रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, इन धरोहरों में जनजातीय समुदायों की विशिष्ट परंपराएँ और धार्मिक स्थल विशेष महत्व रखते हैं. इनमें से ‘देवगुड़ी’ स्थल जनजातीय समाज की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक पहचान के केंद्र हैं. स्थानीय जनजातीय देवताओं के निवास स्थल होने के कारण देवगुडी पारंपरिक अनुष्ठानों और त्योहारों का केंद्र होते हैं, साथ ही ये जैव विविधता के अनूठे केंद्र भी माने जाते हैं.

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के कुशल नेतृत्व में छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण और संवर्धन से सांस्कृतिक धरोहर की पुनर्स्थापना हो रही है.पिछले एक साल में राज्य के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की प्रेरणा से छत्तीसगढ़ वन विभाग ने इन देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण और संवर्धन के माध्यम से राज्य की सांस्कृतिक धरोहर की पुनर्स्थापना में जुटी हुई है.

देवगुड़ियों को संवार के प्रदेश के मुखिया विष्णुदेव साय ने जनजातीय समुदायों की आस्था को संरक्षित करने का काम करके उनका मन जीत लिया है. छत्तीसगढ़ के जनजातीय समुदायों के लिए अत्यंत पवित्र स्थान होता है देवगुड़ी स्थल जहां वे अपने स्थानीय देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं. ये स्थल न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि सामाजिक एकता, पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत के संवाहक भी हैं.

छत्तीसगढ़ की देवगुड़ी में भंगाराम, डोकरी माता गुड़ी, सेमरिया माता, लोहजारिन माता गुड़ी, मावली माता गुड़ी, माँ दंतेश्वरी गुड़ी और कंचन देवी गुड़ी जैसे नाम शामिल हैं. ये सभी देवगुड़ी स्थानीय जनजातीय समुदायों की आस्थाओं में विशेष स्थान रखती हैं, और प्रत्येक का अपना विशिष्ट महत्व है. ये सभी देवगुड़ियाँ जनजातीय समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं.

साय सरकार के दिशा निर्देश पर छत्तीसगढ़ वन विभाग ने देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण और संवर्धन के लिए किए जा रहे व्यापक प्रयास में अब तक 1,200 से अधिक देवगुड़ी स्थलों का दस्तावेजीकरण और संरक्षण किया जा चुका है, ताकि इन पारिस्थितिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

देवगुड़ियों के साथ ही इन स्थलों में जैव विविधता को पुनर्जीवित करने की पुनीत मंशा के साथ पारंपरिक वनस्पति प्रजातियों जैसे साल, सागौन, बांस, और आंवला का रोपण भी किया जा रहा है. देवगड़ियों तक पर्यावरणीय रूप से अनुकूल संरचनाओं, बाड़बंदी, और पगडंडियों का निर्माण किया जा रहा है, जिससे इन स्थलों की प्राकृतिक सुंदरता और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षित रहे. देवगुड़ी के उपवन पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं.

देवगुडियाँ दुर्लभ, संकटग्रस्त, और स्थानीय वनस्पति प्रजातियों का आश्रय स्थल भी होते हैं, अब इन स्थलों में इनका संरक्षण भी सुनिश्चित किया गया है. वनस्पतियाँ मृदा अपरदन को रोकने का काम भी करती हैं. जनजातीय समुदायों का ऐसा भी मानना है कि इन पवित्र स्थलों की रक्षा देवताओं द्वारा की जाती है, इसलिए यहाँ पेड़ काटना, शिकार करना या किसी जीव को हानि पहुँचाना वर्जित है.

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने समझा है कि इन उपवनों से जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान गहराई से जुड़ी हुई है और ये उनकी पारंपरिक प्रथाओं को जीवित रखते हैं. इन देवगुड़ियों में मड़ई, हरेली और दशहरा जैसे त्योहारों पर विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं. नवविवाहित जोड़े यहाँ आकर स्थानीय देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष राकेश चतुर्वेदी ने कहा कि “वन विभाग स्थानीय जनजातीय के सहयोग से देवगुड़ी के संरक्षण एवं संवर्धन में सक्रिय रूप से प्रयासरत है. इस पहल के अंतर्गत बड़ी संख्या में स्थानीय वनस्पति प्रजातियों का रोपण किया जा रहा है और पारंपरिक त्योहारों का पुनर्जीवन किया जा रहा है.”

प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख व्ही. श्रीनिवास राव, आईएफएस ने कहा कि “मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय और वन मंत्री केदार कश्यप छत्तीसगढ़ के वनसमृद्ध जनजातीय क्षेत्रों से संबंध रखते हैं. उनके नेतृत्व में वन विभाग देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण के लिए समर्पित है. ये प्रयास राज्य में सतत् वन प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण के हमारे व्यापक मिशन के अनुरूप हैं.”

राज्य जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव राजेश कुमार चंदेले आईएफएस ने बताया कि “इन उपवनों की जैव विविधता को पुनर्जीवित करने के लिए वन विभाग द्वारा साल, सागौन, बांस, हल्दू, बहेड़ा, सल्फी, आंवला, बरगद, पीपल, कुसुम बेल, साजा, तेंदू, बीजा और कई औषधीय पौधों जैसी देशी प्रजातियाँ लगाई गई हैं. ये स्थल सांप, मोर, जंगली सुअर और बंदरों जैसे विविध वन्यजीवों के लिए समृद्ध पारिस्थितिक आवास प्रदान करते हैं. साथ ही जनजातीय समुदायों के बीच गैर विनाशकारी कटाई प्रथाओें को प्रोत्साहित किया जा रहा है.”

राज्य जैव विविधता बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नीतू हरमुख ने बताया कि “छत्तीसगढ़ के देवगुड़ी स्थलों को राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के लोक जैव विविधता पंजिका में आधिकारिक रूप से पंजीकृत किया जा रहा है. साथ ही इन पवित्र उपवनों की जैव विविधता का दस्तावेजीकरण करने के लिए शोध कार्य किए जा रहे हैं.”

देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण योगदान मिला है जनजातीय समुदाय इस पहल के लिए विष्णुदेव साय सरकार के प्रति आभार प्रकट कर रही है. देवगुड़ियों के माध्यम से जनजातीय समुदायों की परंपराएँ और धार्मिक आस्थाएँ सुदृढ़ हुई हैं, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान को मजबूती मिल रही है. इन स्थलों के संरक्षण से स्थानीय समुदायों में गर्व की भावना जागृत हुई है, जिससे वे अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति और अधिक सजग हुए हैं.

देवगुड़ी स्थलों का संरक्षण सांस्कृतिक दृष्टि से, पर्यावरणीय दृष्टि, जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है ही इससे गैर-विनाशकारी कटाई और पारंपरिक प्रथाओं को बढ़ावा भी मिल रहा है और पर्यावरणीय संतुलन भी आसानी से बनाए रखा जा सकता है.