से घर वापसी हो सके. उन्होंने बताया कि अभी भी अलवर में 25 बच्चे फंसे हुए हैं.
उल्लेखनीय है कि इन सातों बच्चों को दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना में प्रशिक्षित कर निजी कंपनियों को सौंप दिया गया था. इन बच्चों ने बताया कि मार्च से अभी तक उनको कंपनी से कोई वेतन नहीं मिला और उन्हें जिंदा रहने के लिए घर से पैसे मंगवाने के लिए बाध्य होना पड़ा है.
माकपा नेता पराते ने कांग्रेस सरकार से मांग की है कि इन बच्चों को आने में लगे किराये की अदायगी सरकार करे और उनके जिले में इन शिक्षित आदिवासी युवाओं के लिए रोजगार की व्यवस्था करें. माकपा नेताओं ने कहा कि कौशल योजना के अंतर्गत दूसरे प्रदेशों में भेजे गए 3000 बच्चे अभी भी बाहर फंसे हुए हैं, उनमें से अधिकांश आदिवासी व कम उम्र की युवतियां है. एक तरह से तत्कालीन भाजपा सरकार की इजाजत से इनका सस्ते श्रम के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिन्हें न तो न्यूनतम वेतन मिलने की गारंटी है और न ही उनके काम के घंटे किसी नियम व शर्तों से बंधे हैं.
यह स्थिति इन बच्चों की बंधुंआ चाकरी की ओर इशारा कर रही है. माकपा ने दीनदयाल योजना के नाम पर चल रहे फर्जीवाड़े की जांच करने की भी मांग की है.